बुरका एक कनवास की जेल

   


बुरका एक कनवास की जेल, जिसे मुस्लिम औरतों ने , मर्दों ने, स्वीकार किया हुआ है . 

बुर्के की जेल में रहने वाली औरतें उन्ही मर्दों की बहने , माएं , और बेटियां भी हैं . पर समाज की स्वीकारता क्या होती है , ये देखें इस विडियो में . 


इन औरतों  पर दया न करें , हम हिन्दुस्तानी नागरिक  भी तो इन्ही बेबस औरतों की तरह अपने नागरिक अधिकारों का चुप रह कर हनन करा रहे हैं . 

हम भी तो अपने लोकतान्त्रिक देश में , मुठी भर नेताओं के हाथ अपने देश को लुटता देखने को मजबूर हैं . 

http://www.youtube.com/watch?v=QMWcpPESyLU

यदि आप इस विडिओ को देखें तो , इन बुरका वाली औरतों की जगह एक आम इंडियन  नागरिक को , अपने को रख कर देखें . 
क्या कोई फरक है इनमें और एक आम हिन्दुस्तानी नागरिक में . 



THE CANVAS PRISON OF MUSLIM WOMEN:

Muslim Women, is this what you are supporting your Islamic Miams?


पर जब मुस्लिम समाज को कोई परेशानी नहीं , तो औरों को क्या परेशानी !

ढिंगा चिका , ढिंगा चिका , ढिंगा चिका




बारह महीनों मैं , बारह तरीके से , चीज़ों के रेट बढाऊंगा रे ,
दिग्गी कहेगा , सिब्बी लडेगा , मैं तो चुप रह जाऊंगा रे ....


ढिंगा चिका , ढिंगा चिका , ढिंगा चिका ...अरे ओ ओ ओ ओ , अर ओ ओ ओ ..
आजकल पिरधान जी इहे कालर ट्यून फ़िट किए हुए हैं अपना पेजर में

|| श्रीगिर्रिराज धरण प्रभु तेरी शरण || Govardhan Puja or Annakut : Thu, 27 Oct 2011

आप सबको गोवेर्धन अथवा अन्नकूट की हार्दिक बधाई. 
      



मार्क ट्वैन का यह कहना बिलकुल सही है , की भारत में सात वार और आठ त्यौहार हैं. 






Giriraj
The day after Deepawali is celebrated as Govardhan Puja (गोवर्धन पूजा this year Thu, 27 Oct 2011) when Mount Govardhan, near Mathura, is worshipped. Pious people keep awake the whole night and cook 56 (or 108) different types of food for the bhog (भोग - the offering of food) to Krishna. This ceremony is called annkut (अन्‍नकूट) which means a mountain of food. Various types of food – cereals, pulses, fruit, vegetables, chutneys, pickles, and salads – are offered to the Deity and then distributed as prasada to devotees. This festival is in commemoration of the lifting of Mount Govardhan by Lord Krishna.
According to a legend, before Krishna was born, Indra, the god of Rain, was the chief deity of Vraj. Then Krishna instigated the people to stop worshipping Indra. Indra wanted to show his power over Krishna and brought about a cloud-burst which flooded the countryside for many days. People were afraid that the downpor was a result of their neglect of Indra. But Krishna assured them that no harm would befall them. He lifted Mount Govardhan with his little finger and sheltered men and beasts from the rain. This gave him the epithet Govardhandhari. After this, Indra accepted the supremacy of Krishna.
In the temples in Mathura and Nathadwara, the idols of the deities are given milk bath, are dressed in shining attires with lots of ornaments. After the offering of prayers, sweets are raised in the form of a mountain before the deities as ‘Bhog’ and after that the devotees approach the mountain of Food in order to take prasad from it.
According to the Vedic scriptures Giri Govardhan is greater than even the transcendental kingdom of Vaikuntha (बैकुण्ठ) , the eternal abode of Lord Vishnu.
|| श्रीगिर्रिराज धरण प्रभु तेरी शरण ||

अब अमेरिका से पंगा कौन ले, डॉ वर्मा का रहस्योद्घाटन

सर, 
इस मेल को फ़ारवर्ड करते रहिये। 
डॉ. ओम वर्मा

21.10.11

आतंकी और बर्बर अमेरिका का एक और शिकार गद्दाफी मात्र दो बूंद तेल के लिए



जैसे दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी देश अमेरिका ने पहले बिना बात सद्दाम और उसके देश इराक से दो युद्ध किये और सद्दाम और उसके देश इराक को खत्म करके वहां का तेल पी गया। आपको याद होगा कि युद्ध के बाद इराक में कोई रसायनिक हथियार नहीं मिले थे, जिस बात को लेकर ही अमेरिका और उसकी रखेल संस्था यू.एन.ओ. ने इराक पर युद्ध किया गया था। 

अब बिना कारण लीबिया को तबाह करके, झूँठे इल्जाम लगा कर,  मुअम्मर गद्दाफी को व्यर्थ बदनाम किया और आज उसे मार डाला है और अब वो अमेरिका लीबिया का तेल पीयेगा, जिसका वो दशकों से प्यासा था।  

मैं लीबिया में 12 वर्ष रहा हूँ। वहां नागरिको को संपूर्ण शिक्षा (जिसमें विदेश में जाकर शिक्षा लेना भी शामिल है), चिकित्सा (जिसमें विदेश में जाकर उपचार लेने का खर्चा  भी शामिल है) और लोगो को घर बना कर देना सब कुछ सरकार करती है। उसने पूरे देश में नई सड़कें (जिन पर कोई टोल नहीं लगता है), अस्पताल, स्कूल, मस्जिदें, बाजार बस कुछ नया 
बनवाया था। मुझसे भी  पूरे 12 वर्षो में  नल, बिजली, टेलीफोन का कोई पैसा नहीं लिया। मझे खाने पीने, पेट्रोल, सब्जी, फल, मीट, मुर्गे, गाड़ियां, फ्रीज, टीवी, बाकी घर की सुविधाएं, एयर ट्रेवल और सब कुछ सुविधाएँ मुफ्त में मिली हुई थी।   

उसने लीबिया जो एक रेगिस्तान है, को हरा भरा ग्रीन बना दिया था। एक बार हमारे भारत के राजदूत ने मेरे डायरेक्टर को कहा था कि हम भारतवासी हरे भारत को काट कर रेग्स्तान बना रहे हैं और मैं यहां आकर देखता हूँ कि आपने रेगिस्तान को हरा भरा बना दिया है। 

गद्दाफी ने लीबिया में मेन मेड रीवर बनवाई थी जो दुनिया का सबसे मंहगा प्रोजेक्ट है, जिसके बारे में कहा गया था कि यह प्रोजेक्ट इतना अनाज पैदा कर सकता है जिससे पूरे अफ्रीका का पेट भर जाये, और जिसका ठेका कोरिया को दिया गया था। जब गद्दाफी यह ठेका देने कोरिया गया था तो उसके स्वागत में कोरिया ने चार दिन तक स्वागत समारोह किये थे और उसके स्वागत में चालीस किलोमीटर लंबा कालीन बिछाया था। इस ठेके से कोरिया ने इतना कमाया था कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था जापान जैसी हो गई थी। मुझ पर विश्वास नहीं हो तो गूगल की पुरानी गलियों में जाओ, आपको सारे सबूत मिल जायेंगे।

मैं उस महान शासक को श्रद्धांजलि देता हूँ और उसकी आत्मा की शांति के लिए दुआ करता हूँ।  उसे मिस्र के जमाल अब्दुल नासर नें मात्र 28 वर्ष की उम्र में लीबिया का शासक बना दिया था। वह भारत का अच्छा मित्र था। मालूम हो कि गद्दाफी ने 41 साल तक लीबिया पर राज किया है।  

गद्दाफी था महान नदी निर्माता 

लीबीया और गद्दाफी का नाम आजकल हम सिर्फ इसलिए सुन रहे हैं क्योंकि गद्दाफी को गद्दी से हटाने के लिए अमेरिका बमबारी कर रहा है. लेकिन गद्दाफी के दौर में उनके  काम का जिक्र करना भी जरूरी है जो न केवल लीबीया बल्कि विश्व इतिहास में अनोखा है. गद्दाफी की नदी. अपने शासनकाल के शुरूआती दिनों में ही उन्होंने एक ऐसे नदी की परियोजना पर काम शुरू करवाया था जिसका अवतरण और जन्म जितना अनोखा था शायद इसका अंत उससे अनोखा होगा.
लीबिया की गिनती दुनिया के कुछ सबसे सूखे माने गए देशों में की जाती है। देश का क्षेत्रफल भी कोई कम नहीं। बगल में समुद्र, नीचे भूजल खूब खारा और ऊपर आकाश में बादल लगभग नहीं के बराबर। ऐसे देश में भी एक नई नदी अचानक बह गई। लीबिया में पहले कभी कोई नदी नहीं थी। लेकिन यह नई नदी दो हजार किलोमीटर लंबी है, और हमारे अपने समय में ही इसका अवतरण हुआ है! लेकिन यह नदी या कहें विशाल नद बहुत ही विचित्र है। इसके किनारे पर आप बैठकर इसे निहार नहीं सकते। इसका कलकल बहता पानी न आप देख सकते हैं और न उसकी ध्वनि सुन सकते हैं। इसका नामकरण लीबिया की भाषा में एक बहुत ही बड़े उत्सव के दौरान किया गया था। नाम का हिंदी अनुवाद करें तो वह कुछ ऐसा होगा- महा जन नद।




हमारी नदियां पुराण में मिलने वाले किस्सों से अवतरित हुई हैं। इस देश की धरती पर न जाने कितने त्याग, तपस्या, भगीरथ प्रयत्नों के बाद वे उतरी हैं। लेकिन लीबिया का यह महा जन नद सन् 1960 से पहले बहा ही नहीं था। लीबिया के नेता कर्नल  गद्दाफी ने सन् 1969 में सत्ता प्राप्त की थी। तभी उनको पता चला कि उनके विशाल रेगिस्तानी देश के एक सुदूर कोने में धरती के बहुत भीतर एक विशाल मीठे पानी की झील है। इसके ऊपर इतना तपता रेगिस्तान है कि कभी किसी ने यहां बसने की कोई कोशिश ही नहीं की थी। रहने-बसने की तो बात ही छोड़िए, इस क्षेत्र का उपयोग तो लोग आने-जाने के लिए भी नहीं करते थे। बिल्कुल निर्जन था यह सारा क्षेत्र।

नए क्रांतिकारी नेता को लगा कि जब यहां पानी मिल ही गया है तो जनता उनकी बात मानेगी और यदि इतना कीमती पानी यहां निकालकर उसे दे दिया जाए तो वह हजारों की संख्या में अपने-अपने गांव छोड़कर इस उजड़े रेगिस्तान में बसने आ जाएगी। जनता की मेहनत इस पीले रेगिस्तान को हरे उपजाऊ रंग में बदल देगी।

अपने लोकप्रिय नेता की बात लोक ने मानी नहीं। पर नेता को तो अपने लोगों का उद्धार करना ही था। कर्नल गद्दाफी ने फैसला लिया कि यदि लोग अपने गांव छोड़कर रेगिस्तान में नहीं आएंगे तो रेगिस्तान के भीतर छिपा यह पानी उन लोगों तक पहुंचा दिया जाए। इस तरह शुरू हुई दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे महंगी सिंचाई योजना। इस मीठे पानी की छिपी झील तक पहुंचने के लिए लगभग आधे मील की गहराई तक बड़े-बड़े पाईप जमीन से नीचे उतारे गए। भूजल ऊपर खींचने के लिए दुनिया के कुछ सबसे विशालकाय पंप बिठाए गए और इन्हें चलाने के लिए आधुनिकतम बिजलीघर से लगातार बिजली देने का प्रबंध किया गया।

तपते रेगिस्तान में हजारों लोगों की कड़ी मेहनत, सचमुच भगीरथ-प्रयत्नों के बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया, जिसका सबको इंतजार था। भूगर्भ में छिपा कोई दस लाख वर्ष पुराना यह जल आधुनिक यंत्रों, पंपों की मदद से ऊपर उठा, ऊपर आकर नौ दिन लंबी यात्रा को पूरा कर कर्नल की प्रिय जनता के खेतों में उतरा। इस पानी ने लगभग दस लाख साल बाद सूरज देखा था।

कहा जाता है कि इस नदी पर लीबिया ने अब तक 27 अरब डालर खर्च किए हैं। अपने पैट्रोल से हो रही आमदनी में से यह खर्च जुटाया गया है। एक तरह से देखें तो पैट्रोल बेच कर पानी लाया गया है। यों भी इस पानी की खोज पैट्रोल की खोज से ही जुड़ी थी। यहां गए थे तेल खोजने और हाथ लग गया इतना बड़ा, दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञात भूजल भंडार।

बड़ा भारी उत्सव था। 1991 के उस भाग्यशाली दिन पूरे देश से, पड़ौसी देशों से, अफ्रीका में दूर-दूर से, अरब राज्यों से राज्याध्यक्ष, नेता, पत्रकार जनता- सबके सब जमा थे। बटन दबाकर उद्घाटन करते हुए कर्नल गद्दाफी ने इस आधुनिक नदी की तुलना रेगिस्तान में बने महान पिरामिडों से की थी। वे उस दिन अपने दो शत्रु देशों- अमेरिका और इंग्लैंड के खिलाफ भी जहर उगलने से नहीं चूके थे। उन्होंने इस नदी को एक क्रांतिकारी नदी की संज्ञा दी थी और एक ही सांस में कह डाला था कि क्रांतिकारी जनता ऐसे शत्रुओं को ठिकाने लगा देगी।



वे भला यह बात कैसे बता पाते कि इस क्रांतिकारी योजना का सारा काम उनके शत्रु देशों की कंपनियों ने ही किया है। दक्षिणी-पश्चिमी लंदन के एक कीमती मोहल्ले में बनी एक बहुमंजिली इमारत की चैथी मंजिल पर था, इस नई नदी को रेगिस्तान में उतारने वाली कंपनी का मुख्यालय। ‘अमेरिकी इंजीनियरिंग कार्पोरेशन हैलीबर्टन’ की यूरोपी शाखा ‘ब्राउन एंड रूट्स’ नामक कंपनी इसी जगह से काम करती थी। ब्राउन एंड रूट्स ने ही इस महा जन नद की पूरी रूपरेखा तैयार की थी।


Benghazi, Libya

लेकिन आज यही सारा संसार लीबिया के इस लोकप्रिय बताए गए नेता के खिलाफ वहां की जनता का साथ देने में जुट गया है। तब भी पर्यावरण का हित देखते तो यह पूरी योजना, महा जन नद लोक विरोधी ही दिखती। 



लोग बताते हैं कि इन नद से पैदा हो रहा गेहूं आज शायद दुनिया का सबसे कीमती गेहूं है। लाखों साल पुराना कीमती पानी हजारों-हजार रुपया बहाकर खेतों तक लाया गया है-तब कहीं उससे दो मुट्ठी अनाज पैदा हो रहा है। यह भी कब तक? लोगों को डर तो यह है कि यह महा जन नद जल्दी ही अनेक समस्याओं से घिर जाएगा और रेगिस्तान में सैकड़ों मीलों में फैले इसके पाईप जंग खाकर एक भिन्न किस्म का खंडहर, स्मारक अपने पीछे छोड़ जाएंगे।



लीबिया में इस बीच राज बदल भी गया तो नया लोकतंत्र इस नई नदी को बहुत लंबे समय तक बचा नहीं सकेगा। और देशों में तो बांधों के कारण, गलत योजनाओं के कारण, लालच के कारण नदियां प्रदूषित हो जाती हैं, सूख भी जाती हैं। पर यहां लीबिया में पाईपों में बह रही इस विशाल नदी में तो जंग लगेगी। इस नदी का अवतरण, जन्म तो अनोखा था ही, इसकी मृत्यु भी बड़ी ही विचित्र होगी।

(फ्रेड पीयर्स का यह लेख गांधी मार्ग में प्रकाशित हुआ है. प्रस्तुति अनुपम मिश्र.)


क्या आप अमेरिका के राष्ट्रपति की अय्याशियां भूल गये



Love Letter from Monica Lewinsky to Bill Clinton

A letter from Monica S. Lewinsky to President Clinton, dated June 29, 1997, which was part of the evidence gathered by Kenneth W. Starr.



Love Letter from Monica Lewinsky to Bill Clinton



29 June 1997
Dear Handsome,
I really need to discuss my situation with you. We have not had any contact for over five weeks. You leave on Sat. and I leave for Madrid with the SecDef on Monday returning the 14th of July. I am then heading out to Los Angeles for a few days. If I do not speak to you before I leave, when I return it will have been two months since we last spoke. Please do not do this. I feel disposable, used and insignificant. I understand your hands are tied but I want to talk to you and look at some options. I am begging you one last time to please let me visit briefly Tuesday evening. I will call Betty Tuesday afternoon to see if it is o.k. - M


Posted

कश्मीर को आजाद कहना विचारों की स्वतंत्रता कहलाती हैnehru chacha: not a blade of grass grows there.




Rameshwar Arya has left a new comment on the post "Anti-National NGOs in India and AFSPA Act":

Harsh Jain

वर्त्तमान समय में देशद्रोह की बात करना समाज सेवा कहलाता है
आतंकवादियों को बचाना मानवाधिकारवाद कहलाता है
हिन्दू धर्म को गलियां देना सेकुलरवाद कहलाता है
राष्ट्रभक्त संगठनो को गलियां देना देश भक्ति कहलाता है
मुसलमानों की चमचागिरी धर्म निरपेक्षता कहलाती है
कश्मीर को आजाद कहना विचारों की स्वतंत्रता कहलाती है
शत्रु राष्ट्र को प्रोत्साहन देना अहिंसा कहलाता है
कायरता पूर्ण बयां देना अमन का सन्देश कहलाता है
समाज को जातियों में विभाजित करना दलित प्रेम कहलाता है
गो हत्या का विरोध करना साम्प्रदायिकता कहलाता है
इंट का जवाब पत्थर से देने की बात करना विद्वेष फैलाना होता है
बेवजह भूक हड़ताल पर बैठना गाँधी गिरी कहलाती है
बी जे पी का कोई भी बयान राजीति करना कहलाता है
मोदी के खिलाफ बोलने वाला सबसे इमानदार व्यक्ति कहलाता है
भारत माता की जय बोलने वाला संघी कहलाता है
वन्दे मातरम बोलने वाला भगवा आतंकवादी कहलाता है

ऐसे समय में हम इन महानुभाव दनावाधिकर्वादियो से इससे ज्यादा क्या उम्मीद कर सकते हैं ?
-
Indira Jaising ( इन्द्र जयसिंह )

S. A. R. GILANI ( एस.ऐ.आर.गिलानी )

Ghulam Nabi HAGRU ( गुलाम नबी हगरू )

Arundhati Roy ( अरुंधती रॉय )

N. D. Pancholi ( एन.डी.पंचोली )

Shubh Mathur (शुभ माथुर )

Sandeep Vaidya ( संदीप वैद्य )

Human Rights Watch (हमन रिघ्ट्स वाच )

Jagmohan Singh and Anand Patwardhan ( जगमोहन सिंह एंड आनंद पटवर्धन )

Colin Gonsalves ( कोलिन गोंसाल्वेस )

Nandita Haksar ( नंदिता हक्सर )

Nirmalangshu Mukherji ( निर्मालान्ग्शु मुखर्जी )

A.G. Noorani ( ऐ.जी . नूरानी )

Ram Jethmalani (रामजेठमलानी )

PUCL (पी.यू .सी.एल )

PUDR (पी.यू.डी .आर )

Hindusthan Times ( हिंदुस्तान टाईम्स )

Kashmir तिमेस ( कश्मीर टाईम्स )

Ram Puniyani ( राम पुनियानी )

Praful Bidwai (प्रफुल बिदवई )

Amnesty International Appeal ( अमनेस्टी इंटरनेश्नल अपील )

Mushtaq A. Jeelani ( मुश्ताक ऐ . जीलानी )

Inam ul Rehman ( इमाम उल रहमान )

Revolutionary Democracy ( रेवोलुश्नारी डेमोक्रेसी )

Join Chirag for Human Rights ( ज्वाइन चिराग फॉर हमन रैघ्ट्स )

Kashmir library ( कश्मीर लाइबरेरी )

JKCCS ( जे . के . सी . सी . एस )
Justice for Afzal गुरू ( अफसल गुरु को न्याय दो )
www.justiceforafzalguru.org 



   


 “Not a blade of grass grows there”. 


This was coming from our prime minister.



Nehru HAS INDIA BEEN TOO KIND TO NEHRU?
Our first prime minister, Mr Jawaharlal Nehru or Chacha Nehru, as he is fondly called, was a man who took charge of a country in ruins. His task was onerous: to build a country from scratch. Instead, he left the country poorer, nearly bankrupt and defeated. Has India been too kind to Nehru? This question has again been raised by the re-publication of Nehru: a Contemporary’s Estimate a book by Walter Crocker. He was Australia’s high commissioner to India in 1960s and wrote the book in 1965. He was an avid Nehru watcher and admired his suaveness, good- breeding and family history.
The book, however, is just a subset of all the tragedies of the time. Who can forget Nehru’s famous reply in Parliament when asked about the lost area in Kashmir which Pakistan handed over to China: “Not a blade of grass grows there”. This was coming from our prime minister.
Nehru was, no doubt, an intelligent man. He was a patriotic man at heart.. But he was impulsive and acted rather impractically at times. His deficiencies came with a huge price tag. Indeed, he was the man behind big industrialization projects and of course, IITs. He was an ardent supporter of Science. His ideas on secularism were the basis of our secular fabric. But he was not an able administrator as is evident in his foreign and economic policies.
Many of us believe that the Chinese aggression in 1962: the month long war which ended in India’s bitter defeat; was a result of Nehru being duped. It is often believed that he completely trusted China. Indeed, he signed Panchsheel agreement and accepted even the Chinese annexation of Tibet in a 1954 agreement without settling the Indo-Tibetan border. But many critics argue that he was completely distrustful of China right from the outset. Times of London correspondent, Neville Maxwell argues that Indian army, which was very feeble at that time, provoked the Chinese at the behest of Nehru government which led to a full blown war. Maxwell’s records carry value as he is the only journalist to have accessed the confidential Brooks-Bhagat committee report. This report, submitted by the Henderson Brooks committee set up by the Indian army to study the debacle, is still out of public domain. It shows that some cold and bitter facts which go against the official position that Nehru was duped must have found their way into it.
The border dispute was always there. But it was in March 1959, that tensions really did start to surface. During this time, Nehru had sent a categorically stated rejoinder to the then Chinese premier, Zhou Enlai; stating that “’the area now claimed by China has always been depicted as part of India on official maps”. This foreclosed any hope of compromise on this issue. Although this fact can easily be debated as it is recorded in the official Chinese diaries.
If we do believe that Nehru was cheated by En Lai and didn’t see the war coming; we cant digest the fact that Indian army wasn’t prepared for the war at all even though the two nations attained independence at nearly the same time. Strategic defense capabilities of the Indian forces were severely constrained at that time. In his zest for non-aligned movement, Nehru forgot to build up defense capabilities. The 62 war jolted us out of the blue.
But much before this war, on January 1, 1949; India had already made another grave strategic mistake under Nehru. It was the day when ceasefire was declared between India and Pakistan in Kashmir with India having declared the victory over a tribal force comprising mainly of Pakistani army soldiers. At that point of time, Pakistan was still occupying a large part of Kashmir, which it divided later into “Azaad” Kashmir (the PoK) and eastern area which it “gifted” to the Chinese. Instead of wresting that area from a defeated force, Nehru declared ceasefire and despite pleas from Indian forces, took the matter to UN. It’s a well known fact that we could have lost the whole of Kashmir in voting at the UN had Russia (USSR then) not vetoed the proposal. The Kashmir problem is still lingering on with Pakistan demanding a plebiscite.
Moving beyond the wars, his economic policies also deeply hampered the nation. His reliance on socialism and prejudices against the capital systems led India on the brink of crisis in 1960s. Inflation was rising and exports shrinking. The wars with China and Pakistan (1965) made matters worse. We think that India was near bankrupt in 1991. However, we were at the same position in 1965. Somehow, we survived the crisis by allowing some controls on exports to wear off. Nehru’s policies that public sector should be at the “commanding heights of the economy” and that exports are a necessary evil, which should be curtailed, were a failure.
Nehru’s legacies are not much to write about. Still, we are repeatedly told that India should be grateful to him. We, no doubt, admire his scientific temper and penchant for big industries and education. But the policies he followed have left us with burdens such as the Kashmir dispute, article 356, border dispute with China, socialism and what not? Its time to ask the question: Have we been too kind to Nehru?
Quoting from the book by Crocker: “For a man who left the country not better fed, clothed or housed, more corruptly governed…”; its time we take a relook at the history.
Mayank Sharma


क्यों मुझे गाँधी पसंद नहीं है ?


   

dear friends , 

i have pasted this article, in the hope that , some gandhian will be able to clarify the situation.

ashok gupta

  जी का फेसबुक पर एक लेख है जरा देखें 


क्यों मुझे गाँधी पसंद नहीं है ?
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में
थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।
गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व
गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं,
किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग
को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों
को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम
लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते
हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी
केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग
1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस
हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में
वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी
श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी
प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को
उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम
एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द
सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम
बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं
दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा
अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर
दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से
कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर
रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु
गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ
पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था
कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की
सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय
पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के
सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त
करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की
मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब
अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व
बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर
किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व
माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का
परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के
लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे
दी गयी।

17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया

18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार
उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़ ?????
विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू
ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी…मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५
टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस
समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को
मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा….फिर पुलिस ने मजबूर
हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया…. और वो हिंदू— गाँधी
मरता है तो मरने दो —- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे…,,,
रिपोर्ट — जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट….. फॉर गाँधी वध क्यो ?

२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह
करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी
लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे
जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह
अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी
थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी
लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी
दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के
सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद
दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी
राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया
होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर
उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा
नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता

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use of the festivals and auspicious days , for an individual !





use of the festivals and auspicious days , for an individual !


answer : 


these festivals are not just pump-and show, for entertainment.  


they have an spiritual significance also.  


for understanding with a common example.  these auspicious days are like a "sale-season/day" as in a super market.  


prayers and celebration on these days, takes us to the love of god, with little effort only.  so it is like a bumber sale day in a super market. 


secondly, in indian scriptures, celebrations, and festivities are another form of the god the almighty.  


according to indian sprituality, god is the name for joy/happiness/comfort/feel good and over and above all the god is "bliss".  and festivals are god's another menifestation.  


request : 
(my english expression is not good, so if interested, you are welcome to question me, correct me, enquire me , suggest me) 


happy diwali : 
ashok gupta
delhi, india


ashok.gupta4@gmail.com , 
phone : +91-9810890743 or 
skype: ashok.gupta004


synopsis about the festivals: 



Naraka Chaturdashi:

    This day celebrates the victory of the God Krishna over the demon of filth, Narakasura.



   

Bhai Dooj or Yam Dwitiya   : 
This festival is also the day of worship of Yama, the god of death 

As the legend goes Yamraj, the God of Death visited his sister Yami on this particular day. She put the auspicious tilak on his forehead, garlanded him and led him with special dishes and both of them together ate the sweets, talked and enjoyed themselves to their heart's content, while parting Yamraj gave her a special gift as a token of his love and in return Yami also gave him a lovely gift which she had made with her own hands. That is why this day of Bhayyaduj is also known by the name of "YAMA-DWITIYA"


yama is the brother in law of krishna , as yamuna , his sister is married to krishna. 


anybody, celebrating this festival , is away from the torture of yamraj, after death, in all the circumstances. 


Govardhan Puja, also called Annakut (meaning a heap of grain)[clarification needed], is celebrated as the day Krishna defeated Indra

are you ready for this bouquet of festivals  :
what is the use of these festivals, for an individual ?: (if you want to know go to the link: 
(        )
According to another popular legend, when the Gods and demons churned the ocean for Amrita or nectar, Dhanvantari (the physician of the Gods and an incarnation of Vishnu) emerged carrying a jar of the elixir on the day of Dhanteras.
Dhanteras is also known as Dhantrayodashi, and takes place two days before Diwali, in honour of Dhanavantri, the physician of the gods and an incarnation of Vishnu.


 

Narak chaturdashi or Choti Diwali 25 oct.and also the birthday of lord hanumaan.
26 october, wednesday, Diwali,

Govardhan Puja or Annakut : Thu, 27 Oct 2011

Bhai Duj, Yamdwitiya :mantra:- Markandeya, you are immortal. Please give my brothers also a long life. This day is also known as Yamdwitiya.


Yama Dvitiya – A Day Dedicated To Brothers and Sisters


क्या आप दिवाली के उत्सव के गुलदस्ते के लिए तैयार हैं !

मेरे ब्लॉग पर जाने का लिंक : 


न नरक चतुर्दशी / छोटी दिवाली  25 oct. और वीर हनुमान का जन्म दिन भी (क्या सोचा नरक चतुर्दशी क्यों कहेते हैं ! गूगल कीजिये )

26 october, wednesday, Diwali

 
 
   गोवर्धन या अन्नकूट   Thu, 27 Oct 2011

 भाई दूज : कैसे शुरू हुई !  यम द्वित्या क्यों बोलते हैं . ( यम भाई और यमुना बहन )


       

        Narkasur Effigy   
Effigy of Narkasur from Goa

              

         


                                Giriraj

govardhan1    

    


 दिवाली की शुभ कामनाएं