क्या है PIL (जनहित याचिका)

   
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PIL: जनहित में हिट

जनहित से जुड़े व्यापक महत्व के मुद्दों को हल करने में जनहित याचिका यानी पीआईएल एक कारगर हथियार है। आरटीआई आने के बाद से यह हथियार और भी धारदार हुआ है। जानना जरूरी है सीरीज की आखिरी किस्त में पीआईएल पर पूरी जानकारी दे रहे हैं राजेश चौधरीः

एक्पर्ट पैनल
डी.बी. गोस्वामी
एडवोकेट
सुप्रीम कोर्ट


अशोक अग्रवाल
एडवोकेट
दिल्ली हाई कोर्ट

रमेश गुप्ता
सीनियर लॉयर,
दिल्ली हाई कोर्ट


क्या है PIL (जनहित याचिका)
देश के हर नागरिक को संविधान की ओर से छह मूल अधिकार दिए गए हैं। ये हैं : समानता काअधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, संस्कृति और शिक्षा का अधिकार,धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार और मूल अधिकार पाने का रास्ता।

अगर किसी नागरिक (आम आदमी) के किसी भी मूल अधिकार का हनन हो रहा है, तो वह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मूल अधिकार की रक्षा के लिए गुहार लगा सकता है।वह अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट का और अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजाखटखटा सकता है।

अगर यह मामला निजी न होकर व्यापक जनहित से जुड़ा है तो याचिका को जनहित याचिका केतौर पर देखा जाता है। पीआईएल डालने वाले शख्स को अदालत को यह बताना होगा कि कैसेउस मामले में आम लोगों का हित प्रभावित हो रहा है।

अगर मामला निजी हित से जुड़ा है या निजी तौर पर किसी के अधिकारों का हनन हो रहा है तोउसे जनहित याचिका नहीं माना जाता। ऐसे मामलों में दायर की गई याचिका को पर्सनल इंट्रेस्टलिटिगेशन कहा जाता है और इसी के तहत उनकी सुनवाई होती है।

दायर की गई याचिका जनहित है या नहीं, इसका फैसला कोर्ट ही करता है।

पीआईएल में सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टसरकार को उचित निर्देश जारी करती हैं। यानी पीआईएल के जरिए लोग जनहित के मामलों मेंसरकार को अदालत से निदेर्श जारी करवा सकते हैं।

कहां दाखिल होती है PIL

पीआईएल हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती हैं। इससे नीचे की अदालतों मेंपीआईएल दाखिल नहीं होती।

कोई भी पीआईएल आमतौर पर पहले हाई कोर्ट में ही दाखिल की जाती है। वहां से अर्जी खारिजहोने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है।

कई बार मामला व्यापक जनहित से जुड़ा होता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट सीधे भी पीआईएल परअनुच्छेद-32 के तहत सुनवाई करती है।

कैसे दाखिल करें PIL

लेटर के जरिये
अगर कोई शख्स आम आदमी से जुड़े मामले में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखता है, तोकोर्ट देखता है कि क्या मामला वाकई आम आदमी के हित से जुड़ा है। अगर ऐसा है तो उसलेटर को ही पीआईएल के तौर पर लिया जाता है और सुनवाई होती है।

लेटर में यह बताया जाना जरूरी है कि मामला कैसे जनहित से जुड़ा है और याचिका में जो भीमुद्दे उठाए गए हैं, उनके हक में पुख्ता सबूत क्या हैं। अगर कोई सबूत है तो उसकी कॉपी भीलेटर के साथ लगा सकते हैं।

लेटर जनहित याचिका में तब्दील होने के बाद संबंधित पक्षों को नोटिस जारी होता है औरयाचिकाकर्ता को भी कोर्ट में पेश होने के लिए कहा जाता है।

सुनवाई के दौरान अगर याचिकाकर्ता के पास वकील न हो तो कोर्ट वकील मुहैया करा सकती है।

लेटर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम लिखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस केनाम भी यह लेटर लिखा जा सकता है। लेटर हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। यह हाथ सेलिखा भी हो सकता है और टाइप किया हुआ भी। लेटर डाक से भेजा जा सकता है।

जिस हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से संबंधित मामला है, उसी को लेटर लिखा जाता है। लिखनेवाला कहां रहता है, इससे कोई मतलब नहीं है।

दिल्ली से संबंधित मामलों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में, फरीदाबाद और गुड़गांव से संबधितमामलों के लिए पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में और यूपी से जुड़े मामलों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में लेटर लिखना होगा।



लेटर लिखने के लिए कोर्ट के पते इस तरह हैं :

चीफ जस्टिस
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
तिलक मार्ग, नई दिल्ली- 110001


चीफ जस्टिस
दिल्ली हाई कोर्ट,
शेरशाह रोड, नई दिल्ली- 110003


चीफ जस्टिस
इलाहाबाद हाई कोर्ट
1, लाल बहादुर शास्त्री मार्ग, इलाहाबाद


चीफ जस्टिस
पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट
सेक्टर 1, चंडीगढ़


वकील के जरिये
कोई भी शख्स वकील की मदद से जनहित याचिका दायर कर सकता है।

वकील याचिका तैयार करने में मदद करते हैं। याचिका में प्रतिवादी कौन होगा और किस तरहउसे ड्रॉफ्ट किया जाएगा, इन बातों के लिए वकील की मदद जरूरी है।

पीआईएल दायर करने के लिए कोई फीस नहीं लगती। इसे सीधे काउंटर पर जाकर जमा करनाहोता है। हां, जिस वकील से इसके लिए सलाह ली जाती है, उसकी फीस देनी होती है। पीआईएलऑनलाइन दायर नहीं की जा सकती।

कोर्ट का खुद संज्ञान
अगर मीडिया में जनहित से जुड़े मामले पर कोई खबर छपे, तो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट अपनेआप संज्ञान ले सकती हैं। कोर्ट उसे पीआईएल की तरह सुनती है और आदेश पारित करती है।

कुछ अहम केस

1. स्कूलों की मनमानी पर लगाम
दिल्ली हाई कोर्ट में 1997 में जनहित याचिका दायर कर कहा गया था कि स्कूलों को मनमानेतरीके से फीस बढ़ाने से रोका जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने 1998 में दिए अपने फैसले में कहा किस्कूलों में कमर्शलाइजेशन नहीं होगा। इसके बाद 2009 में दोबारा स्कूलों ने छठे वेतन आयोग कीसिफारिश लागू करने के नाम पर फीस बढ़ा दी। मामला फिर कोर्ट के सामने उठा और अशोकअग्रवाल ने पीआईएल में मांग की कि एक कमिटी बनाई जाए जो यह देखे कि स्कूलों में फीसबढ़ानी जरूरी है या नहीं। हाई कोर्ट ने पिछले साल जस्टिस अनिल देव कमिटी का गठन किया।कमिटी ने 200 स्कूलों के रेकॉर्ड की जांच की और बताया कि 64 स्कूलों ने गलत तरीके से फीसबढ़ाई है। कमिटी ने सिफारिश की है कि स्कूलों को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह बढ़ी हुईफीस ब्याज समेत वापस करें। अभी यह पूरा मामला प्रॉसेस में चल रहा है।

2. बचपन बचाने की पहल
बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से जनवरी 2009 में हाई कोर्ट में पीआईएल दायर कर यूनियनऑफ इंडिया को प्रतिवादी बनाया गया और गुहार लगाई गई कि प्लेसमेंट एजेंसियों द्वारा कराईजाने वाली मानव तस्करी को रोकने का निर्देश दिया जाए। आरोप लगाया गया कि कई प्लेसमेंटएजेंसियां महिलाओं की तस्करी करती हैं और बच्चों से मजदूरी भी कराती हैं। सुनवाई के दौरानसरकार से जवाब मांगा गया। सरकार ने बताया कि श्रम विभाग प्लेसमेंट एजेंसियों को रेग्युलेटकरने के लिए कानून बना रहा है। सरकार ने एक कमिटी बना दी है जो इसे कानून बनाने केलिए विधानसभा के पास भेजेगी। याचिकाकर्ता बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े भुवन रिभू नेबताया कि दिल्ली हाई कोर्ट ने 24 दिसंबर, 2010 को सरकार को निर्देश दिया था कि वहप्लेसमेंट एजेंसियों को रजिस्टर्ड कराए। अब प्लेसमेंट एजेंसियों का रजिस्ट्रेशन हो रहा है।

3. धारा 377 में संशोधन
नाज फाउंडेशन ने 2001 में दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर धारा 377 में संशोधन की मांगकी। कहा गया कि दो वयस्कों के बीच अगर आपसी सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाए जाएं तोउनके खिलाफ धारा 377 का केस नहीं बनना चाहिए। हाई कोर्ट ने सरकार से अपना पक्ष रखनेको कहा। इसके बाद कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक जजमेंट में कहा कि दो वयस्क अगर आपसीसहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाते हैं तो उनके खिलाफ धारा-377 में मुकदमा नहीं बनेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अगर दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति के बिनाअप्राकृतिक संबंध बनाए जाते हों या फिर नाबालिग के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाए जाते हों तोवह धारा-377 के दायरे में होगा। जब तक संसद इस बाबत कानून में संशोधन नहीं करती तबतक यह जजमेंट लागू रहेगा। वर्तमान में यह व्यवस्था पूरी तरह से लागू है।

4. झुग्गी वालों को बसाएं कहीं और
कुछ याचिकाकर्ताओं ने रिट याचिका दायर कर दिल्ली सरकार और एमसीडी को प्रतिवादी बनायाऔर कहा कि झुग्गियों में रहने वाले लोगों को हटाए जाने से पहले उन्हें किसी और जगह बसायाजाए। हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि कमजोर व गरीबों के लिए जगह तलाश करनासरकार की जिम्मेदारी है। अगर सरकारी नीति के तहत झुग्गी में रहने वालों को हटाया जाता है,तो उन्हें किसी और जगह शिफ्ट किया जाए। नई जगह पर भी इन लोगों के लिए सभी बुनियादीसुविधाएं होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि संविधान ने सबको जीने का हक दिया है। लोगों केइस मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं किया सकता। झुग्गी में रहने वाले लोग दोयम दजेर् केनागरिक नहीं हैं। अन्य लोगों की तरह वे भी बुनियादी सुविधाओं के हकदार हैं। अब यह नियम हैकि झुग्गियों में रहने वाले लोगों को हटाए जाने से पहले उन्हें किसी और जगह बसाया जाएगा।

5. रिक्शा चालकों को राहत
एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने राजधानी की सड़कों पर साइकल रिक्शाचलाने वालों को राहत दी थी। हाई कोर्ट ने एमसीडी द्वारा लाइसेंस दिए जाने के लिए तय संख्याको खत्म कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि रिक्शा चालकों के उस मूल अधिकार से उन्हेंवंचित नहीं किया जा सकता, जिसमें उन्हें जीवन यापन करने के लिए कमाने का अधिकार दियागया है। चीफ जस्टिस ए. पी. शाह ने एमसीडी के उस फैसले को रद्द कर दिया था जिसमेंएमसीडी ने 99,000 से ज्यादा रिक्शा को लाइसेंस न देने की बात कहते हुए उन्हें रिक्शा चलानेसे रोक दिया था। अदालत ने कहा कि अथॉरिटी समय-समय पर अपर लिमिट को बढ़ाती हैलेकिन इसे फिक्स नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने एमसीडी के उस नियम को भी रद्द कर थादिया जिसमें कहा गया था कि रिक्शा का मालिक ही रिक्शा चलाए।

सुग्रीव दुबे कई पीआईएल दायर कर चुके हैं। उनकी दायर याचिकाओं में से ऐसे ही कुछदिलचस्प मामले:

ग्राउंड वॉटर केस
1998 की बात है। बारिश के दिन सुग्रीव ने देखा कि बारिश का पानी नालियों में जा रहा है। उन्हेंखयाल आया कि दिल्ली में एक तरफ ग्राउंड वॉटर लेवल नीचे जा रहा है और दूसरी तरफबरसाती पानी बर्बाद हो रहा है। उन्होंने हाई कोर्ट में पीआईएल दायर कर कहा कि दिल्ली में वॉटरलेवल नीचे गिर रहा है। ऐसे में लोगों का जीवन दूभर हो जाएगा। बरसात के पानी का सहीइस्तेमाल हो और वॉटर हावेर्स्टिंग की जाए तो पानी का लेवल ऊपर आ सकता है। हाई कोर्ट नेआदेश दिया कि सरकारी इमारतों में वॉटर हावेर्स्टिंग की व्यवस्था हो। साथ ही 200 स्क्वेयर यार्डया उससे ज्यादा बड़े प्लॉट पर मकान बनाने से पहले एनओसी तभी मिले, जब वहां वॉटरहावेर्स्टिंग की व्यवस्था हो। वर्तमान में यह नियम लागू हो चुका है।

पेड़ों का बचाव
बारिश का मौसम था और तेज हवाओं के कारण राजधानी में बड़ी संख्या में पेड़ गिरे थे। सुग्रीवके घर के सामने भी पेड़ उखड़ गए थे। उन्होंने देखा कि पेड़ों की जड़ों में कंक्रीट डाली गई है।जड़ों में मिट्टी का अभाव है और जड़ें कमजोर हैं। तेज हवा और बारिश में ये कमजोर जड़ें उखड़रही हैं। हाई कोर्ट में उन्होंने जनहित याचिका दायर की और कहा कि पेड़ों को बचाना जरूरी है।हाई कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा और बाद में आदेश दिया कि पेड़ों की जड़ों के आसपास छहफुट की दूरी तक कोई कंक्रीट नहीं डाली जाएगी। नियम बन चुका है। अगर किसी को इसकाउल्लंघन होता दिखता है तो वह शिकायत कर सकता है।

सब्जियों पर रंग
एक दिन सुग्रीव सब्जी खरीदने गए। उन्होंने देखा कि करेले का रंग गहरा हरा था। उन्होंनेदुकानदार से पूछा कि आखिर करेला इतना ताजा कैसे है। उसने बताया कि उस पर कलर चढ़ायाहै। उन्होंने सब्जी वाले से पूछा कि यह रंग अगर पेट में चला जाए तो क्या होगा? सब्जी वाले नेजवाब दिया कि आप सब्जी खरीदें और उसे अच्छी तरह धोकर खाएं। नहीं धोते तो नुकसान कीजिम्मेदारी आपकी है। इसके बाद हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया और सरकार को जवाब दाखिल करनेको कहा। बाद में हाई कोर्ट ने सरकार से इस मामले में कमिटी बनाने और तमाम जगहों से सैंपलउठाने को कहा। अभी इस मामले में प्रक्रिया चल रही है।

दुरुपयोग पर जुर्माना
कई बार पीआईएल का गलत इस्तेमाल भी होता है। ऐसे लोगों पर कोर्ट भारी हर्जाना लगाती है।ऐसे में याचिका दायर करने से पहले अपनी दलील के पक्ष में पुख्ता जानकारी जुटा लेनी चाहिए।

आरटीआई आने के बाद से पीआईएल काफी प्रभावकारी हो गई है। पहले लोगों को जानकारी केअभाव में अपनी दलील के पक्ष में दस्तावेज जुटाने में दिक्कतें होती थी, लेकिन अब लोगआरटीआई के जरिये दस्तावेजों को पुख्ता कर सकते हैं और फिर तमाम दस्तावेज सबूत के तौरपर पेश कर सकते हैं। इस तरह जनहित से जुड़े मामलों में पीआईएल ज्यादा प्रभावकारी है।

पूछें अपने सवाल
पीआईएल से जुड़ा आपका कोई सवाल है तो आप हमें sundaynbt@gmail.com पर बुधवार तक भेज सकते हैं।

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क्या है PIL (जनहित याचिका)
देश के हर नागरिक को संविधान की ओर से छह मूल अधिकार दिए गए हैं। ये हैं : समानता का अधिकार,्वतंत्रता का अधिकारशोषण के िलाफ अधिकारसंस्कृति और शिक्षा का अधिकारधार्मिक स्वतंत्रता काअधिकार और मूल अधिकार पाने का रास्ता।

अगर किसी नागरिक (आम आदमीके िसी भी मूल अधिकार का हनन हो रह हैतो वह हाई कोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में याचिका दायर कर मू अधिकार की रक्षा के लिए गुहार लगा सकता है। वह अनुच्छेद-226 के तहत हाईकोर्ट का और अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।

अगर यह मामला निजी  होकर व्यापक जनहित से जुड़ा है तो याचिका को जनहित याचिका के तौर पर देखाजाता है। पीआईएल डालने वाले ख्स को अदालत को यह बताना होगा कि कैसे उस मामले में आम लोगों काहित प्रभावित हो रहा है।

अगर मामला निजी हित से जुड़ा है या निजी तौर पर किसी के अधिकारों का हनन हो रहा है तो उसे जनहितयाचिका नहीं माना जाता। ऐसे मामलों में दायर की गई याचिका  पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन कह जाता है औरइसी के तहत उनकी सुनवाई होती है।

दायर की गई याचिका जनहित है या नहींइसका फैसला कोर्ट ही करता है।

पीआईएल में सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है। सुनवाई के बाद ुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट सरका कोउचित निर्देश जारी करती हैं यानी पीआईएल के जरिए लोग जनहि के मामलों में सरकार को अदालत सेनिदेर्श जारी करवा सकते हैं।

कहां दाखिल होती है PIL

पीआईएल हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा सकती हैं। ससे नीचे की अदालतों में पीआईएल दाखिलनहीं होती।

कोई भी पीआईएल आमतौर पर पहले हा कोर्ट में ही दाखिल की जाती ै। वहां से अर्जी खारिज होने के बाद हीसुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है।

कई बार मामला व्यापक जनहित से ुड़ा होता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट सीधे भी पीआईएल पर अनुच्छेद-32 केतहत सुनवाई करती है।

कैसे दाखिल करें PIL

लेटर के जरिये
अगर कोई शख्स आम आदमी से जुड़े मामले में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखता हैतो कोर्ट देखता हैकि क्या मामला वाकई आम आदमी के हित से जुड़ा है। गर ऐसा है तो उस लेटर को ही पीआईएल के तौर परलिया जाता है और सुनवाई होती है।

लेटर में यह बताया जाना जरूरी  कि मामला कैसे जनहित से जुड़ा है और याचिका में जो भी मुद्दे उठाए गए हैं,उनके हक में पुख्ता सबूत क्या हैं। अगर कोई सबूत है तो उसकी कॉपी भी लेटर के सा लगा सकते हैं।

लेटर जनहित याचिका में तब्दील ोने के बाद संबंधित पक्षों को ोटिस जारी होता है और याचिकाकर्ता को भीकोर्ट में पेश होने के लिए कहा जाता है।

सुनवाई के दौरान अगर याचिकाकर्ता के पास वकील  हो तो कोर्ट कील मुहैया करा सकती है।

लेटर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस  नाम लिखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नाम भी यह लेटरलिखा जा सकता है। लेटर हिंदी या अंग्रेजी में लिख सकते हैं। यह हाथ से लिखा भी हो सकत है और टाइप कियाहुआ भी। लेटर डाक से भेजा जा सकता है।

जिस हाई कोर्ट के अधिकार क्षेत् से संबंधित मामला हैउसी को लेटर लिखा जाता है। लिखने वाला कहां रहताहैइससे कोई मतलब नही है।

दिल्ली से संबंधित मामलों के लि दिल्ली हाई कोर्ट मेंफरीदाबाद और गुड़गांव से संबधित मामलों के लिएपंजाब एंड हरियाणा ाई कोर्ट में और यूपी से जुड़े मामलों के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में लेटर लिखना होगा।



लेटर लिखने के लिए कोर्ट के पते इस तरह हैं :

चीफ जस्टिस
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
तिलक मार्ग, नई दिल्ली- 110001


चीफ जस्टिस
दिल्ली हाई कोर्ट,
शेरशाह रोड, नई दिल्ली- 110003


चीफ जस्टिस
इलाहाबाद हाई कोर्ट
1, लाल बहादुर शास्त्री मार्ग, इलाहाबाद


चीफ जस्टिस
पंजाब ऐंड हरियाणा हाई कोर्ट
सेक्टर 1, चंडीगढ़


वकील के जरिये
कोई भी शख्स वकील की मदद से जनहित याचिका दायर कर सकता है।

वकील याचिका तैयार करने में मदद करते हैं। याचिका में प्रतिवादी कौन होगा और किस तरह उसे ड्रॉफ्ट कियाजाएगाइन बातों के िए वकील की मदद जरूरी है।

पीआईएल दायर करने के लिए कोई फी नहीं लगती। इसे सीधे काउंटर  जाकर जमा करना होता है। हां,िस वकील से इसके लिए सलाह ली जाती हैउसकी फीस देनी होती है। पीआईएल ऑनलाइन दायर नहीं कीजा कती।

कोर्ट का खुद संज्ञान
अगर मीडिया में जनहित से जुड़े मामले पर कोई खबर छपेतो सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट अपने आप संज्ञान लेसकती हैं। कोर्ट उसे पीआईएल की तरह सुनती है और आदे पारित करती है।

कुछ अहम केस

1. स्कूलों की मनमानी पर लगाम
दिल्ली हाई कोर्ट में 1997 में जनहित याचिका दायर कर कहा गया  कि स्कूलों को मनमाने तरीके  फीसबढ़ाने से रोका जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने 1998 में दिए पने फैसले में कहा कि स्कूलों ें कमर्शलाइजेशन नहींहोगा। इसके बाद 2009 में दोबारा स्कूलों  छठे वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने के नाम पर फीस बढ़ादी। मामला फिर कोर्ट के सामने उठा  अशोक अग्रवाल ने पीआईएल में ांग की कि एक कमिटी बनाई जाएजो यह देखे कि स्कूलों में फीस बढ़ानी जरूरी है या नहीं। हाई कोर् ने पिछले साल जस्टिस अनिल देव कमिटी कागठन किया। कमिटी ने 200 स्कूलों के रेकॉर्ड की जांच की और बताया कि 64 स्कूलों ने गलत तरीके से फीस बढ़ाईहै। कमिटी ने सिफारिश की है कि स्कूलों को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह बढ़ी हुई फीस ब्याज समेत वापसकरें। अभी यह पूरा मामला प्रॉसेस में चल रहा है।

2. बचपन बचाने की पहल
बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से जनवर 2009 में हाई कोर्ट में पीआईएल दायर कर यूनियन ऑफ इंडिया कोप्रतिवादी बनाया गया और गुहार लगाई गई कि प्लेसमेंट एजेंसियो द्वारा कराई जाने वाली मानव स्करी कोरोकने का निर्देश दिया जाए। आरोप लगाया गया कि कई प्लेसमेंट एजेंसियां महिलाओं की तस्करी करती हैं औरबच्चों से मजदूरी भी कराती हैं। सुनवाई के दौरान सरकार से जवाब मांगा गया। रकार ने बताया कि श्रम विभागप्लेसमेंट एजेंसियों को रेग्युलेट करने के लिए कानून बना रहा है। सरकार ने एक कमिटी बना दी है  इसे कानूनबनाने के लिए विधानसभा के पास भेजेगी। याचिकाकर्ता बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े ुवन रिभू ने बतायाकि दिल्ली हाई कोर्ट ने 24 दिसंबर, 2010 को सरकार को निर्देश दिया था कि वह प्लेसमेंट एजेंसियों  रजिस्टर्डकराए। अब प्लेसमेंट एजेंसियों का रजिस्ट्रेशन हो रह है।

3. धारा 377 में संशोधन
नाज फाउंडेशन ने 2001 में दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल  धारा 377 में संशोधन की मांग की। कहा गयाकि दो वयस्कों के बी अगर आपसी सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाए जाएं तो उनके खिलाफ धारा 377 काकेस नहीं बनना चाहिए। हाई कोर्ट ने सरकार से अपना पक्ष रखने को कहा। इसके बाद कोर्ट ने अपने ऐतिहासिकजजमेंट में कहा कि दो वयस्क अगर आपसी सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाते है तो उनके खिलाफ धारा-377में मुकदमा नहीं बनेगा। इस के साथ ही कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अगर दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति बिना अप्राकृतिक संबंध बनाए ाते हों या फिर नाबालिग के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाए जाते हों तो वहधारा-377 के दायरे में होगा। जब तक संसद इस बाबत कानून ें संशोधन नहीं करती तब तक यह जमेंट लागूरहेगा। वर्तमान में  व्यवस्था पूरी तरह से लागू है

4. झुग्गी वालों को बसाएं कहीं और
कुछ याचिकाकर्ताओं ने रिट याचिका दायर कर दिल्ली सरकार और एमसीडी को प्रतिवादी बनाया और कहा किझुग्गियों में रहने वाले लोगो को हटाए जाने से पहले उन्हें किसी और जगह बसाया जाए। हाई कोर्ट ने सरकार कोनिर्देश दिया कि कमजोर  गरीबों के लिए जगह तला करना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर सरकारी नीति केतहत झुग्गी में रहने वालों को हटाया जाता तो उन्हें किसी और जगह शिफ्ट किया जाए। नई जगह पर भी इनलोगो के लिए सभी बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि ंविधान ने सबको जीने का हक दियाहै। लोगों के इस मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं किया सकता। झुग्गी में रहने वाले लोग दोयम दजेर् के नागरिकनहीं हैं। अन्य लोगों की तरह वे भी बुनियादी सुविधाओं के हकदार हैं। अब यह नियम है ि झुग्गियों में रहने वालेलोगों को हटाए जाने से पहले उन्हें िसी और जगह बसाया जाएगा।

5. रिक्शा चालकों को राहत
एक जनहित याचिका पर सुनवाई के ाद हाई कोर्ट ने राजधानी की सड़कों पर साइकल रिक्शा चलाने वालो कोराहत दी थी। हाई कोर्ट ने मसीडी द्वारा लाइसेंस दिए जाने के लिए तय संख्या को खत्म कर दिया था। हाई कोर्टने कहा था कि िक्शा चालकों के उस मूल अधिकार से उन्हें वंचित नहीं किया जा कताजिसमें उन्हें जीवनयापन करने के लिए कमाने का अधिकार दिया गया है। चीफ जस्टिस पीशाह ने एमसीडी के उस फैसले कोरद्द कर दिया था जिसमें एमसीडी ने 99,000 से ज्यादा रिक्शा को लाइसेंस  देने की बात कहते हुए न्हें रिक्शाचलाने से रोक दिया था। अदालत ने कहा कि अथॉरिटी सम-समय पर अपर लिमिट को बढ़ाती  लेकिन इसेफिक्स नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने एमसीडी के  नियम को भी रद्द कर था दिया िसमें कहा गया थाकि रिक्शा का ालिक ही रिक्शा चलाए।

सुग्रीव दुबे कई पीआईएल दायर कर चुके हैं। उनकी दायर याचिकाओं में से ऐसे ही कुछ दिलचस्पमामले:

ग्राउंड वॉटर केस
1998 की बात है। बारिश के दिन ुग्रीव ने देखा कि बारिश का पानी नालियों में जा रहा है। उन्हें खयाल आयाकि दिल्ली में एक रफ ग्राउंड वॉटर लेवल नीचे जा हा है और दूसरी तरफ बरसाती पानी बर्बाद हो रहा है।उन्होंने हाई कोर्ट में पीआईएल दायर कर कहा कि दिल्ली में वॉटर लेवल नीचे िर रहा है। ऐसे में लोगों काजीवन दूभर हो जाएगा। बरसात के पानी का सही इस्तेमाल हो और वॉटर हावेर्स्टिंग की जाए तो पानी का लेवलऊपर  सकता है। हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकारी इमारतों में वॉटर हावेर्स्टिंग की व्यवस्था हो। साथ ही200 स्क्वेयर यार्ड या उससे ज्यादा बड़े प्लॉ पर मकान बनाने से पहले एनओसी तभी मिलेजब वहां वॉटरहावेर्स्टिंग की व्यवस्था हो। वर्तमान ें यह नियम लागू हो चुका है।

पेड़ों का बचाव
बारिश का मौसम था और तेज हवाओं के कारण राजधानी में बड़ी संख्या में पेड़ गिरे थे। सुग्रीव  घर के सामनेभी पेड़ उखड़ गए े। उन्होंने देखा कि पेड़ों की जड़ों में कंक्रीट डाली गई है। जड़ों में मिट्टी का अभाव है और जड़ेंकमजोर हैं। तेज हवा और बारिश में ये कमजोर जड़ें उखड़ रह हैं। हाई कोर्ट में उन्होंने जनहित याचिका दायरकी और कहा कि पेड़ों को बचाना जरूरी है। हाई कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा  बाद में आदेश दिया कि पेड़ों जड़ों के आसपास छह फुट की दूरी तक कोई कंक्रीट नहीं डाली जाएगी। नियम बन चुका है। अगर किसी कोइसका उल्लंघन होता दिखता है तो वह शिकायत कर सकता है।

सब्जियों पर रंग
एक दिन सुग्रीव सब्जी खरीदने गए उन्होंने देखा कि करेले का रं गहरा हरा था। उन्होंने दुकानदार से पूछा किआखिर करेला इतना ताजा कैसे है। उसने बताया कि  पर कलर चढ़ाया है। उन्होंने ब्जी वाले से पूछा कि यहरंग अगर पेट में चला जाए तो क्या होगा? सब्जी वाले ने जवाब दिया कि आप सब्जी खरीदें और उसे अच्छी तरहधोकर खाएं। नहीं धोते तो नुकसान की जिम्मेदारी आपकी है। इसके ाद हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया  सरकारको जवाब दाखिल करने को हा। बाद में हाई कोर्ट ने सरकार से इस मामले में कमिटी बनाने  तमाम जगहोंसे सैंपल उठाने को कहा। अभी इस मामले में प्रक्रिया चल रही है।

दुरुपयोग पर जुर्माना
कई बार पीआईएल का गलत इस्तेमाल भी होता है। ऐसे लोगों पर कोर्ट भारी हर्जाना लगाती है। ऐसे मे याचिकादायर करने से पहले अपनी दलील के पक्ष में पुख्ता जानकारी जुटा लेनी चाहिए।

आरटीआई आने के बाद से पीआईएल काफी प्रभावकारी हो गई है। पहले ोगों को जानकारी के अभाव में अपनीदलील के पक्ष में दस्तावेज जुटाने में दिक्कतें होती थीलेकिन अब लोग आरटीआई के जरिये दस्तावेजों को पुख्ताकर सकते हैं  फिर तमाम दस्तावेज सबूत के तौ पर पेश कर सकते हैं। इस तरह नहित से जुड़े मामलों मेंपीआईएल ज्यादा प्रभावकारी है।

पूछें अपने सवाल
पीआईएल से जुड़ा आपका कोई सवाल है तो आप हमेंsundaynbt@gmail.com ,  surender.ang@gmail.com पर बुधवार तक भेज सकते हैं।
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i copied it from here : 
http://navbharattimes.indiatimes.com/how-to-file-pil/articleshow/18315525.cms

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