अन्ना के अनशन की प्रासंगिकता : तीन दिन से ज्यादा का अनशन उचित नहीं


अनशन कोई नई चीज नहीं है ,


रामचरितमानस में श्री राम द्वारा भी सागर के सामने अनशन करने का जिक्र है .


यथा :---------------



इतिहास का पहला अनशन

भारतीय साहित्य में सबसे पहले अनशन का जिक्र आया है रामायण में.  


आप अधिकतर ने यह पढ़आ हुआ है, में केवल याद दिला रहा हूँ 


जब सुंदरकांड में भगवान राम ने मर्यादा पूर्वक सागर से रास्ता माँगा 


       
विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीत। 

बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीत।।




तीन दिन बहुत विनय की , 

जब मूर्ख और  शठ  सागर के कान पर जूं नहीं रेंगी तो 

फिर श्री राम ने लक्षमन से कहा : मेरा धनुष लाओ . 

मुर्ख व्यक्ति विनय से नहीं मानता .

यानि जड़ लोग , विनय की भाषा नहीं समझते , उनके लिए धनुष की आवश्यकता होती ही है , 

आज का धनुष है चुनावों में सक्रिय योगदान.  यदि अपने लोग खड़े करने का होसला न हो तो कम से कम , सही उम्मीदवारों पर अपनी मोहर लगा कर , जनता को बदमाशी के चुनाव में एक विकल्प तो दे सकते हैं. 


पर जितना में चुनावों की प्रक्रिया के बारे में जानता हूँ, चूनावों के द्वारा किसी सही प्रत्याशी का आना , असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है , 

क्योंकि चुनाव बिना पैसे के लड़े नहीं जा सकते.  हाँ कुछ पैसे वाले भी ईमानदारों में हो सकते हैं, तब ये संभव है . 

जय श्री राम 


5 comments:

तेजवानी गिरधर said...

very nice

shyam gupta said...

---इससे पहले असली अनशन का उदाहरण...कठोपनिषद में है ....जब नचिकेता...तीन दिन तक यम के द्वार पर भूखा-प्यासा बैठा इन्तज़ार करता रहा था ..

https://worldisahome.blogspot.com said...

सत्य वचन डा साहिब,

इसीलिए ये ब्लॉग इत्यादि आपको भेजे जाते हैं. कि उनकी fine tuning हो सके.

अनशन किसके सामने किया जाए , इसका फर्क देख लिया , जो समझदार है(यमराज), वो अनशन से द्रवित हो गया , और मुर्ख अनशन वाले को प्रताड़ित करने लगा,

आपका बहुत बहुत धन्यवाद .

Anonymous said...

he manushyon, in comments me kya dharaa hai, in lekhon me kya rakhha hai, tanik aashaarya chaanakya, jhaansee kee mahaaraanee lakshmeebaai, somnaath kee rakshikaa raajkumaari shobha ke upkaaro ka smaran karen evom vaanee-vinod ke sthaan par vah karen jo karna chaahiye, khud bhi kar rahaa hu,yadi aatmaa jaag gayii ho to aap abhi karen, koi jigyasa ho to 09425605432 sumit

https://worldisahome.blogspot.com said...

प्रिय श्री सुमित जी,

आपका कहना सौ प्रतिशत सच है , पर हर व्यक्ति भगतसिंह व् सुभाष नहीं हो सकता,

पर वचन की महत्ता को भी बिलकुल नकारना उचित नहीं.

मेरे विचार से , वचन के लिए , उस विचार को मन , बुद्धि और तन तीनों की आवश्यकता होती है. यदि बुद्धि विलास के साथ थोडा तन और मन भी लग जाये , और हम आपस में , चर्चा तो करें , तो भी एक विचारों कि सुनामी बन जायेगी जिससे बचना मुश्किल होगा.

अंग्रेजी में कहावत है ; something is better than nothing.

विनीत
अशोक गुप्ता