मेरे जानकारों का सुझाव है की हर मोहल्ले में इसे थप्पड़ क्लब बनाए जाए , और संभंधित अधिकारी को, सार्वजानिक तोर पर केवल याद दिलाने के लिए धीरे से(अहिंसक ) थप्पड़ / चपत लगायी जाये , उसके कर्त्तव्य को याद दिलाने के लिए .
में हरविंदर सिंह की इस कोशिश का भरपूर समर्थन करता हूँ.
--
Click to see my Blog at :-
में हरविंदर सिंह की इस कोशिश का भरपूर समर्थन करता हूँ.
मैंने युवा लोगों से इस विषय में विचार लिए . वो भी बहुत खुश थे .
यदि सरकार रामलीला मैदान में सोते लोगों पर लाठी प्रहार से जनता को मार सकती है, लोगों की (राजबाला की ) हत्या कर सकती है, तो क्या एक जनता का आदमी सरकारी आदमी को थप्पड़ भी नहीं मार सकता
अन्ना जैसे आदमी को बिना बात कैद कर सकते हैं..
शुरुआत सरकार ने की है .
अफ़सोस की विपक्षी दल भी विरोध कर रहे हैं , क्योंकि वे भी इसी भ्रष्टाचारी व्यवस्था का हिस्सा हैं.
मेरे विचार से इन नेताओं को जिन्होंने जनता को लाठी से , व भूख से , प्यास से मारा हुआ है, उनको लाइन से खरा करके मीडिया के सामने जुटे लगाने चाहिए
--------------------------------
कहीं ये थप्पड़ किसी क्रांति का आगाज़ तो नहीं ?
- राजीव गुप्ता , लेखक
जब खाने-पीने की चीजों के दामों में आग लग जाय और रसोई के चूल्हे की आग गैस सिलेंडर महंगा होने से बुझ जाय , सरकार के मंत्री के घोटालो के चलते पूरी सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हो , विदेशों में जामा काले धन को स्वदेश में लाने के लिए सरकार टालमटोल का रवैया अपनाये तो ऐसा में जनता में आक्रोश होना लाजमी है ! अगर सरकार अब भी न चेती तो कही हालात नियंत्रण से बाहर न हो जाय जिसका आगाज़ एक शख्स ने वर्तमान कृषि मंत्री शरद पावर जी पर थप्पड़ मार कर अपने आक्रोश का इजहार तो कर दिया जो कि बहुत ही निंदनीय है परन्तु सरकार को अब जागना ही होगा अन्यथा कही ये हालात और भड़क कर बेकाबू न हो जाय !
फ़्रांस की 1756 की क्रांति का इतिहास साक्षी है , जो कि कोई सुनियोजित न होकर जनता के आक्रोश का परिणाम थी ! जब जनता किंग लुईस के शासन में महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान होकर सडको पर उतरी और तो पूरे राजघराने को ही मौत के घाट उतारते हुए अपने साथियों को ब्रूस्सील ( Brusseel ) जेल को तोड़कर बाहर निकाल कर क्रांति की शुरुआत की ! परिणामतः वहां लोकतंत्र के साथ - साथ तीन नए शब्द Liberty , Equality , Fraternity अस्तित्व में आये ! वास्तव में उस समय राजघराने का जनता की तकलीफों से कोई सरोकार नहीं था ! इसका अंदाजा हम उस समय की महारानी मेरिया एंटोनियो के उस वक्तव्य से लगा सकते है जिसमे उन्होंने भूखमरी और महंगाई से बेहाल जनता से कहा था कि " अगर ब्रेड नहीं मिल रही तो केक क्यों नहीं खाते ! "
ऐसी ही एक और क्रांति सोवियत संघ में भी हुई थी ! जिसका परिणाम वहां की जारशाही का अंत के रूप में हुआ था ! कारण लगभग वहां भी वही थे जो कि फ़्रांस में थे जैसे खाने-पीने की वस्तुओं का आकाल , भ्रष्टाचार में डूबी सत्ता और सत्ता के द्वारा जनता के अधिकारों का दमन ! सोवियत संघ में लोकतंत्र तो नहीं आया परन्तु वहां कम्युनिस्टों की सरकार बनीं !
जब अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर हो , मंहगाई के साथ - साथ बेरोजगारी दिन - प्रतिदिन बढ़ रही हो , और सरकार अपनी दमनकारी एवं गलत नीतियों से जनता की आवाज को दबाने कोशिश कर रही हो तो जनता सडको पर उतरकर अपना आक्रोश प्रकट करने लग जाती है और यदि समय रहते हालात को न संभाला गया तो यही जनता भयंकर रूप लेकर सत्ताधारियों को सत्ता से बेदखल करने से पीछे भी नहीं हटती जिसका गवाह इतिहास के साथ साथ अभी हाल हे में हुए कुछ देशों के घटनाचक्र है ! सत्ता - परिवर्तन करने के लिए लोग अपने शासक गद्दाफी का अंत करने से भी पीछे नहीं हटे ! एक तरफ कभी अमेरिका और ब्रिटेन के लोग आर्थिक मंदी और बेरोजगारी के चलते प्रदर्शन करते है तो वही दूसरी तरफ मिस्र की जनता सड़कों पर है, जिसके चलते मिस्र आज भी सुलग रहा है !
आंकड़ो की बजीगीरी सरकार चाहे जितनी कर ले पर वास्तविकता इससे कही परे है ! बाज़ार में रुपये की कीमत लगातार गिर रही है अर्थात विदेशी निवेशक लगातार घरेलू शेयर बाज़ार से पैसा निकाल रहे है ! गौरतलब है कि रुपये की कीमत गिरने का मतलब विदेशी भुगतान का बढ़ जाना है अर्थात पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतें और बढ़ेगी ही जिससे कि अन्य वस्तुओ की कीमतों में भी इजाफा होगा ! महंगाई को सरकार पता नहीं क्यों आम आदमी की समस्या नहीं मानना चाहती ? एक तरफ जहां हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री दुनिया के माने हुए अर्थशास्त्री है , विदेशों में जाकर आर्थिक संकट से उबरने की सलाह देते है और अपने देश में मंहगाई से आम आदमी का कचूमर निकाल कर कहते है कि हमारे पास कोई जादू की छडी नहीं है तो दूसरी तरफ वित्त मंत्री जी महंगाई कम होने की तारीख पर तारीख देते रहते है जैसे कि कोई अदालतीये कार्यवाही में तारीख दे रहे हो !
उदारवादी आर्थिक नीतियों का फायदा सीधे - सीधे पूंजीपतियों को ही होता है और आम आदमी महंगाई के बोझ - तले पिस जाता है ! अब असली मुद्दा यह है कि आम आदमी जाये तो कहा जाये ? ऐसे में जनता में सरकार के प्रति आक्रोश तो लाज़मी ही है ! जनता का यह आक्रोश कोई विकराल रूप ले ले उससे पहले सरकार को आत्मचिंतन कर इस सुरसा रूपी महंगाई की बीमारी से जनता को निजात दिलाना ही होगा, क्योंकि एक बार राम मनोहर लोहिया जी ने भी कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं किया करती है , ऐसे में मुझे लगता है कि कही ये थप्पड़ किसी क्रांति का आगाज़ तो नहीं है !
- राजीव गुप्ता , लेखक
नोट : कृपया इस लेख की एक प्रति / लिंक मुझे भी भेजें व सूचित करें !
Correspondent Address :-
Rajeev Gupta C/O Sh. Vishnu Dutt Sharma
B - 1 / 1 , Hari Nagar Ashram ,
Behind Shalimaar Cinema ,
New Delhi - 110014
9811558925
Click to see my Blog at :-
1 comment:
India me ek hi mard hai Harvindar singh
Post a Comment