8.3.11
"नारी" विनाशकारी या मंगलदायनी.......(राज शिवम)
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"-
जहाँ नारी की पूजा होती है,वहाँ देवताओं का निवास होता है।जर्मनी के महान कवि गेटे ने नारी के प्रति अपनी श्रद्धाव्यक्त करते हुए कहा कि -"अपना घर और अच्छी नारी स्वर्ण और मुक्ताओं के समान है।" डा.सेमुअल जानसनके शब्दों में -"नारी के बिना पुरुष की बाल्यावस्था असहाय है,युवावस्था सुखरहित है,और वृद्धावस्थासांत्वना देने वाले सच्चे और वफादार साथी से रहित है।"वास्तव में नारी शक्तिरुपीणी है,ये मूल प्रकृति औरजीवों की जननी है।माँ,बहन या पत्नी सभी रुपों में नारी हमारी शक्ति पुंज है।समय के साथ नारी के कल्याणकारीस्वरुप का क्षरण होता गया और एक समय आया जब नारी को समस्त पापों का मूल मानकर सर्वथा निंदय औरत्याज्य बता दिया।
ऐसा कैसे सम्भव हुआ,कि नारी को नरक का द्वार कहा जाने लगा।नारी के शील,सम्मान का अपहरण होने लगा।नारीसिर्फ भोग विलास का साधन या पुरुषों की गुलाम समझी जाने लगी।नारी को बहुत सी साधन से वंचित किया गया।अंततः आज एक यह भी कारण है,कि हमारा देश,राष्ट्र,समाज और परिवार विनाशकारी कगार पर आकर खड़ा हो गयाहै।नारी जीवन की यह त्याग रही है,वह पुरुष को जन्म देकर तथा उसको सर्वसमर्थ बना कर अपने को उसके प्रतिसमर्पित कर देती है,लेकिन यह हमारा पुरुष प्रधान समाज उस नारी को सदा तिरस्कृत करता रहा है।समाज केसमक्ष नारी अबला बन कर रहने लगी इसलिए तो कहा गया-
"अबला जीवन हाय!तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥ "
कवि जयशंकर प्रसाद जी नारी के सहज कल्याणकारी स्वरुप का दर्शन किया और समाज को सावधान करते हुएकहा कि-
"जिसे तुम समझे हो अभिशाप,
जगत की ज्वालाओं का मूल।
ईश का वो रहस्य वरदान,
कभी मत उसको जाओ भूल।"
अवसर उपस्थित होने पर नारी ने अपने शक्तिशाली रुप को एक बार नहीं अनेक बार प्रकट किया है।अबला नारी केसबला रुप को दुर्गा,चण्डी,भवानी,रानी दुर्गावती,रानी लक्ष्मीबाई,इंदिरा गाँधी,श्रीमति भंडारनायक और मार्गरेट थैयरके रुप में हम देख सकते है।
सच कहा जाये तो नारी पुरुष की प्रेरणा होती है,वह ह्रदय की पहचान करती है।महादेवी वर्मा के शब्दों में- "पुरुषविजय का भूखा होता है,तथा नारी समर्पण की,पुरुष लुटना चाहता है,नारी लुट जाना चाहती है।"नारी केइस महान पक्ष की अवहेलना करके हम प्रायः नाना प्रकार से सताते है,उसका शोषण करते है।हम नारी को अपनेअहम तले दबाना चाहते है।यदि हर पुरुष अपने जीवन से नारी को कुछ क्षण के लिए दूर कर के देखे,तो उसे उसकीअहमियत पता चल जायेगी।वह असहाय होकर नारी को पुकारेगा।नारी सम्मान की जननी है।मनुस्मृति में कहा गयाहै कि-"जिस कुल में कुलवधुएँ शोकाकुल रहती है,वह कुल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।"
वस्तुतः नारी स्नेह और सहिष्णुता की प्रतिमा है,इसी को लक्ष्य कर दार्शनिक राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने एक स्थान परलिखा है कि - "नारी का मधुर समपर्क पुरुष की जीवन के संघर्ष में एक प्रकार का रस प्रदान करता है।"क्याहम नहीं जानते है,कि नारी प्रेम के नाम पे अनेक वीरों ने आश्चर्यजनक कार्य किये और श्रेष्ठ उपलब्धियाँ प्राप्त की है।एक प्रकार से नारी व्यक्तिओं का निर्माण कर के समाज और राष्ट्र का निर्माण करती है।नारी की इसी शक्ति को लक्ष्यकर के दार्शनिक अरस्तु ने कहा था कि-"नारी की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति या अवनतिआधारित है।"स्वतंत्रता संग्राम के मध्य नारीयों के योगदान को देख कर महात्मा गाँधी ने कहा था कि- "नारी कोअबला कहना उसका अपमान करना है।"
आधुनिक काल में नारी का दुसरा पक्ष भी विषरुपी बाण से भी अति भयानक है।आज नारी भी अपनी इस शक्ति कोभूल कर मृगतृष्णाओं,कामनाओं से लद कर अपनों को अलंकृत कर रही है।यह हमारे लिए अभिशाप से कम नहीं है।नारी का यह रुप उनके संस्कारों को छल प्रपंच,कामवासनाओं से उनकी छवि में कालिख जैसा काम करता है।वहीआज भी विशिष्ट सुसंस्कृत नारी की कमी नहीं है।आजकल नारी का विशेष कर विषैला रुप ही नजर आता है।नारी केसम्बन्ध में एक लोकोक्ति काफी प्रचलित है- "त्रिया चरित्र दैव्यों ना जाने।"इसी तथ्य को रखकर एक कहानी हैकि- एक बालब्रह्मचारी संन्यासी गाँव के बाहर कुटिया बना कर रहने लगे।कुछ दिनों में बाबा के अनेक भक्त हो गयेऔर प्रतिदिन बाबा उन्हें अच्छी अच्छी ज्ञान की बात बताते थे।एक दिन एक भक्त बाबा से त्रियाचरित्र के विषय मेंपूछा तो बाबा ने अपने नारी भक्तों से ही उसका जवाब देने को कहा।बात आयी गयी बीत गयी,कुछ दिन बाद एकऔरत बाबा की कुटिया पर आकर जोर जोर से रोने लगी।इस पर गाँव वाले वहाँ पहुँच गये।उस समय बाबा जमीन परलेट कर शवासन ध्यान कर रहे थे।औरत ने ग्रामीणों से बाबा की तरफ ईशारा किया,इस पर गाँव वाले कुछ दुसरा हीसमझकर बाबा को मारने लगे।इस पर बाबा की ध्यान छुमंतर हो गयी।कुछ देर बाद औरत दौड़ कर गयी और गाँववालों को मना की,कि इन्हें क्यों मार रहे है।इसपे वे अवाक रह गए और बोले तुमने ही तो इनकी तरफ ईशारा कियाहै,तो स्त्री बोली मै कुटिया में आयी तो देखी कि बाबा मुर्दा के समान जमीन पर लेटे हुए है।मुझे लगा कि बाबा किमृत्यु हो गयी इसलिए मै रो पड़ी हूँ।भूल के लिए बाबा से सबों ने क्षमा माँगी तो स्त्री ने कहा बाबा यही त्रियाचरित्र है।अतएव आज भी ऐसी ही छल भरी भावना हो गयी है स्त्री कि।क्या यह पतन का मार्ग नहीं है?आज स्त्री और पुरुषदोनो को ही बदलना होगा।आज पुरुष भी कम लम्पट नहीं है।वापस अपने संस्कारों में आना होगा।मनीषियों केशब्दों में- "नारी जीवन की सुलझन संतान है और उसकी चरम सार्थकता मातृत्व में है।इसलिएशक्तिरुपीणी,ममतारुपीणी है,नारी तुम सदा श्रद्धा और भक्ति की अथाह सागर की तरह धीर,वीर,गम्भीरबनो।" जयशंकर प्रसाद ने कहा है-
"नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग-पग-तल में ,
पीयुष श्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में।"
वस्तुतः नारी वायदा नहीं करती परन्तु पुरुष के लिए सबकुछ न्योछावर कर देती है।वह महान अघातों को क्षमा करदेती है,तुच्छ चोटों को नहीं।हे मंगलकारी नारी! शक्ति पुंज में प्रकट हो हमें फिर से प्रकाश दो।
No comments:
Post a Comment