क्या करूँ लड़ भी नहीं सकता : निर्वैरः सर्वभूतेषु

  
निर्वैरः सर्वभूतेषु
मैं मुसलामानों के विरुद्ध नहीं हूँ .
हो भी नहीं सकता
क्यों !
क्योकि मेरे धर्म ने मेरे हाथ बाँध रखे हैं .
श्री कृष्ण , श्री गीता जी में कहते हैं - निर्वैरः सर्वभूतेषु
यानी किसी से वैर नहीं .
पर कुछ लोगों कि जो सोच है , उसे श्री योगी दीक्षित जी ने कितने संछेप में कितने सुंदर तरीके से कहा है :
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काश हिंदू उन्हें और अपने को जान पाते

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Name: Yogi Dixit
Title: मुसलामानों का सेकुलरिज्म
Text: जो लोग मुसलमानों की इस मौलिक बात को नहीं समझेंगे वे हमेशा भटकते रहेंगे. मुसलमान केवल तब तक ही धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक होता है जब तक वो अल्पमत में होता हैं. ये दोनों सिद्धांत उनके लिए आस्था के बिंदु नहीं बल्कि एक हथियार हैं. वास्तव में लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और इस्लाम का ३६ का आंकड़ा है. दुनिया का एक भी मुस्लिम देश लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष नहीं है. इस्लामी गणतंत्र से ऊपर नहीं उठ सकते. जैसे ही मुसलमान बहुसंख्यक होते हैं, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता उड़ जाते हैं. जब ये अल्पमत में होते हैं, इनको सारे अधिकार चाहिए, बहुसंख्यक होते ही कट्टर इसलामी बन जाते हैं जो अल्पमत को जीने का भी अधिकार नहीं देना चाहते. सारी दुनिया और भारत में कहीं भी नज़र डालिए, मेरी बात समझ आ जायेगी. दुःख ये है की बहुत से हिंदू भी इस असलियत से आँखें मूंदे रहते हैं. 

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