national song of bharat वंदे मातरम - देश का राष्ट्रीय गीत ?


  

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वन्दे मातरम्

मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से
अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया भारतमाता का चित्र
Flag of भारत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक
ध्वजतिरंगा
राष्ट्रीय चिह्नअशोक की लाट
राष्ट्र-गानजन गण मन
राष्ट्र-गीतवंदे मातरम्
पशुबाघ
जलीय जीवगंगा डाल्फिन
पक्षीमोर
पुष्पकमल
वृक्षबरगद
फलआम
खेलमैदानी हॉकी
पञ्चांग
शक संवत
संदर्भ"भारत के राष्ट्रीय प्रतीक"
भारतीय दूतावास, लन्दन
Retreived ०३-०९-२००७
वन्दे मातरम् (संस्कृत: वन्दे मातरम्, बाँग्ला: বন্দে মাতরম ) भारत का संविधान सम्मत राष्ट्रगीत है[1]
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् १८८२ में उनके उपन्यासआनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ[2] था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के सन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी।
२००३ में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग ७,००० गीतों को चुना गया था और बी०बी०सी० के अनुसार १५५ देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे मातरम् शीर्ष के १० गीतों में दूसरे स्थान पर था। [3]

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Vande Mataram : The National Song of India




Bankimchandra ChatterjeeBankim Chandra Chatterjee (1838 - 1894) also known as Bankim Chandra Chattopadhyay was one of the greatest novelists and poets of India. He is famous as author of Vande Mataram, the national song of India. HJS pays sincere homage to this son of Bharat Mata on his memorial day. (8th April)

Vande Mataram Lyrics


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Bharatmata

HJS surrenders unto holy feet of Bharat Mata

Lyrics of Vande Mataramवन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्यशामलां मातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं
सुखदां वरदां मातरम् ।। १ ।। वन्दे मातरम् ।

कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले
कोटि-कोटि-भुजैर्धृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम् ।। २ ।। वन्दे मातरम् ।

तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वं हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडि
मन्दिरे-मन्दिरे मातरम् ।। ३ ।। वन्दे मातरम् ।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलां
सुजलां सुफलां मातरम् ।। ४ ।। वन्दे मातरम् ।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां
धरणीं भरणीं मातरम् ।। ५ ।। वन्दे मातरम् ।।
Translation by Sri Aurobindo 
Mother, I bow to thee!
Rich with thy hurrying streams,
bright with orchard gleams,
Cool with thy winds of delight,
Dark fields waving Mother of might,
Mother free.
Glory of moonlight dreams,
Over thy branches and lordly streams,
Clad in thy blossoming trees,
Mother, giver of ease
Laughing low and sweet!
Mother I kiss thy feet,
Speaker sweet and low!
Mother, to thee I bow.
Who hath said thou art weak in thy lands
When the sword flesh out in the seventy million hands
And seventy million voices roar
Thy dreadful name from shore to shore?
With many strengths who art mighty and stored,
To thee I call Mother and Lord!
Though who savest, arise and save!
To her I cry who ever her foeman drove
Back from plain and Sea
And shook herself free.
Thou art wisdom, thou art law,
Thou art heart, our soul, our breath
Though art love divine, the awe
In our hearts that conquers death.
Thine the strength that nervs the arm,
Thine the beauty, thine the charm.
Every image made divine
In our temples is but thine.
Thou art Durga, Lady and Queen,
With her hands that strike and her
swords of sheen,
Thou art Lakshmi lotus-throned,
And the Muse a hundred-toned,
Pure and perfect without peer,
Mother lend thine ear,
Rich with thy hurrying streams,
Bright with thy orchard gleems,
Dark of hue O candid-fair
In thy soul, with jewelled hair
And thy glorious smile divine,
Lovilest of all earthly lands,
Showering wealth from well-stored hands!
Mother, mother mine!
Mother sweet, I bow to thee,
Mother great and free!


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गीत

यदि बाँग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाय तो इसका शीर्षक "बन्दे मातरम्" होना चाहिये "वन्दे मातरम्" नहीं। चूँकि हिन्दीव संस्कृत भाषा में 'वन्दे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बाँग्ला लिपि में लिखा गया था और चूँकि बाँग्ला लिपि में  अक्षर है ही नहीं अत: बन्दे मातरम् शीर्षक File:Bharat Mata.jpg से ही बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शीर्षक 'बन्दे मातरम्' होना चाहिये था। परन्तु संस्कृत में 'बन्दे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है तथा "वन्दे मातरम्" उच्चारण करने से "माता की वन्दना करता हूँ" ऐसा अर्थ निकलता है, अतःदेवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् ही लिखना व पढ़ना समीचीन होगा ।
(संस्कृत मूल गीत[4])
वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्,
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।१।।

शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ।।२।।

कोटि-कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले,
के बॉले माँ तुमि अबले,
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीम्,
रिपुदलवारिणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।३।।

तुमि विद्या तुमि धर्म,
तुमि हृदि तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि माँ शक्ति,
हृदय़े तुमि माँ भक्ति,
तोमारेई प्रतिमा गड़ि मन्दिरे-मन्दिरे। वन्दे मातरम् ।।४।।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्,
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्,
सुजलां सुफलां मातरम्। वन्दे मातरम् ।।५।।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्,
धरणीं भरणीं मातरम्। वन्दे मातरम् ।।६।।>
(बाँग्ला मूल गीत)
সুজলাং সুফলাং মলয়জশীতলাম্
শস্যশ্যামলাং মাতরম্॥
শুভ্রজ্যোত্স্না পুলকিতযামিনীম্
পুল্লকুসুমিত দ্রুমদলশোভিনীম্
সুহাসিনীং সুমধুর ভাষিণীম্
সুখদাং বরদাং মাতরম্॥

কোটি কোটি কণ্ঠ কলকলনিনাদ করালে
কোটি কোটি ভুজৈর্ধৃতখরকরবালে
কে বলে মা তুমি অবলে
বহুবলধারিণীং নমামি তারিণীম্
রিপুদলবারিণীং মাতরম্॥

তুমি বিদ্যা তুমি ধর্ম, তুমি হৃদি তুমি মর্ম
ত্বং হি প্রাণ শরীরে
বাহুতে তুমি মা শক্তি
হৃদয়ে তুমি মা ভক্তি
তোমারৈ প্রতিমা গড়ি মন্দিরে মন্দিরে॥

ত্বং হি দুর্গা দশপ্রহরণধারিণী
কমলা কমলদল বিহারিণী
বাণী বিদ্যাদায়িনী ত্বাম্
নমামি কমলাং অমলাং অতুলাম্
সুজলাং সুফলাং মাতরম্॥

শ্যামলাং সরলাং সুস্মিতাং ভূষিতাম্
ধরণীং ভরণীং মাতরম্॥

[संपादित करें]हिन्दी अनुवाद

आनन्दमठ के हिन्दी,मराठी,तमिल,तेलगू,कन्नड़ आदि अनेक भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी-अनुवाद भी प्रकाशित हुए। डॉ० नरेशचन्द्र सेनगुप्त ने सन् १९०६ मेंAbbey of Bliss के नाम से इसका अंग्रेजी-अनुवाद प्रकाशित किया। अरविन्द घोष ने 'आनन्दमठ' में वर्णित गीत 'वन्दे मातरम्' का अंग्रेजी गद्य और पद्य में अनुवाद किया। महर्षि अरविन्द द्वारा किए गये अंग्रेजी गद्य-अनुवाद का हिन्दी-अनुवाद इस प्रकार है:
मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। ओ माता!
पानी से सींची, फलों से भरी,
दक्षिण की वायु के साथ शान्त,
कटाई की फसलों के साथ गहरी,
माता!

उसकी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,
उसकी जमीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुन्दर ढकी हुई है,
हँसी की मिठास, वाणी की मिठास,
माता! वरदान देने वाली, आनन्द देने वाली।

[संपादित करें]हिन्दी-काव्यानुवाद

इस गीत का हिन्दी-काव्यानुवाद 'क्रान्त' कृत संस्कृत/हिन्दी बालोपयोगी संस्कार रचनावली अर्चना में[5] मिलता है। यह पुस्तिका लेखक की स्वयं की हस्तलिपि में किंवा प्रकाशन से प्रथम बार १९९२ में प्रकाशित हुई थी। लेखक ने इसे उर्दू के मशहूर शायर मोहम्मद इकबाल के सुप्रसिद्ध कौमी तराने "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा" की धुन को ध्यान में रखकर लिखा था। उक्त कृति में सामूहिक राष्ट्रगान शीर्षक से दिया गया गीत यहाँ पर विकिपीडिया के पाठकों की सेवार्थ उद्धृत किया जा रहा है:
वन्दे मातरम का यह हिन्दी अनुवाद जिस पुस्तक से लिया गया है, उसका आवरण पृष्ठ
तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत! हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!
जलवायु अन्न सुमधुर, फल फूल दायिनी माँ! धन धान्य सम्पदा सुख, गौरव प्रदायिनी माँ!!
शत-शत नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!

अति शुभ्र ज्योत्स्ना से, पुलकित सुयामिनी है। द्रुमदल लतादि कुसुमित, शोभा सुहावनी है।।
यह छवि स्वमन धरें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!

कसकर कमर खड़े हैं, हम कोटि सुत तिहारे। क्या है मजाल कोई, दुश्मन तुझे निहारे।।
अरि-दल दमन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!

तू ही हमारी विद्या, तू ही परम धरम है। तू ही हमारा मन है, तू ही वचन करम है।।
तेरा भजन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!

तेरा मुकुट हिमालय, उर-माल यमुना-गंगा। तेरे चरण पखारे, उच्छल जलधि तरंगा।।
अर्पित सु-मन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!

बैठा रखी है हमने, तेरी सु-मूर्ति मन में। फैला के हम रहेंगे, तेरा सु-यश भुवन में।।
गुंजित गगन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!

पूजा या पन्थ कुछ हो, मानव हर-एक नर है। हैं भारतीय हम सब, भारत हमारा घर है।।
ऐसा मनन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!

[संपादित करें]रचना की पृष्ठभूमि

सन् १८७०-८० के दशक में ब्रिटिश शासकों ने सरकारी समारोहों में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेजों के इस आदेश से बंकिमचन्द्र चटर्जीको, जो उन दिनों एक सरकारी अधिकारी (डिप्टी कलेक्टर) थे, बहुत ठेस पहुँची और उन्होंने सम्भवत: १८७६ में इसके विकल्प के तौर पर संस्कृत और बाँग्ला के मिश्रण से एक नये गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया - ‘वन्दे मातरम्’। शुरुआत में इसके केवल दो ही पद रचे गये थे जो संस्कृत में थे। इन दोनों पदों में केवल मातृभूमि की वन्दना थी। उन्होंने १८८२ में जब आनन्द मठ नामक बाँग्ला उपन्यास लिखा तब मातृभूमि के प्रेम से ओतप्रोत इस गीत को भी उसमें शामिल कर लिया। यह उपन्यास अंग्रेजी शासन, जमींदारों के शोषण व प्राकृतिक प्रकोप (अकाल) में मर रही जनता को जागृत करने हेतु अचानक उठ खड़े हुए सन्यासी विद्रोह पर आधारित था। इस तथ्यात्मकइतिहास का उल्लेख बंकिम बाबू ने 'आनन्द मठ' के तीसरे संस्करण में स्वयं ही कर दिया था। और मजे की बात यह है कि सारे तथ्य भी उन्होंने अंग्रेजी विद्वानों-ग्लेग व हण्टर[6] की पुस्तकों से दिये थे। उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम का एक सन्यासी गाता है। गीत का मुखड़ा विशुद्ध संस्कृत में इस प्रकार है: "वन्दे मातरम् ! सुजलां सुफलां मलयज शीतलाम् , शस्य श्यामलाम् मातरम् ।" मुखड़े के बाद वाला पद भी संस्कृत में ही है: "शुभ्र ज्योत्स्नां पुलकित यमिनीम् , फुल्ल कुसुमित द्रुमदल शोभिनीम् ; सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् , सुखदां वरदां मातरम् ।" किन्तु उपन्यास में इस गीत के आगे जो पद लिखे गये थे वे उपन्यास की मूल भाषा अर्थात् बाँग्लामें ही थे। बाद वाले इन सभी पदों में मातृभूमि की दुर्गा के रूप में स्तुति की गई है। यह गीत रविवार, कार्तिक सुदी नवमी, शके १७९७ (७ नवम्बर १८७५) को पूरा हुआ।

[संपादित करें]भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भूमिका

पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' कृत क्रान्ति गीतांजलि[7] में वन्दे मातरम् का मूल पाठ मातृ-वन्दना

बंगाल में चले स्वाधीनता-आन्दोलन के दौरान विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए यह गीत गाया जाने लगा। धीरे-धीरे यह गीत लोगों में अत्यधिक लोकप्रिय हो गया। ब्रिटिश सरकार इसकी लोकप्रियता से भयाक्रान्त हो उठी और उसने इस पर प्रतिबन्ध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया। सन् १८९६ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेवरवीन्द्रनाथ ठाकुर ने यह गीत गाया। पाँच साल बाद यानी सन् १९०१ में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में श्री चरणदास ने यह गीत पुनः गाया। सन् १९०५ के बनारस अधिवेशन में इस गीत को सरलादेवी चौधरानी ने स्वर दिया।
कांग्रेस-अधिवेशनों के अलावा आजादी के आन्दोलन के दौरान इस गीत के प्रयोग के काफी उदाहरण मौजूद हैं। लाला लाजपत राय ने लाहौर से जिस 'जर्नल' का प्रकाशन शुरू किया था उसका नाम वन्दे मातरम् रखा। अंग्रेजों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़नेवाली आजादी की दीवानी मातंगिनी हाजरा की जुबान पर आखिरी शब्द "वन्दे मातरम्" ही थे। सन्१९०७ में मैडम भीखाजी कामा ने जब जर्मनी के स्टुटगार्ट में तिरंगा फहराया तो उसके मध्य में "वन्दे मातरम्" ही लिखा हुआ था। आर्य प्रिन्टिंग प्रेस, लाहौर तथा भारतीय प्रेस, देहरादून से सन् १९२९ में प्रकाशित काकोरी के शहीद पं० राम प्रसाद 'बिस्मिल' की प्रतिबन्धित पुस्तक "क्रान्ति गीतांजलि" में पहला गीत "मातृ-वन्दना" वन्दे मातरम् ही था जिसमें उन्होंने केवल इस गीत के दो ही पद दिये थे और उसके बाद इस गीत की प्रशस्ति में वन्दे मातरम् शीर्षक से एक स्वरचित उर्दू गजल दी थी जो उस कालखण्ड के असंख्य अनाम हुतात्माओं की आवाज को अभिव्यक्ति देती है। ब्रिटिश काल में प्रतिबन्धित यह पुस्तक अब सुसम्पादित होकर पुस्तकालयों में उपलब्ध है।

[संपादित करें]राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृति

स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्रगान के चयन की बात आयी तो वन्दे मातरम् के स्थान पर सन् १९११ में इंग्लैण्ड से भारत आये जार्ज पंचम की स्तुति-प्रशस्ति में रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जन गण मन को वरीयता दी गयी। इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को "वन्दे मातरम्" गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस आनन्द मठ उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है। इन आपत्तियों के मद्देनजर सन् १९३७ में कांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया। जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है; इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद इकबाल के कौमी तराने सारे जहाँ से अच्छा के साथ बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद डा. राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में २४ जनवरी १९५० में 'वन्दे मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा जिसे स्वीकार कर लिया गया।
डा. राजेन्द्र प्रसाद का संविधान सभा को दिया गया वक्तव्य इस प्रकार है)[8] :
"शब्दों व संगीत की वह रचना जिसे जन गण मन से सम्बोधित किया जाता है, भारत का राष्ट्रगान है; बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिकृत करे, और वन्दे मातरम् गान, जिसने कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभायी है; को जन गण मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले। (हर्षध्वनि)। मैं आशा करता हूँ कि यह सदस्यों को सन्तुष्ट करेगा।" (भारतीय संविधान परिषद, द्वादश खण्ड , २४-१-१९५०)

[संपादित करें]विशेष

वरिष्ठ साहित्यकार मदनलाल वर्मा 'क्रान्त' ने इस गीत का हिन्दी में, स्वाधीनता संग्राम के स्वदेशी आन्दोलन से लेकर साहित्य व आध्यात्मिक साधना के अद्भुत व्यक्तित्व महर्षि अरविन्द ने अंग्रेजी में और वर्तमान राजनीति में राष्ट्रीयता के ध्वजवाहक आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू में अनुवाद किया है।
सन् १८८२ में प्रकाशित इस गीत को सर्वप्रथम ७ सितम्बर १९०५ के कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया था। इसीलिये सन् २००५ में इसके सौ वर्ष पूरे होने पर साल भर समारोह का आयोजन किया गया। ७ सितम्बर २००६ को इस समारोह के समापन के अवसर पर मानव संसाधन मन्त्रालय ने इस गीत को स्कूलों में गाये जाने पर विशेष बल दिया। हालाँकि कुछ लोगों द्वारा इसका विरोध करने पर तत्कालीन मानव संसाधन विकास मन्त्री अर्जुन सिंह ने संसद में वक्तव्य दिया कि 'वन्दे मातरम्' गीत गाना किसी के लिये आवश्यक नहीं किया गया है, यह व्यक्ति की स्वेच्छा पर निर्भर करता है कि वह इसे गाये अथवा न गाये।

[संपादित करें]विवाद

आनन्द मठ उपन्यास को लेकर भी कुछ विवाद हैं, कुछ कट्टर लोग इसे मुस्लिम विरोधी मानते हैं। उनका कहना है कि इसमें मुसलमानों को विदेशी और देशद्रोही बताया गया है[1] । वन्दे मातरम् गाने पर भी विवाद किया जा रहा है। इस गीत के पहले दो बन्द, जो कि प्रासंगिक हैं, में कोई भी मुस्लिम विरोधी बात नहीं है और न ही किसी देवी या दुर्गा की आराधना है। पर इन लोगों का कहना है कि-
  • इस्लाम किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने को मना करता है और इस गीत में दुर्गा की वन्दना की गयी है;
  • यह ऐसे उपन्यास से लिया गया है जो कि मुस्लिम विरोधी है;
  • दो अनुच्छेद के बाद का गीत – जिसे कोई महत्व नहीं दिया गया, जो कि प्रासंगिक भी नहीं है - में दुर्गा की अराधना है।
हालाँकि ऐसा नहीं है कि भारत के सभी मुसलमानों को इस पर आपत्ति है या सब हिन्दू इसे गाने पर जोर देते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ साल पहले विख्यात संगीतकार ए० आर० रहमान ने, जो ख़ुद एक मुसलमान हैं, वन्दे मातरम् को लेकर एक संगीत एलबम तैयार किया था जो बहुत लोकप्रिय हुआ। अधिकतर लोगों का मानना है कि यह विवाद राजनीतिक है। गौरतलब है कि ईसाई लोग भी मूर्ति-पूजा नहीं करते, पर इस समुदाय की ओर से इस बारे में कोई विवाद नहीं है।

[संपादित करें]विविध

क्या किसी को कोई गीत गाने के लिये मजबूर किया जा सकता है अथवा नहीं? यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोय एम्मानुएल वर्सेस केरल राज्य [9] नाम के एक वाद में उठाया गया। इस वाद में कुछ विद्यार्थियों को स्कूल से इसलिये निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होने राष्ट्र-गान जन गण मन को गाने से मना कर दिया था। यह विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्रगान के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे तथा इसका सम्मान करते थे पर गीत को गाते नहीं थे। गाने के लिये उन्होंने मना कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली और स्कूल को उन्हें वापस लेने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान तो करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। अत: इसे न गाने के लिये उस व्यक्ति को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता । चूँकिवन्दे मातरम् इस देश का राष्ट्रगीत है अत: इसको जबरदस्ती गाने के लिये मजबूर करने पर भी यही कानून व नियम लागू होगा।


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Vande Mataram

From Wikipedia, the free encyclopedia
Vande Mataram is the national song of India. It is not to be confused with the national anthem of India. The lyrics were written byBankim Chandra Chatterji, in a mix of Sanskrit and Bengali. The song was written in 1876 [1], but published in 1882. The title means "Long live the Mother[land]". The first version of the Flag of India had "वन्दे मातरम्" (Vande Mataram) written on it.[2]

Controversy

Jana Gana Mana was chosen over Vande Mataram as the National Anthem of independent India in January 241950, although before this date, Vande Mataram was treated as such. Vande Mataram was rejected because Muslims offended by calling India "Mother Durga" (a Hindu goddess) equating the nation with Hinduism, and by its origin as part of Anandamatha, a book they felt had an anti-Muslim message.

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Lyrics of Vande Matram - Hemant Kumar


Vande Matram - Hemant Kumar
Movie : ANAND MATH
Year : Year/Decade: 1952, 1950s
Starring : Prithviraj Kapoor, Geeta Bali
Singer : Lata Mangeshkar
Music : Hemant Kumar
Lyrics by : Bankim Chandra Chatterjee
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