हम सब कठपुतलियां हैं , भगवान् के हाथों मे,
कठपुतली की कोई इच्छा नहीं, कर्तव्या नहीं ,
कठपुतली ही तो होना हैं मुझ्कॊ .
फिर कोई दुःख नहीं तकलीफ नहीं
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क्या रुकावट हैं कठपुतली होने में !
क्योंकि भगवान् ने इन कठपुतलियों में थोड़ा थोड़ा मन व् बुद्धी भी दल दिया .
यही किया होता तो भी कोई दिक्कत नहीं थी ,
पर उसने मया की पट्टी भी बांध दी , और खुद चुप गया , दिल में , जिस्स्से कोई ढूंढ़ न सके
रोता रहे , कलपता रहे ,
फिर रास्ता भी दिखा दिया , गीता रामायण , सत्संग , साधू , गुरु के रूप में .
अच्छा खेल organiser है ,
और हामारी जान निकाल कर रख दी .
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