बुद्धि का क्या अर्थ होता है? —इतना ही कि तुम्हारा अतीत का संग्रह। बुद्धि में वही तो संगृहीत है जो तुमने सुना, पढ़ा, जाना, अनुभव किया; जो हो चुका, वही तो संगृहीत है। जो अभी होने को है, उसका तो बुद्धि को कोई भी पता नहीं।
तो बुद्धि तो अतीत है—जा चुका, मृत! बुद्धि तो राख है! बुद्धि में ही अटक गए, तो तुम अतीत के ही रास्तों पर भटकते रहोगे; ज्ञात में ही चलते रहोगे। अज्ञात में गति है;ज्ञात में गति नहीं है, कोल्हू के बैल की तरह भ्रमण है।
हृदय का अर्थ है. अज्ञात, अनजान, अपरिचित,अभियान! पता नहीं क्या होगा? पक्का नहीं, क्योंकि जाना ही नहीं कभी तो पक्का कैसे होगा? नक्यग़ हाथ में नहीं,अज्ञात की यात्रा है। न मील के पत्थर हैं वहां, न राह पर खड़े पुलिस के सिपाही हैं मार्ग बताने को।
लेकिन जो आदमी अज्ञात की तरफ यात्रा करता है,वही परमात्मा की तरफ यात्रा करता है।
अष्ट्रावक्र महागीता-भाग-1प्र-10
ओशो
तो बुद्धि तो अतीत है—जा चुका, मृत! बुद्धि तो राख है! बुद्धि में ही अटक गए, तो तुम अतीत के ही रास्तों पर भटकते रहोगे; ज्ञात में ही चलते रहोगे। अज्ञात में गति है;ज्ञात में गति नहीं है, कोल्हू के बैल की तरह भ्रमण है।
हृदय का अर्थ है. अज्ञात, अनजान, अपरिचित,अभियान! पता नहीं क्या होगा? पक्का नहीं, क्योंकि जाना ही नहीं कभी तो पक्का कैसे होगा? नक्यग़ हाथ में नहीं,अज्ञात की यात्रा है। न मील के पत्थर हैं वहां, न राह पर खड़े पुलिस के सिपाही हैं मार्ग बताने को।
लेकिन जो आदमी अज्ञात की तरफ यात्रा करता है,वही परमात्मा की तरफ यात्रा करता है।
अष्ट्रावक्र महागीता-भाग-1प्र-10
ओशो
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