Pulwama attack is Murder of Army Personnel by their own government

शहादत नहीं, सरकारी हत्या है!


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✍✍✍... अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी व फ्रांस का रक्षा बजट 2-3% होता है और भारत-पाकिस्तान का रक्षा बजट 7-8% होता है। यही कारण है कि उन देशों में शिक्षित व वैज्ञानिक सोच वाले नागरिक पैदा होते है और भारत-पाक में धार्मिक उन्मादयुक्त आतंकी/चरमपंथी पैदा होते है।

भारत का रक्षा बजट लगभग 4 लाख करोड़ रुपये है और हालात देखिये एक स्थानीय धार्मिक उन्मादयुक्त आतंकी उठता है और 42 जवानों की हत्या कर देता और तकरीबन 4 दर्जन जवानों को अस्पताल पहुंचा देता है!

प्रधानमंत्री कड़ी निंदा करता है, गृहमंत्री कड़ी निंदा करता है, तमाम सत्ता पक्ष कड़ी निंदा करता है, विपक्ष निंदा करता है, जनता मातम विशेषज्ञ बनकर तात्कालिक विलाप कर रही है, कवि कविता लिख रहे है, शायर दो-चार शेर लिख रहे है, कुछ युवा वीर रस की कविताओं के छंद बोल रहे है और मीडिया विस्फोटक रूप अख्तियार करके पाकिस्तान के साथ युध्द के लिए उकसा रहा है। शहरी मध्यम वर्ग मरने-मारने की चर्चा कर रहा है लेकिन मर कौन रहा है ? खेत मे फांसी पर लटककर किसान मरता है और सीमा पर उसका बेटा मरता है। इसलिए मैं कहता हूँ कि यह शहादत नहीं सरकारी हत्या है!

जवानों की शहादत शांतिकाल में नहीं, बैटल फील्ड अर्थात जंग के मैदान में होती है। शांतिकाल में जवानों की हत्या नीच व घटिया स्तर की राजनीति के कारण होती है।

✍✍✍... इस देश की राजनीतिक जमात अपने ही देश के जवानों व नागरिकों के साथ अघोषित युद्ध लड़ रही है! बच्चे कुपोषण से काल-कवलित हो रहे है, नागरिक इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे है, किसान आत्महत्या कर रहा है, युवाओं को धार्मिक उन्माद में धकेला जा रहा है, शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई है और राजनेता रक्षा बजट बढ़ाते हुए अपने मोटे कमीशन का इंतजाम कर रहे है।उम्दा तकनीक से लैस मिसाइल बनाने वाला व परमाणु बम बनाने वाला देश लड़ाकू विमान नहीं बना सकता क्योंकि नेताओं की कमीशनखोरी खत्म हो जायेगी!

✍✍✍... देश की ताकतवर सत्ता सर्जिकल स्ट्राइक को विश्वयुद्ध जीत की तरह ढोल पीटकर बता रही थी और उधर से एक आतंकी हाफिज सईद ने कहा था कि असली सर्जिकल स्ट्राइक हम करेंगे और दुनियां देखेगी और कल खुलेआम करके दिखा दिया और दुनियां देख रही है। कोई फोटो/वीडियो नहीं मांग रहा है! सबकुछ सामने है। उरी अटैक व सर्जिकल स्ट्राइक पर फ़िल्म बन ही गई तो पुलवामा अटैक पर भी एक फ़िल्म बना लीजिए! यह देश मुर्दों का देश बन चुका है! यह मातम मना सकता है और कुछ नहीं कर सकता है!

130 करोड़ नागरिकों की सेना का नेता बेईमान, बे-गैरत हो, गृह विभाग का मुख्या इस्तीफा देने के बजाय घटना स्थल पर जाने की बात कहे और मुख्यधारा के मीडिया इसे बड़ा कदम बताने लगे तो समझिए इस देश की सत्ता नपुसंक होकर बेईमानी के गड्ढे में बैठ चुकी है।

हमले के तुरंत बाद मीडिया जन-आक्रोश की डोर थाम चुका है।चौबीस घंटे युद्ध की धमकी, सबक, खून का बदला खून, मुंहतोड़ जवाब सरीखे शब्दों में जन भावना को हांकता है व उसके बाद धीरे-धीरे शांति प्रिय तर्क विशेषज्ञ आते है और जंग के नफे-नुकसान की पोथियाँ खोलकर सत्ता को इस माहौल से निकलने का रास्ता दे जाते है। मध्यम वर्ग का सोफे पर बैठकर जो खून खोल रहा होता है वो धीरे-धीरे ठंडा पड़ने लग जाता है और फिर उनमें पक्ष-विपक्ष बन जाता है। कुछ लोग सत्ता को जायज ठहराने लग जाते है व कुछ लोग गलत!

✍✍✍... इस घटना पर कड़ी निंदा का दौर थम रहा है! अब देश शहादत को सलाम करने का नाटक करेगा! तमाम नेता कहेंगे कि हम शहीद परिवार के साथ खड़े है! जब तक सूरज चाँद रहेगा, शहीद तेरा नाम रहेगा सरीखे नारे लगाकर किसानों के 24-24, 25-25 साल के नौजवान पुत्रों को तिरंगे के साथ विदा कर दिया जाएगा! किसी के कलेजे का टुकड़ा गया है! किसी का सिंदूर उजड़ा है, किसी राखी वाली कलई खोई है! कुछ जीवनभर के लिए अनाथ हो गए है! ये ऐसे जख्म है जो कभी भुलाये नहीं जा सकते! मगर ये जख्म, ये चीत्कारें, ये लाशें देशभक्ति के नारों के बीच सिर्फ और सिर्फ किसानों के घरों से निकलती है इसलिए यह सिर्फ कड़ी निंदा मंत्रालय के हवाले होकर बॉलीवुड की तरफ निकल जाती है!

यह ऐसा देश है जहां के नागरिक अपने ही देश की सियासत के खिलाफ युद्ध लड़ रहे है! यह ऐसा देश है जहां की सत्ता के हाथ खुद के नागरिकों के खून से सन्ने है! याद रखिये कुछ दिनों पहले सत्ताधारी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने चुनावों को पानीपत के युद्ध की तरह लड़ने का बखान किया था! गरीबी, अशिक्षा,बेरोजगारी, नक्सलवाद, आतंकवाद, किसान आत्महत्या आदि के लिए जंग का एलान हमारे सियासतदां-हुक्मरान नहीं करते!

रक्षा मंत्रालय व गृहमंत्रालय का कुल मिलाकर बजट 7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है और राज्य सरकारों का जोड़ दिया जाए तो लगभग 15 लाख करोड़ रुपये सालाना हो जाता है! कुल मिलाकर यह बजट कड़ी निंदा, कमीशन व धार्मिक-जातीय नफरत पैदा करने के मद में खर्च किया जा रहा है! जिस दिन भगतसिंह को फांसी हुई थी उसी दिन देश की जवानी मर गई थी! देश मे इतने युवा बेरोजगार बैठे है कि दिल्ली की तरफ कूच कर दें तो सत्ता पर काबिज बेईमान बुढ़े खुद बंदूक उठाकर कश्मीर की तरफ चल देंगे! मगर वो भगतसिंह की सोच वाले युवा कहाँ? किसी का इस्लाम खतरे में है तो किसी का हिंदुत्व खतरे में है! किसी की कुर्सी खतरे में है तो किसी की मूर्ति खतरे में है! असल मे यह देश व इसका वजूद खतरे में है!
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