सीमा आजाद को आजीवन कारावास : कहाँ है लोकतंत्र, कहाँ है मानव अधिकार संगठन , कहाँ हैं बी जे पी , अन्ना , रामदेव , न्यायालय , कानून ,


SUNDAY, JUNE 10, 2012

झोलाभर किताबे खरीदने की सजा आजीवन कारावास !

 सीमा आजाद को आजीवन कारावास के खिलाफ देशभर में अभियान चलेगा अंबरीश कुमार लखनऊ ,१० जून । मानवाधिकार कार्यकर्त्ता और पत्रकार सीमा आजाद को आजीवन कारावास के खिलाफ देशभर में अभियान चलेगा । पांच फरवरी २०१० को दिल्ली के पुस्तक मेले से झोला भर किताबो के साथ इलाहाबाद लौट रही सीमा आजाद को पुलिस ने गिरफ्तार कर मार्क्स ,लेनिन और चेग्वेरा की पुस्तकों को माओवादी साहित्य बताकर जो जेल भेजा तो वे तबसे बाहर नही आ पाई और अब निचली अदालत ने न सिर्फ उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी बल्कि अस्सी हजार का जुर्माना भी ठोक दिया । इस सजा को सुनकर उत्तर प्रदेश के जन संगठन और बुद्धिजीवी हैरान है । न कोई हथियार ,न कोई खून खराबा न कोई गंभीर जुर्म और सारा जीवन जेल में ।मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को मानना है कि उत्तर प्रदेश में जहाँ ज्यादातर माफिया और बाहुबली हत्या जैसे गंभीर मामलों में बरी कर दिए जा रहे हो वह झोला भर किताब के नाम पर आजीवन कारावास की सजा न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है । ठीक विनायक सेन की तरह सीमा आजाद को भी सजा सुनाई गई है । पीयूसीएल के सचिव चितरंजन सिंह ने जनसत्ता से कहा -यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और इस मुद्दे को लेकर तेरह जून को दिल्ली में बैठक बुलाई गई है जिसमे मानवाधिकार कार्यकर्त्ता और बुद्धिजीवी हिसा लेंगे और आगे की रणनीति तैयार की जाएगी । देश के विभिन्न राज्यों में इस मुद्दे को लेकर आंदोलन किया जाएगा । गौरतलब है कि सीमा आजाद के मुद्दे पर खुद विनायक सेन ने इस संवाददाता से कहा था - सीमा आजाद पीयूसीएल में हमारी सहयोगी रही है और मैं इस मुद्दे पर पहल करूँगा ।पर विनायक सेन इस दिशा में ज्यादा कुछ नही कर पाए । सीमा आजाद की गिरफ्तारी उस समय हुई जब वे दिल्ली के प्रगति मैदान में पुस्तक मेला देखने के बाद कुछ पुस्तकें लकर लौट रही थी। इलाहाबाद की पुलिस को इन पुस्तकों में माओवाद भी नजर आया जिसके बाद कई माओवादी कमांडरों से संपर्क आदि तलाश कर पुलिस ने वे सभी धाराएं लगा दी, जिससे जमानत न मिलने पाए। पीयूसीएल ने सीमा आजाद की गिरफ्तारी और राजद्रोह की धारा 124 ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी थी। गौरतलब है कि कई राज्यों में पुलिस आमतौर पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को माओवादियों का मुखौटा मानती है । छत्तीसगढ़ में पुलिस ने करीब आधा दर्जन पत्रकारों की सूची बनी है जिन्हें वह माओवादियों का समर्थक मानती है। उत्तर प्रदेश में जब मायावती सत्ता में आई तब सोनभद्र में मानवाधिकार कार्यकर्त्ता रोमा को भी माओवादी बताकर उनपर एनएसए लगा दिया गया था पर जनसत्ता कि खबर के बाद मायावती ने उनपर से सारे फर्जी मामले हटवा दिए थे । जाने माने चित्रकार चंचल ने कहा -इलाहाबाद की पुलिस जिसे किताब (तथाकथित नक्सली साहित्य) से क्रान्ति का ख़तरा लग रहा है ,उसे इलाज की दरकार है ।यह बीमार महकमा है ।छतीसगढ़ में यह अंकित गर्ग बन कर सोनी सोरी के गुप्तांग में कंकड पत्थर डालता है ,इलाहाबाद में सीमा आजाद और विश्व विजय को किताब रखने के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा दिलवाता है ।लोंगो को 'हिंसा' की तरफ जाने के लिए यह पुलिस कितनी जिम्मेवार है ...? इसपर भारतीय विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में शोध किया जाना चाहिए ? राजनैतिक टीकाकार वीरेंद्र नाथ भट्ट ने कहा - उत्तर प्रदेश में शातिर अपराधी बारी हो जाते है और पुस्तक रखने के जुर्म में इतनी बड़ी सजा हैरान करने वाली है ।इस मामले में अखिलेश यादव से किसी ठोस पहल की उम्मीद है वर्ना उनमे और बाकी नेताओं में फर्क क्या रह जाएगा । मायावती सरकार ने तो कई अपराधियों के खिलाफ डंके की चोट पर मुक़दमे वापस लिए गए तो दूसरी तरफ पुस्तक रखने के जुर्म में आजीवन कारावास दे तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है । जन संस्कृति मंच के कौशल किशोर ने कहा -आज ऐसी व्यवस्था है जहाँ साम्प्रदायिक हत्यारे, जनसंहारों के अपराधी, कॉरपोरेट घोटालेबाज, लुटेरे, बलात्कारी, बाहुबली व माफिया सत्ता की शोभा बढ़ा रहे हैं ,सम्मानित हो रहे हैं, देशभक्ति का तमगा पा रहे हैं, वहीं इनका विरोध करने वाले, सर उठाकर चलने वालों को देशद्रोही कहा जा रहा है, उनके लिए जेल की काल कोठरी और उम्रकैद है। यह लोकतांत्रिक अधिकार आंदोलन तथा इस देश में वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों के लिए बड़ा आघात है। जन संस्कृति मंच का मानना है कि सीमा आजाद को कोई भी राहत मिलनी है तो इसकी संभावना सुप्रीम कोर्ट से ही है क्योंकि देखा गया है कि शासन प्रशासन निचली अदालतों को प्रभावित करने में सफल हो रहे हैं । आज सरकारों के लिए माओवाद लोकतांत्रिक आवाजों को दबाने.कुचलने का हथकण्डा बन गया है। जन आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर राज्य के खिलाफ हिंसा व युद्ध भड़काने, राजद्रोह, देशद्रोह जैसे आरोप आम होते जा रहे है। सामाजिक कार्यकर्त्ता और साहित्यकार वीरेंद्र यादव ने कहा -जनाधिकारके लिए समर्पित आन्दोलनों के साथ एकजुटता व् समर्थन व्यक्त करने वाले सभी बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए यह स्तब्धकारी समाचार है । राज्य की इस एकतरफा कारवाई के विरूद्ध प्रभावी जनमत बनाया जाना अत्यंत जरूरी है ।jansatta

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