यह कविता मुझे मेरे भाइसाहिब से अमरीका से प्राप्त हुई है :
काश मैं भी कट्टर कांग्रेसी होता
काश मैं भी कट्टर कांग्रेसी होता,बाबा और अन्ना के हक में ना बोलता.
दिग्गी की ताल में ताल मिलाता,
ओसामा के पीछे जी लगाता.
अन्ना व बाबा को कोसता,
दोनों को आरएसएस के लोग बताता.
कहीं कोई घपला होता न दिखता,
भ्रष्टाचार मुझे नजर न आता.
गरीबी और महंगाई तो सोचता भी नहीं,
बस, इंडिया तरक्की करता नजर आता.
राजा और कलमाड़ी को नमन करता,
******* नेहरू के आगे शीश नवाता.
बालकृष्णन पर आपराधिक मामले के हक में रहता,
दाउद और कसाब की कभी बात न करता.
बाबा रामदेव को महाठग कहता,
सोनिया, राहुल को मक्खन लगाता.
काले धन की बात न करता,
विकीलीक्सी के खुलासे झुठलाता.
मनमोहन जी भी मन मोह लेते,
उनको कभी मनमौन न कहता.
सीबीआई पर गर्व मैं करता,
भोपाल, क्वात्रोच्चि, बोफोर्स सब भूल जाता.
चोर लुटेरे अपराधी करें तो ठीक,
बाबा-अन्ना का हर बयान राजनीति बताता.
सफेद केसरिया जाएं भाड़ में,
तिरंगे में रंग बस हरा नज़र आता.
गर काले धन पर कोई कुछ कहता,
उल्टा मैं उसे बाबा की प्रॉपर्टी गिनाता.
फिर भी जो कोई न मानता,
मंदिर के खज़ाने पर कटाक्ष जमाता.
सरकारी लोकपाल के जो एंटी होता,
उसे मैं लोकतंत्र का दुश्मन कहता.
काश.....
के मैं भी कट्टर कांग्रेसी होता.
1 comment:
तो आपको रोका किसने है,
शौक से जाओ,
ये ही कसर रह गयी थी,
इसे भी पूरी कर लो,
और भर लो अपना बैंक का खजाना,
विदेश में लगे हाथ खुलवा लेना।
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