हैप्पी वेलेंटाईन डे , यानि हैप्पी मदनोत्सव , यानि हैप्पी होली ,

  

बसंत आ गया , 


पर अफ़सोस , इतने सालों से हम एक देसी त्यौहार होली में ही उलझे पड़े हैं .


अब तो हमारे पास आपनी सरकार है , पैसा है , बंगला है,  कार है , फिर भी वाही कीचड वाला होली का त्यौहार ही क्यों . 


अब हर चीज़ का इम्पोर्ट अलाउड है , तो त्योहारों का क्यों नहीं , 


कब तक हम दकियानूसी त्योहारों में भंग पिटे रहेंगे , 


इसलिए आइये मनाएं वलेंताईन डे . 


इस पर जब पता करने चला तो , शुरुआत गूगल से हुई , पता चला कि इसका हिस्टरी में भी कोई सिर पैर नहीं , पर मजा खूब है , तो सिर पैर का क्या करना . 


और यदि आपको contrl C contrl V कि टेक्नोलोजी आती है तो बड़ा लेखक बनाने में क्या देर है ; 


चोरी का ही सही पर , आपके लिए माल ढूढ  कर  हाज़िर है : 


चोरी का लिंक : http://hindini.com/fursatiya/archives/584


पर तकलीफ क्यों करते हैं : लेख यहीं पर हाज़िर है : - 


वनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है…
वैलेंटाइन दिवस
बसंत पंचमी निकल गयी। वैलेंटाइन दिवस भी बस आना ही चाहता है। हमें लगा इस मौके पर कुछ न लिखा न तो क्या लिखा। लिहाजा लिखने बैठे मेरा मतलब बिस्तर पर लेटे तो अपना पुराना माल दिख गया। सोचा पहिले इसे आपको दिखा दें फ़िर कुछ आगे लिखा जाये।
यह लेख अभिव्यक्ति में ठीक दो साल पहिले प्रकाशित हो चुका है। हमने अपने ब्लाग पर पोस्ट किया कि नहीं यह देखने के लिये जब हमने सर्च करी तो पता चला कि यह हमारे ब्लाग पर तो नहीं लेकिन बनारसी भाई गौरव शुक्ला के यहां जस का तस विराजमान है। क्या इसी को कहते हैं – अंधे पीसें कुत्ते खायें? लेख हमारा है लेकिन छपा वो गौरव के ब्लाग पर पहिले है तो क्या मेरा यहां छापना यह चोरी कहलायेगा? कोई हमें बतायेगा? :)
ऐसे प्रशंसक भी कहां मिलते हैं भाई! जो आपकी रचनायें पढ़ें पसंद करें और उसको अपना समझें! :)

मिलना नारद का श्री श्री विष्णु महाराज से

पुराना ट्रक
विष्णु जी बिस्तर पर करवटें बदलते-बदलते थक गए थे। उनके उलटने-पुलटने से शेषनाग भी उसी तरह फुफकार रहे थे जिस तरह चढ़ाई पर चढ़ते समय कोई पुराना ट्रक ढेर सारा धुआँ छोड़ता है। अचानक सामने से नारद जी चहकते हुए आते दिखे। नारद जी को देखकर विष्णु जी बोले, ”क्या बात है नारद! तुम्हारा चेहरा तो किसी टीवी चैनेल के एंकर की तरह चमक रहा है।
नारद जी बोले, ”प्रभो आप भी न! मसख़री करना तो कोई आपसे सीखे। कितने युग बीत गए कृष्णावतार को लेकिन आपका मन उन्हीं बालसुलभ लीलाओं में रमता है।”
नारद जी के मुँह से ‘आप भी न!’ सुनकर विष्णु जी को अपनी तमाम गोपियाँ, सहेलियाँ याद आ गईं जो उनकी शरारतों पर पुलकते हुए उन्हें ‘आप भी न’ का उलाहना देती थीं।
नारद जी के मुँह से ‘आप भी न!’ सुनकर विष्णु जी को अपनी तमाम गोपियाँ, सहेलियाँ याद आ गईं जो उनकी शरारतों पर पुलकते हुए उन्हें ‘आप भी न’ का उलाहना देती थीं।
”हाँ, नारद सच कहते हो। आख़िर रमें भी क्यों न। मेरा सबसे शानदार कार्यकाल तो कृष्णावतार का ही रहा। उस दौर में कितना आनंद किया मैंने। मेरे भाषणों की एकमात्र किताब -गीता भी, उसी दौर में छपी। मेरा मन आज भी उन्हीं स्मृतियों में रमता है। बालपन की शरारतों को याद करके मन उसी तरह भारी हो जाता है जिस तरह किसी भी प्रवासी का मन होली-दीवाली भारी होने का रिवाज़ है। विष्णुजी पीतांबर से सूखी आँखें पोछने लगे।
यह ‘अँखपोछवा’ नाटक देखना न पड़े इसलिए नारद जी नज़रें नीची करके क्षीरसागर में, बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है, का सजीव प्रसारण देखने लगे।
विष्णु जी ने अपना नाटक पूरा करने के बाद जम्हुआई लेते हुए नारद जी से कहा, ”और नारद जी कुछ नया ताज़ा सुनाया जाय। न हो तो मृत्युलोक का ही कथावाचन करिए। क्या हाल हैं वहाँ पर जनता-जनार्दन का?”

स्वागत है ऋतुराज तुम्हारा

बसंत
नारद जी गला खखारकर बिना भूमिका के शुरू हो गए-
”महाराज पृथ्वीलोक में इन दिनों फरवरी का महीना चल रहा है। आधा बीत गया है। आधा बचा है। वह भी बीत ही जाएगा। जब आधा बीत गया तो बाकी आधे को कैसे रोका जा सकता है! हर तरफ़ बसंत की बयार बह रही है। लोग मदनोत्सव की तैयारी में जुटे हैं। कविगण अपनी यादों के तलछट से खोज-खोजकर बसंत की पुरानी कविताएँ सुना रहे हैं। कविताओं की खुशबू से कविगण भावविभोर हो रहे हैं। कविताओं की खुशबू हवा में मिलकर के नथुनों में घुसकर उन्हें आनंदित कर रही है। वहीं कुछ ऊँचे दर्जे की खुशबू कतिपय श्रोताओं के ऊपर से गुज़र रही हैं। ये देखिए ये कविराज ने ये कविता का ‘ढउआ’ (बड़ी पतंग) उड़ाया तथा शुरू हो गए-
”स्वागत है ऋतुराज तुम्हारा, स्वागत है ऋतुराज।
हर तरफ़ बसंत की बयार बह रही है। लोग मदनोत्सव की तैयारी में जुटे हैं। कविगण अपनी यादों के तलछट से खोज-खोजकर बसंत की पुरानी कविताएँ सुना रहे हैं। कविताओं की खुशबू से कविगण भावविभोर हो रहे हैं। कविताओं की खुशबू हवा में मिलकर के नथुनों में घुसकर उन्हें आनंदित कर रही है।
ऋतुराज के मंझे में वे आगे साज/ बाज /आज/ काज /खाज /जहाज़ की सद्धी (धागा) जोड़ते हुए ढील देते जा रहे हैं। उधर से दूसरी कविता की पतंग उड़ी है जिनमें बनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है के पुछल्ले के साथ दिगंत/संत/महंत/अनंत/कहंत/हंत/दंत घराने का धागा जुड़ा है। पतंग-ढउवे का जोड़ा क्षितिज में चोंच लड़ा रहा है। दोनों की लटाई से धागे की ढील लगातार मिल रही थी तथा वे हीरो-हीरोइन की तरह एक दूसरे के चक्कर काट रहे हैं। दोनों एक दूसरे से चिपट-लिपट रहे हैं। गुत्थमगुत्था हो रहे हैं। तथा सरसराते हुए फुसफुसा रहे हैं- हम बने तुम इक दूजे के लिए।
और प्रभो, मैं यह क्या देख रहा हूँ। दोनों के सामने एक पेड़ की डाल आ गई है। वे पेड़ की डाल में फँस के रहे गए हैं। पेड़ की डाल कुछ उसी तरह से है जिस तरह जाट इलाके का बाप अपने बच्चों को प्रेम करते हुए पकड़ लेने पर फड़फड़ाता है तथा उनको घसीट के पंचायत के पास ले जाता है ताकि पंचायत से न्याय कराया जा सके।”
विष्णु जी बोले, ”यार नारद ये क्या तुम क्रिकेट की कमेंट्रीनुमा बसंत की कमेंट्री सुना रहे हो? ये तो हर साल का किस्सा है। कुछ नया ताज़ा हो तो सुनाओ। ‘समथिंग डिफरेंट’ टाइप का।”

‘वैलेंटाइन डे’ के किस्से

'वैलेंटाइन डे'
नारद जी ने घाट-घाट का पानी पिया था। वे समझ गए कि विष्णुजी ‘वैलेंटाइन डे’ के किस्से सुनना चाह रहे थे। लेकिन वे सारा काम थ्रू प्रापर चैनेल करना चाहते थे। लिहाज़ा वे विष्णुजी को खुले खेत में ले गए जिसे वे प्रकृति की गोद भी कहा करते थे।
सरसों के खेत में तितलियाँ देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह मंडरा रहीं थीं। हर पौधा तितलियों को देखकर थरथरा रहा था। भौंरे भी तितलियों के पीछे शोहदों की तरह मंडरा रहे थे। आनंदातिरेक से लहराते अलसी के फूलों को बासंती हवा दुलरा रही थे। एक कोने में खिली गुलाब की कली सबकी नज़र बचाकर पास के गबरू गेंदे के फूल पर पसर-सी गई। अपना काँटा गेंदे के फूल को चुभाकर नखरियाते तथा लजाते हुए बोली, ”हटो, क्या करते हो? कोई देख लेगा।”
सरसों के खेत में तितलियाँ देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह मंडरा रहीं थीं। हर पौधा तितलियों को देखकर थरथरा रहा था। भौंरे भी तितलियों के पीछे शोहदों की तरह मंडरा रहे थे। आनंदातिरेक से लहराते अलसी के फूलों को बासंती हवा दुलरा रही थे। एक कोने में खिली गुलाब की कली सबकी नज़र बचाकर पास के गबरू गेंदे के फूल पर पसर-सी गई। अपना काँटा गेंदे के फूल को चुभाकर नखरियाते तथा लजाते हुए बोली, ”हटो, क्या करते हो? कोई देख लेगा।”
गेंदे ने कली की लालिमा चुराकर कहा, ”काश! तुम हमेशा मुझसे ऐसे ही कहती रहती- छोड़ो जी कोई देख लेगा।”
कली उदास हो गई। बोली, ”ऐसा हो नहीं सकता। हमारा तुम्हारा कुल, गोत्र, प्रजाति अलग है। हम लोग एक दूजे के नहीं हो सकते। हम तुम दो समांतर रेखाओं की तरह हैं जो साथ-साथ चलने के बावजूद कभी नहीं मिलती।
पास के खेत में खड़े जौं के पौधे की मूँछें (बालियाँ) गेंदे – गुलाब का प्रेमालाप सुनते हुए थरथरा रहीं थीं। खेत में फसल की रक्षा के लिए खड़े बिजूके के ऊपर का कौवा भी बिना मतलब भावुक होकर काँवकाँव करने लगा।”
नारद जी इस प्रेमकथा को आगे खींचते लेकिन विष्णुजी को जम्हाई लेते देख गीयर बदल लिया तथा वैलेंटाइन डे के किस्से सुनाने लगे।
”महाराज आज पूरे देश में ‘वैलेंटाइन डे’ की छटा बिखरी है। जिधर देखो उधर वैलेंटाइन के अलावा कुछ नहीं दिखता। सब तरफ़ इलू-इलू की लू चल रही है तथा वातावरण में भयानक गर्मी व्याप्त है। भरी फरवरी में जून का माहौल हो रहा है। लोग अपने कपड़े उतारने उसी तरह व्याकुल हैं जिस तरह अमेरिका तमाम दुनिया में लोकतंत्र की स्थापना को व्याकुल रहता है।
सारे लोग अपने-अपने प्यार का स्टॉक क्लीयर कर रहे हैं। जो सामने दिखा उसी पर प्यार उड़ेले दे रहे हैं। गलियों में, बहारों में, छतों में, दीवारों में, सड़कों में, गलियारों में, चौबारों में प्यार ही प्यार अंटा पड़ा है। हर तरफ़ प्यार की बाढ़-सी आ रखी है। टेलीविज़न, इंटरनेट, अख़बार, समाचार सब जगह प्यार ही प्यार उफना रहा है। तमाम लोगों के प्यार की कहानियाँ छितरा रहीं हैं। टेलीविज़न का कोई चैनेल शिव सैनिक के प्यार का अंदाज़ बता रहा है तो इंटरनेट की कोई साइट लालू यादव-राबड़ी देवी की प्रेमकथा बता रहा है। पूरा देश सब कुछ छोड़कर कमर कसकर ‘वैलेंटाइन डे’ मनाने में जुट गया है। वैलेंटाइन के शंखनाद से डरकर अभाव, दैन्य, ग़रीबी तथा तमाम दूसरे दुश्मन सर पर रखकर नौ दो ग्यारह हो गए हैं।”

कार्य प्रगति पर है

'वैलेंटाइन डे'
विष्णु जी बोले, ”लेकिन यह ‘वैलेंटाइन डे’ हमने तो कभी नहीं मनाया। नारद जी के पास जवाब तैयार था, ”महाराज, आपके समय की बात अलग थी। समय इफ़रात था आपके पास। जब मन आया प्रेम प्रदर्शन शुरू कर दिया। लताएँ थीं, कुंज थीं, संकरी गलियाँ थीं। जहाँ मन आया, ‘कार्य प्रगति पर है’ का बोर्ड लगाकर रासलीला शुरू कर दी। जितना कर सके किया बाकी अगले दिन के लिए छोड़ दिया। कोई हिसाब नहीं माँगता था। साल भर प्यार की नदी में पानी बहता था। लेकिन आज ऐसा नहीं हो सकता। प्यार की नदियाँ सूख गईं हैं। अब सप्लाई टैंकों से होती है। साल भर इकट्ठा किया प्यार। ‘वैलेंटाइन डे’ वाले दिन सारा उड़ेल दिया। छुट्टी साल भर की। एक दिन में जितना प्यार बहाना हो बहा लो। ये थोड़ी की सारा साल प्यार करते रहो। दूसरे ‘डे’ को भी मौका देना है। फादर्स डे, मदर्स डे, प्रपोज़ल डे, चाकलेट डे, स्लैप डे (तमाचा दिवस) आदि-इत्यादि। जिस रफ़तार से ‘डेज़’ की संख्या कुकुरमुत्तों की तरह बढ़ रही है उससे कुछ समय बाद साल में दिन कम होंगे, ‘डे’ ज़्यादा। मुंबई की खोली की तरह एक-एक दिन में पाँच-पाँच सात-सात ‘डेज़’ अँटे पड़े होंगे।”
विष्णु जी बंबई का ज़िक्र सुनते ही यह सोच कर घबरा गए कि कोई उनका संबंध दाउद की पार्टी से न जोड़ दे। वे बोले, ”कैसे मनाते हैं ‘वैलेंटाइन दिवस’?”
शाम को सारा देश थिरकने लगता है। नाचने में अपने शरीर के सारे अंगों को एक-दूसरे से दूर फेंकना होता है। स्प्रिंग एक्शन से फेंके गए अंग फिर वापस लौट आते हैं। दाँत में अगर अच्छी क्वालिटी का मंजन किया हो तो दाँत दिखाए जाते हैं या फिर मुस्कराया जाता है। दोनों में से एक का करना ज़रूरी है। केवल हाँफते समय, सर उठाकर कोकाकोला पीते समय या पसीना पोंछते समय छूट मिल सकती है।”
नारद जी बोले, ”मैंने तो कभी मनाया नहीं भगवन! लेकिन जितना जानता हूँ बताता हूँ। लोग सबेरे-सबेरे उठकर मुँह धोए बिना जान-पहचान के सब लोगों को ‘हैप्पी वैलेंटाइन डे’ बोलते हैं। हैप्पी तथा सेम टू यू की मारामारी मची रहती है। दोपहर होते-होते तुमने मुझे इतनी देर से क्यों किया। जाओ बात नहीं करती की शिकवा शिकायत शुरू हो जाती है। शाम को सारा देश थिरकने लगता है। नाचने में अपने शरीर के सारे अंगों को एक-दूसरे से दूर फेंकना होता है। स्प्रिंग एक्शन से फेंके गए अंग फिर वापस लौट आते हैं। दाँत में अगर अच्छी क्वालिटी का मंजन किया हो तो दाँत दिखाए जाते हैं या फिर मुस्कराया जाता है। दोनों में से एक का करना ज़रूरी है। केवल हाँफते समय, सर उठाकर कोकाकोला पीते समय या पसीना पोंछते समय छूट मिल सकती है।
तमाम टेलीविज़न तरह-तरह के सर्वे करते हैं। जैसे इस बार सर्वे हो रहा है। देश का सबसे सेक्सी हीरो कौन है-शाहरुख खान, आमिर खान, सलमान खान या अभिषेक बच्चन। हीरो अकेले नहीं न रह सकता लिहाज़ा यह भी बताना पड़ेगा- सबसे सेक्सी हीरोइन कौन है- रानी मुखर्जी, ऐश्वर्या राय, प्रीति जिंटा या सानिया मिर्ज़ा। देश का सारा सेक्स इन आठ लोगों में आकर सिमट गया है। अब आपको एस.एम.एस. करके बताना है कि इनमें सबसे सेक्सी कौन है। आपको पूरी छूट है कि आप जिसे चाहें चुने लेकिन इन आठ के अलावा कोई और विकल्प चुनने की आज़ादी नहीं है आपके पास। करोड़ों के एस.एम.एस. अरबों के विज्ञापन बस आपको बताना है कि सबसे सेक्सी जोड़ा कौन है?
चुनना चार में ही है। ऐसी आज़ादी और कहाँ? जो जोड़ा चुना जाएगा उसका हचक के प्रचार होगा। प्रचार के बाद दुनिया के सबसे जवान देश के नौजवान लोग देश के इस सबसे सेक्सी जोड़े को अपने सपनों में ओपेन सोर्स प्रोग्राम की तरह मुफ़्त में डाउनलोड करके अपना काम चलाएँगे।
कंप्यूटर की भाषा से विष्णु जी को उसी तरह अबूझ लगती है जिस तरह क्रिकेटरों, हिंदी सिनेमा वालों को हिंदी। वे झटके से बोले, ”अच्छा तो नारद अब तुम चलो। मैं भी चलता हूँ, लक्ष्मी को हैप्पी ‘वैलेंटाइन डे’ बोलना है।”
नारद जी टेलीविज़न पर टकटकी लगाए हुए सर्वे में भाग लेने के लिए अपने मोबाइल पर अंगुलियाँ फिराने लगे। वोटिंग लाइन खुली थीं। आप भी काहे को पीछे रहें?

1 comment:

निर्झर'नीर said...

सबसे सेक्सी हीरोइन कौन है- रानी मुखर्जी, ऐश्वर्या राय, प्रीति जिंटा या सानिया मिर्ज़ा। देश का सारा सेक्स इन आठ लोगों में आकर सिमट गया है। अब आपको एस.एम.एस. करके बताना है कि इनमें सबसे सेक्सी कौन है। आपको पूरी छूट है कि आप जिसे चाहें चुने लेकिन इन आठ के अलावा कोई और विकल्प चुनने की आज़ादी नहीं है आपके पास। करोड़ों के एस.एम.एस. अरबों के विज्ञापन बस आपको बताना है कि सबसे सेक्सी जोड़ा कौन है?.......aapka prahar bhi kuch kam nahi hai sir ji
u r great aaj desh or sabhayta ko aap jaise vicharakon ki bahut sakht jarurat hai yun hi roshani failate rahe ...sadhuvaad