जहां से गुजरे श्रीराम:मध्य प्रदेश में जिस राह से भगवान राम गुजरे, वहां सीएम शिवराज ने राम वनगमन पथ बनाने की बात फिर दोहराई
- हालांकि, सीएम शिवराज सिंह चौहान पिछले तीन कार्यकाल में भी इसका जिक्र कर चुके हैं
- कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी राम वनगमन पथ को चुनाव में मुद्दा बनाया था
- जानिए मध्य प्रदेश ही नहीं, देश में कहां-कहां से गुजरे थे श्रीराम, पढ़िए भास्कर की रिपोर्ट
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि राज्य सरकार जल्द चित्रकूट से लेकर अमरकंटक तक राम वनगमन पथ का विकास करेगी। ऐसा पहली बार नहीं है, जब राम वनगमन पथ को विकसित कराने की बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कही हो। दरअसल, अपने पिछले तीन कार्यकालों में भी वे इसका जिक्र करते रहे हैं। कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी राम पथ गमन को विकसित कराने की बात कही थी। विधानसभा चुनाव में उन्होंने इसे मुद्दा भी बनाया था। आइए जानते हैं कहां-कहां से गुजरा है राम वन गमन पथ।
अयोध्या से भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास काल में जिन रास्तों से गुजरे, उसका पौराणिक ग्रंथों में राम वन गमन पथ के रूप जिक्र है। इस यात्रा काल में वह कई ऋषि-मुनियों से मिले और कई जगह तपस्या की। माना जाता है कि अयोध्या से श्रीलंका तक की 14 साल की यात्रा में लगभग 248 ऐसे प्रमुख स्थल थे, जहां उन्होंने या तो विश्राम किया या फिर उनसे उनका कोई रिश्ता जुड़ा है। आज यह स्थान धार्मिक रूप में राम की वन यात्रा के रूप में याद किए जाते हैं। 2015 में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने रामायण सर्किट विकसित करने का एलान किया था।
कहां-कहां से गुजरे भगवान राम
राम से जुड़े जिन ऐतिहासिक स्थलों की पहचान की गई, उनमें उत्तर प्रदेश में पांच, मप्र में तीन, छत्तीसगढ़ में दो, महराष्ट्र में तीन, आंध्र प्रदेश में दो, केरल में एक, कर्नाटक में एक, तमिलनाडु में दो और एक स्थल श्रीलंका में है। इस तरह ऐतिहासिक महत्व के 21 धार्मिक स्थल चिन्हित किए गए हैं। इनमें से 20 स्थलों को ऐतिहासिक राम वनगमन मार्ग से जोड़ने की योजना है। हर राज्य अपने हिसाब से भी इन पवित्र स्थलों को विकसित कर रहे हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी राम वनगमन पथ पर काम चल रहा है।
यूपी में वनगमन स्थल
- तमसा नदी: अयोध्या से 20 किमी दूर महादेवा घाट से दराबगंज तक वन-गमन यात्रा का 35 किलोमीटर इलाका है। पहला पड़ाव रामचौरा है। यहां राम ने रात्रि विश्राम किया था। यूपी सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया है।
- शृगवेरपुर (सिंगरौर): गोमती नदी पार कर प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किमी श्रृंगवेरपुर है। यानी निषादराज गुह का राज्य। श्रृंगवेरपुर को अब सिंगरौर कहते हैं।
- कुरई: इलाहाबाद सिंगरौर के पास गंगा उस पार कुरई नामक स्थान है। यहां एक मंदिर है, जिसमें राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था।
- प्रयाग: कुरई से आगे राम प्रयाग पहुंचे थे। संगम के समीप यमुना नदी पार कर यहां से चित्रकूट पहुंचे। यहां वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, भरतकूप आदि हैं।
- चित्रकूट: चित्रकूट में श्रीराम के दुर्लभ प्रमाण हैं। यहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचे थे। यहीं से वह राम की चरण पादुका लेकर लौटे। यहां राम साढ़े ग्यारह साल रहे। इसके बाद सतना, पन्ना, शहडोल, जबलपुर, विदिशा के वन क्षेत्रों से होते हुए वह दंडकारण्य चले गए।
मध्य प्रदेश में वनगमन स्थल
- चित्रकूट: चित्रकूट का स्थल काफी विस्तृत था। भगवान राम आज के मप्र के चित्रकूट के कई हिस्सों में भी रुके।
- सतना: सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम था। यहां 'रामवन' नामक स्थान पर श्रीराम रुके थे। यहीं अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूइया ने सीता जी को दिव्य वस्त्र प्रदान किए थे।
- शहडोल (अमरकंटक): जबलपुर, शहडोल होते हुए राम अमरकंटक गए। सरगुजा में सीता कुंड है।
छत्तीसगढ़ में राम वनगमन मार्ग
- उत्तर क्षेत्र से श्रीराम का प्रथम आगमन छत्तीसगढ के सरगुजा के कोरिया जिले के सीतामढ़ी हरचौका में हुआ था।
- रायपुर से 27 किलोमीटर दूर चंदखुरी के कौशल्या माता मंदिर के पास से भी राम वन गमन परिपथ विकसित होगा। यहां दुनिया का एकमात्र कौशल्या माता मंदिर है। इसमें भगवान राम बाल रूप में मां की गोद में दिखाए गए हैं।
महाराष्ट्र में तीन स्थलों से गुजरेगा पथ
- पंचवटी, नासिक में श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। यहां लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय बिताया। यह गोदावरी के उद्गम स्थान त्र्यंम्बकेश्वर से लगभग 32 किलोमीटर दूर है।
- सर्वतीर्थ: नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड़ गांव में रावण ने जटायु का वध किया था। रावण सीताजी का हरण कर ले जा रहा था।
- मृगव्याधेश्वरम: यहां श्रीराम का बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में विद्यमान है। मारीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याधेश्वर में हुआ था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मित्रता भी यहीं हुई थी।
आंध्र प्रदेश के दो स्थल जुड़ेंगे पथ से
- भद्राचलम: आंध्रप्रदेश में गोदावरी के तट पर भद्राचलम शहर में सीता-रामचंद्र का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। वनवास के दौरान कुछ दिन भगवान राम ने इस भद्रगिरि पर्वत पर बिताए थे।
- खम्माम: यहां भद्राचलम में पर्णशाला स्थित है। इसे पनशाला या पनसालाज भी कहते हैं। यह गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। यहां से सीताजी का हरण हुआ था। यहीं रावण ने अपना विमान उतारा था। इसी स्थल से रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था।
केरल में राम वन गमन पथ
केरल में शबरी का आश्रम पम्पा सरोवर: तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्मण सीता की खोज में शबरी के आश्रम पम्पा सरोवर पहंचे। यहीं शबरी आश्रम था। यह केरल में पम्पा नदी के किनारे है।
कर्नाटक में ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट
- मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए राम-लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की। सीता के आभूषणों को देखा। यहीं श्रीराम ने बाली का वध किया।
- ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। यहां तुंगभद्रा नदी (पम्पा) धनुष के आकार में बहती है।
तमिलनाडु के कोडीकरई में राम की सेना का गठन
- हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने अपनी सेना का गठन किया। समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित कोडीकरई में श्रीराम ने अपनी सेना को एकत्रित कर रण जीतने की नीति बनाई।
- रामेश्वरम से पार किया राम की सेना ने समुद्र: रामेश्वरम समुद्र तट पर श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव की पूजा की थी। यही धनुषकोडी नामक स्थान है, जहां नल और नील की मदद से श्रीलंका तक पुल बनाया गया।
श्रीलंका की नुवारा एलिया पर्वत श्रंखला के पास उतरी सेना
श्रीलंका के मध्य में नुवारा एलिया की पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ रावण की सोने की लंका थी।