Hindu Rashtra क्या भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए

मित्र Ajit Wadnerkar की वॉल से #हिन्दू_राष्ट्र_वक्त_की_ज़रूरत ब्रिटेन में रहने वाले पाकिस्तानी मूल के विद्वान बैरिस्टर #khalidumar की पोस्ट का #anil_singh द्वारा किया अनुवाद।

 क्या कोई और भी है जो चीज़ों को इतनी स्पष्टता से देख रहा है? ▫️खालिद उमर |

बैरिस्टर.यूके ▪

नरेन्द्र मोदी और भाजपा पर यह आरोप लगाया जाता है कि वह भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। अगर ऐसा है भी, तो मैं पूछता हूँ कि इसमें हर्ज ही क्या है? भारत के हिन्दू राष्ट्र होने के पक्ष में मैं निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत करता हूँ: विश्व भर में फैले हिन्दुओं की पितृभूमि और पुण्यभूमि होने, उनमें से 95% की शरणस्थली होने, और कम से कम 5000 साल पुरानी सनातन हिन्दू सभ्यता का केन्द्र होने के कारण भारतवर्ष को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। ▪


भारत को अपनी पहचान एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में लज्जित होने की कोई आवश्यकता नहीं। हिन्दू धर्म जनसंख्या की दृष्टि से ईसाई और इस्लाम धर्मों के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, पर इसका भौगोलिक विस्तार अन्य धर्मों की अपेक्षा सीमित रहा है। विश्व की 97% हिन्दू जनसंख्या केवल तीन हिन्दू-बहुल देशों- भारत, मॉरिशस और नेपाल में ही रहती है, और इस प्रकार अन्य प्रसारवादी धर्मों की अपेक्षा हिन्दू धर्म भारत और उससे भौगोलिक/ सांस्कृतिक रूप से जुड़े क्षेत्रों में केन्द्रीभूत है। विश्व के 95% हिन्दू भारत में रहते हैं जबकि इस्लाम की जन्मभूमि सऊदी अरब में विश्व के केवल 1.6% मुसलमान रहते हैं।

 ▪विश्व के वाममार्गी और तथाकथित उदारवादी चिन्तकों को विश्व के विशाल मुस्लिम बहुमत वाले 53 देशों, जिनमें से 27 का शासकीय धर्म ही इस्लाम है, 100 से अधिक विशाल ईसाई-बहुमत वाले देशों के बीच ब्रिटेन, ग्रीस, आइसलैण्ड, नॉर्वे, हंगरी, डेनमार्क सरीखे ईसाई धर्म को अपना शासकीय धर्म घोषित कर चुके देशों, बौद्ध मत को शासकीय धर्म मानने वाले 6 देशों और यहूदी देश इज़राइल से कोई समस्या नहीं है, पर भारत के एक हिन्दू राष्ट्र होने की कल्पना मात्र से विक्षिप्त हो जाने वाले बुद्धिजीवी इस बात के लिए कोई तर्क नहीं दे सकते कि भारत को हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं होना चाहिए। ▪


भारत के हिन्दू राष्ट्र हो जाने से उसका पंथनिरपेक्ष चरित्र खतरे में आ जाएगा- यह मानने का कोई कारण नहीं है। पारसी, जैन, सिख, इस्लाम और जरसुस्थ-सभी धर्मों के मानने वाले भारत में फले-फूले हैं- यही इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि हिन्दू अन्य मतों के प्रति असहिष्णु नहीं हैं। भारत में अन्य धर्मों के पूजा-स्थलों में हिन्दू भी पूजा करते देखे जा सकते हैं।

 ▪हिन्दू धर्म में धर्मान्तरण के लिए कोई स्थान है ही नहीं। अनेक मुस्लिम और ईसाई देश हैं जो समय-समय पर अन्य देशों- जैसे म्याँमार, फिलिस्तीन, यमन आदि में इन धर्मों के मानने वालों के धार्मिक उत्पीड़न पर मानवाधिकार-हनन का शोर मचाते रहते हैं, पर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिन्दुओं और सिखों पर हुए अमानवीय अत्याचारों पर मुँह खोलना उन्होंने कभी ज़रूरी नहीं समझा। क्या आज कोई याद भी करता है कि 1972 में पाकिस्तान की फौजों ने बांग्लादेश के निरीह हिन्दुओं का किस पैमाने पर नरसंहार किया? वन्धमा (गन्दरबल) सहित कश्मीर के नरसंहार, पाकिस्तान से हिन्दुओं के सर्वांगी उन्मूलन और अरब (उदाहरण के लिए मस्कट) में ऐतिहासिक हिन्दू मन्दिरों और हिन्दू धर्म को विनष्ट किये जाने की आज कोई बातें भी करना चाहता है? ▪

भारतीय शासन-तन्त्र की धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटने वाली नीतियाँ सीधे-सीधे धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धान्तों के विरुद्ध और विशाल हिन्दू बहुमत के प्रति भेद-भाव-कारी रही हैं। ▪

क्या आपने भारत में दी जाने वाली हज-सब्सिडी का नाम सुना है? सन 2000 से 15 लाख भारतीय मुसलमान इसका फायदा उठा चुके हैं। भारतीय सुप्रीम कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप करके भारत सरकार को निर्देश देना पड़ा कि वह अगले दस सालों में इस सब्सिडी को क्रमशः समाप्त करे। दुनिया का अन्य कोई धर्मनिरपेक्ष देश किसी विशेष मत के अनुयायियों के धार्मिक पर्यटन के लिए इस प्रकार की छूट देता है? 2008 में यह छूट प्रति मुस्लिम तीर्थयात्री 1000 अमरीकी डॉलर थी। ▪

जब भारत अपने देश के मुसलमानों की उनके मजहबी कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता कर रहा था, तब सऊदी अरब जहाँ हिन्दू-प्रतीक मूर्तिपूजा के नाम पर अवैधानिक, निन्दनीय एवम् दण्डनीय हैं, भारत सहित पूरे विश्व में वहाबी अतिवाद का निर्यात कर रहा था। हिन्दुओं को सऊदी अरब में अपना मन्दिर बनाने की इजाज़त नहीं है, पर हिन्दू करदाताओं के पैसों से भारत सरकार मजहबी तीर्थयात्राओं के द्वारा सऊदी अरब के अर्थतन्त्र को मजबूती प्रदान करने में लगी थी। ▪

किसी भी (वास्तविक) सेक्युलर राष्ट्र में सभी नागरिकों के लिए एक सामान कानून होते हैं, पर भारत में विभिन्न मतावलम्बियों के लिए पृथक वैयक्तिक कानून हैं (जो भारतीय संविधान से टकराते रहते हैं)।सरकार मन्दिरों को रखती है पर मस्जिदें और चर्च पूर्ण स्वायत्त हैं। हज-यात्रा छूट है पर अमरनाथ या कुम्भ की यात्रा के लिए नहीं। एक सेक्युलर राष्ट्र को किसी मजहबी पर्यटन पर छूट नहीं देनी चाहिए- इस पर तर्क-वितर्क की कोई गुंजाइश नहीं है। 

▪हिन्दुओं ने हमेशा अल्पमत का आदर किया है और उन्हें सुरक्षा प्रदान की है; उनका सहिष्णुता का इतिहास ध्यान देने। पारसी जब हर जगह उत्पीड़ित हो रहे थे, तब भारत ने उन्हें शरण दी; पिछले हज़ार सालों में देश की जनसंख्या में नगण्य हिस्सेदारी के बावजूद वह स्वयं भी विकसित हुए हैं और देश के विकास में भी सहभागी हुए हैं। ▪

दुनिया भर में प्रताड़ित होने वाले यहूदियों को 2000 साल पहले और सीरियाई ईसाईयों को 1800साल पहले भारत में ही शरण मिली। जैन, बौद्ध और सिख धर्म तो हिन्दू धर्म की ही प्रशाखाएं हैं और इनके अनुयायी बिना किसी समस्या के हिन्दुओं के साथ शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में रहते आये हैं। हिन्दुओं को अपने इस सहिष्णु इतिहास पर गर्व करना चाहिए न कि शर्मिन्दा होना चाहिए। ▪

भारत आज अगर एक सेक्युलर राज्य है, तो 1976 के संविधान-संशोधन या उसके कानून बनाने वाले कारण नहीं, बल्कि उसके विशाल हिन्दू बहुमत के कारण, जो स्वाभाव से ही सेक्युलर है। हिन्दू धर्म की प्रकृति ही, न कि कोई काग़ज़ का टुकड़ा जो 1000 सालों के सहिष्णु व्यवहार के बाद अस्तित्त्व में आया, देश में पन्थनिर्पेक्षता की गारण्टी है। भारत को अपने को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए और जैन, बौद्ध और सिख धर्मों के अनुयायियों की सुरक्षा करनी चाहिए क्योंकि दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं कर रहा है। ▪

भारत हिन्दू राष्ट्र होना उसकी विशाल हिन्दू जनसंख्या के छल-बल से मतान्तरण और अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण को रोकने के मार्ग प्रशस्त करेगा। भारत एक प्रगतिशील और विकासोन्मुख राष्ट्र तभी तक रहेगा जब तक वह सेक्युलर है, और वह सेक्युलर तभी तक रह सकता है जब तक देश के जनसांख्यकीय स्वरुप में हिन्दुओं का वर्चस्व बना रहता है। पन्थनिरपेक्षता और हिन्दू धर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं; सिक्का किसी ओर गिरे, जीत भारत की ही होगी।

 ▪अगर भारत एक हिन्दू राष्ट्र बन जाता है, तो इससे अच्छी बात कोई हो ही नहीं सकती। देश में एक ही आचार संहिता होगी जो सब पर बाध्यकारी होगी। देश में कानून का शासन होगा जो किसी भी देश के विकास के लिए एक आवश्यक तत्त्व होता है: अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान आदि इसके उदहारण हैं। छल-बल से मतान्तरण जो विभिन्न मतों के बीच टकराव का मूल कारण रहा है, पर पूर्ण रोक लगेगी जिससे हर व्यक्ति नास्तिकता सहित अपने मत का पालन करने के लिए पूर्ण स्वतन्त्र होगा। ▪

बहुत से लोगों के लिए यह एक आश्चर्यजनक समाचार होगा कि निरीश्वरवाद (ईश्वर के अस्तित्व को नकारना) भी हिन्दू-दर्शन का एक अंग है। क्या विश्व में इस तरह का कोई दूसरा धर्म है जो अपने धर्म को न मानने वालों का भी इस तरह सम्मान करता हो? मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा लगभग 800 सालों तक चले विध्वंसकारी युग से बहुत पहले से धार्मिक सहिष्णुता और पन्थनिरपेक्षता इस भूभाग के निवासियों का मूल स्वभाव ही रहा है।

 ▪इस्लामी आक्रमणों में जो लगभग 1000 ईसवी सन से 1739 तक अनवरत जारी रहे, कम से कम 10 करोड़ हिन्दू मरे गये जो इतिहास में किसी भूभाग में घटित सबसे बड़ा हत्याकाण्ड है, पर हिन्दुओं ने इन आक्रान्ताओं के वंशजों से उनका बदला लेने की कभी कोशिश नहीं की। वर्तमान समय में दिख रहे हिन्दू बहुमत और इस्लामी अल्पमत के बीच टकराव के लिए सरकारों की छद्म धर्मनिरपेक्ष नीतियाँ जिम्मेदार हैं, हिन्दू-धर्म नहीं। हिन्दू भारत में अ-हिन्दुओं की धार्मिक स्वतन्त्रता पर कोई बन्धन नहीं होगा। ▪

हिन्दुओं को अपने राष्ट्र के इतिहास पर गर्व होना चाहिए। उन्हें अपने मतभेद ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर हल करने चाहिए। वास्तविकता से भागने के प्रयास इस देश के लिए जो लम्बे समय तक धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति का ध्वजवाहक रहा है, अन्ततः विनाशकारी ही सिद्ध होगा। भारत मुस्लिम राष्ट्रों को प्रसन्न करने के लिए अपने बहुमूल्य सिद्धान्तों का बलिदान करने की मूर्खता करता रहा है; सेक्युलरवाद के नाम पर तुष्टीकरण की नीतियों का भी अनुसरण लम्बे समय से करता रहा है।

 ▪हिन्दुओं को अब अपने अन्दर की शान्ति को बाहर प्रकट करने के लिए एक होकर देश पर अपना दावा पेश करना चाहिए। हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्वभाव से ही, और संविधान में उल्लिखित किसी भूमिका या अनुच्छेद के कारण न बना हुआ, सेक्युलर भारत शेष विश्व के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करेगा। और ऐसा करने का समय है: अभी; तुरन्त!

×××××××××÷÷÷

 एक बात मैं अपनी ओर से यह भी कहना चाहता हूं की हिंदुस्तान के हिंदू केवल नाम मात्र के हिंदू हैं जो खुद वकील बैरिस्टर डॉक्टर इंजीनियर हैं वह अपने धर्म के बारे में कुछ नहीं जानते हैं तो अगर इसका हिंदू राष्ट्र नाम रख भी दिया जाएगा तो उससे क्या होने वाला है जब तक हिंदुओं में क्रांति नहीं आएगी और हिंदू तभी तक हिंदू है जब तक वह किसी और से डर रहा है यह डर निकलते ही वह फिर मस्त हो जाएगा जैसे आज मस्त है

 राधे-राधे

÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
Ashok Gupta Kinkar Import Business Consultant
Vivek Vihar, Delhi, India
USA CHINA DUBAI
+91 98108 90743
YouTube link :-
https://www.youtube.com/playlist?list=PL2Adp_--AZB50gfueqXv9A-ISL1PyS9Eh
Website link :-
http://www.importexportsbusiness.com/
🌷⛵😊🍒

××××××××××

 क्या आपने कभी राधा कृष्ण को साक्षात देखा है अगर नहीं तो देख लीजिए Radha Krishna Doing ice skating

÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷

😊 कोरोना में भी हंसने की आदत डालिए😀 बच्चे में भगवान होते हैं. Video👇
https://youtu.be/0RywJalf46s
🍄
बहुत थोड़े में इस बच्चे ने बड़े कॉन्फिडेंस से हमें समझाने क कोशिश की है
🌷
कितना प्यारा बच्चा और कितने भोलेपन से समझाया है
💐
 साधुवाद है भगवान इसकी आयु बड़ी करें राधे राधे
🌿
हमें ऐसे बहुत से बच्चों की आवश्यकता है इनके माता-पिता को भी नमन है🙏
Ashok Gupta Kinkar Import Business Consultant
Vivek Vihar, Delhi, India
USA CHINA DUBAI
+91 98108 90743

YouTube link :-
https://www.youtube.com/playlist?list=PL2Adp_--AZB50gfueqXv9A-ISL1PyS9Eh

Website link :-
http://www.importexportsbusiness.com/
🌷⛵😊🍒

Coronavirus camp treatment मृत्युंजय शर्मा अपनी वाइफ के साथ कोरोनावायरस आईसोलेशन कैंप में एक हफ्ता उन्होंने बताई अपनी आपबीती. 

अगर आपको कोरोनावायरस के संदिग्ध मरीजों के यूज़ किए हुए बिस्तर तकिए पर सोने को मजबूर होना पड़े तो? आपके कमरे में पुराने कोरोना मरीजों के मास्क, बॉक्सर पड़े हों तो? कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट के इंतजार में बदबू मारते कूड़े के ढ़ेर के और कोरोना संदिग्धों के साथ रहना पड़े तो? उत्तर-प्रदेश के नोएडा में रहने वाले मृत्युंजय शर्मा अपनी वाइफ के साथ कोरोनावायरस आईसोलेशन कैंप में एक हफ्ता बिता कर आज ही लौटे हैं. उन्होंने बताई अपनी आपबीती. मृत्युंजय कहते हैं.:- सबसे पहले मैं ये कहना चाहता हूं कि ये कोई पॉलिटिकल एजेंडा नहीं है, आप मेरे ट्विटर और फेसबुक अकाउंट पर देख सकते हैं कि मैं मोदी सरकार का समर्थक रहा हूं. लेकिन अब मुझे लगता है कि मोदी सरकार केवल मेकओवर कर रही है और केवल मीडिया हाउस को खरीद कर, टीवी और सोशल मीडिया पर अपना ब्रांड बना कर कैंपेन कर लोगों को मिसलीड कर रही है. इसकी कहानी शुरू होती है, पिछले सोमवार से. पिछले सोमवार से पहले मेरी वाइफ को पिछले एक हफ्ते से फीवर आ रहा था. शायद किसी दवाई की एलर्जी हो गई थी, मेरे घर के पास के ही अस्पताल में ही उसका ट्रीटमेंट चल रहा था. अचानक से उसे कफ की प्रोबलम भी होने लगी. फिजीशियन ने सलाह की कि आप सेफ साइड के लिए कोरोना का टेस्ट करा लो. टीवी पर देख कर हमें लगता था कि कोरोना का टेस्ट बहुत आसान है और अमेरिका और इटली जैसे देशों से हमारे देश की हालत बहुत अच्छी है. सरकार ने सब व्यवस्था कर रखी है. इसी इंप्रेशन में हमने कोरोना का टेस्ट कराने की बात मान ली. मुझे पता था कि सरकारी अस्पताल में इतनी अच्छी फेसिलिटी मिलती नहीं है, हमने कोशिश की कि कहीं प्राइवेट में हमारा टेस्ट हो जाए. हालांकि सभी न्यूज़ चैनल यह दिखा रहे थे कि सरकारी अस्पताल में बहुत अच्छी सुविधाएं हैं, लेकिन फिर भी मैंने सोचा कि प्राइवेट लैब में अटेंम्ट करता हूं. कोरोना के टेस्ट के लिए जितने भी प्राइवेट लैब की लिस्ट थी, मैंने वहां कॉन्टेक्ट करने की कोशिश की लेकिन वहां कांटेक्ट नहीं हो पाया. जहां कॉन्टेक्ट हो पाया, उन्होंने मना कर दिया कि वो कोरोना का टेस्ट नहीं कर रहे हैं. अब मेरे पास आखिरी ऑप्शन बचा था कि गवर्नमेंट की हैल्पलाइन से मदद लेते हैं. मैंने वहां कॉल किया. गवर्नमेंट का सेंट्रल हैल्पलाइन, स्टेट हैल्पलाइन और टोल फ्री नम्बर तीनों पर हमारी फैमली के तीनों व्यस्क लोग, मैं, मेरा भाई और मेरी वाइफ, हम तीनों इन हैल्पलाइन पर फोन लगातार मिलाते रहे. तकरीबन एक घंटे बाद मेरे भाई के फोन से स्टेट हैल्पलाइन का नंबर मिला. उस हैल्पलाइन से किसी सामान्य कॉल सेंटर की तरह रटा रटाया जवाब देकर कि आपको कल शाम तक आपको फोन आ जाएगा, वगैहरा कह कर फोन डिस्कनेक्ट करने की कोशिश की, लेकिन मैंने बोला कि सिचुएशन क्रिटिकल है, अगर किसी पेशेंट को कोरोना है तो उसे जल्द से जल्द ट्रीटमेंट देना चाहिए, ऐसी सिचुएशन में हम आपकी कॉल का कब तक कॉल करेंगे. हमने उनसे पूछा कि टेस्ट का क्या प्रोसीजर होता है, कॉल के बाद क्या होता है, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं था. मैं निराश हो चुका था. मेरे पास डीएम गौतमबुद्ध नगर का फोन था. सुहास साहब, उनकी भी बहुत अच्छी ब्रांड है. उनको कॉल किया तो उनके पीए से बात हुई. मैंने उनको बताया कि मेरे घर में एक कोरोना सस्पेक्ट है और कोई भी नम्बर नहीं मिल रहा है, ये क्या सिस्टम बना रखा है, तो उनका कहना था कि इसमें हम क्या करें, ये तो हैल्थ डिपार्टमेंट का काम है तो आप सीएमओ से बात कर लो. मैंने उनसे कहा कि आप मुझे सीएओ का नम्बर दे दो. उन्होंने कहा, मेरे पास सीएमओ का नंबर नहीं है. यह अपने आप में बड़ा ही फ्रस्टेटिंग था कि डीएम के ऑफिस के पास सीएमओ का नम्बर नहीं है, या डीएम के पीए को इस तरह से ट्रेन किया गया है कि कोई फोन करे तो उसे सीएमओ से बात करने को कहा जाए. बहुत आर्ग्युमेंट करने के बाद उन्होंने मुझे डीएम के कंट्रोल रूम का नंबर दे दिया कि आप वहां से ले लो. फिर मैं इतना परेशान हो चुका था कि डीएम के कंट्रोल रूम को फोन करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, फिर मैंने खुद ही इंटरनेट पर नंबर ढूंढ कर निकाला. इसके बाद मैंने सीएमओ को कॉल किया. सीएमो को कॉल करने के बाद वहां से भी कोई सही जवाब नहीं मिला, उन्होंने कहा, इसमें हम क्या कर सकते हैं आप 108 पर एंबुलेंस को कॉल कर लो. और एंबुलेंस को ये बोलना कि हमें कासना ले चलो. वहीं हमने कोरोनावायरस का आइसोलेशन वार्ड बनाया हुआ है. जबकि मीडिया में दिन रात यह देखने को मिलता है कि नोएडा में कोरोना के इतने बड़े-बड़े अस्पताल हैं, फाइव स्टार आइसोलेशन वार्ड हैं वगैहरा लेकिन फिर भी उन्होंने हमें ग्रेटर नोएडा में कासना जाने को कहा. फिर बहुत मुश्किल से 108 पर कॉल मिला और फिर घंटे भर की जद्दोजहद के पास 108 के कॉलसेंटर पर बैठे व्यक्ति ने एक एंबुलेंस फाइनल करवाया. जब मेरे पास एंबुलेंस आई उस समय रात के 10 बज चुके थे. मैं शाम के सात बजे से इस पूरी प्रक्रिया में लगा था. यूपी का लॉ एंड ऑर्डर देखते हुए रात के दस बजे मैं अपनी वाइफ को अकेले नहीं जाने दे सकता था. मेरे घर में 15 महीने की एक छोटी बेटी भी है और घर में केवल एक मेरा एक भाई ही था जिसे बच्चों की केयर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, फिर भी मैं अपनी बच्ची को उसके पास छोड़कर वाइफ के साथ एंबुलेंस में बैठ गया और वहां से आगे निकले. आगे बढ़ने के बाद ड्राइवर ने बोला कि हम ग्रेटर नोएडा नहीं जा सकते, मुझे खाना भी है, मैंने चार दिन से खाना नहीं खाया और वो बहुत अजीब व्यहवार करने लगा. फिर वो हमें किसी गांव में ले गया, वहां से उसने अपना खाना और कपड़ा लिया और फिर वहां से दूसरा रूट लेते हुए हमें वो ग्रेटर नोएडा लेकर गया. हमें गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ में हमें ले जाया गया. वहां एक कम डॉक्टर मिलीं जो ट्रेनी ही लग रहीं थीं, उन्होंने दूर से ही वाइफ से पूछा कि आपको क्या सिमटम हैं, वाइफ ने अपने सिमटम बताए, तो उन्होंने कहा कि आप दोनों को कोरोना का टेस्ट करना पड़ेगा. रिपोर्ट 48 घंटे में आ जाएगी. और अगर आप कोरोना का टेस्ट करवाते हैं तो आपको आईसोलेट होना पड़ेगा. मैंने कहा कि मेरे लिए यह संभव नहीं है, मेरी 15 महीने की बच्ची है, मुझे वापस जाना पड़ेगा, आप बस मुझे वापस भिजवा दो. उन्होंने कहा कि हम वापस नहीं भिजवा सकते हैं. और अगर आप आइसोलेट नहीं होना चाहते हैं तो आप यहीं कहीं बाहर रात गुजार लो सुबह देख लेना आप कैसे वापस जाओगे. यह लॉकडाउन की सिचुएशन की बात है जिसमें कोई भी आने जाने का साधन सड़क पर नहीं मिलता है. अचानक से उन्होंने किसी को कॉल किया और उधर से किसी मैडम से उनकी बात हुई और उन्होंने फोन पर कहा कि नहीं हम हस्बैंड को नहीं जाने दे सकते क्योंकि वो भी एंबुलेंस में साथ में आए हैं. मैंने उनसे कहा कि 48 घंटे तो मेरा भाई मैनेज कर लेगा लेकिन आप पक्का बताइए कि 48 घंटे में रिपोर्ट आ जाएगी? इस पर उन्होंने कहा कि हां 48 घंटे में रिपोर्ट आ जाएगी आप अपना सैंपल दे दो. रात को ही हमारी सैंपलिंग हो गई और फिर से हमें एंबुलेंस में बिठाला गया. एंबुलेंस में हमें तीन और सस्पेक्ट्स के साथ बिठाला गया और इसके पूरे चांस थे कि अगर मुझे कोरोना नहीं भी होता और उन तीनों में से किसी को होता, तो मुझे और मेरी बीवी को भी कोरोना हो जाता. एक एबुंलेंस में पांच लोगों को पास-पास बिठाया गया. उनकी सैंपलिंग भी हमारे आस-पास ही हुई थी. इसके बाद हमें वहां से दो तीन किलोमीटर दूर एससीएसटी हॉस्टल मे आइसोलेशन में ले जाया गया. मेरी सैंपलिंग होने के बाद भी ना मुझे कोई ट्रैकिंग नंबर दिया गया, ना मेरा कोई रिकॉर्ड मुझे दिया गया कि मैं कहां हूं मेरे पास कोई जानकारी नहीं थी. इसके पास मेरी वाइफ को लेडीज वार्ड भेज दिया गया और मुझे जेंट्स वार्ड. जेंट्स और लेडीज़ दोनों का वॉशरूम कॉमन था. जब मुझे मेरा रूम दिया गया तो वहां चारपाई पर बेडशीट के नाम पर एक पतला सा कपड़ा पड़ा हुआ था और दूसरा कपड़ा मुझे दिया गया और बोला गया कि आप पुराना बेडशीट हटा कर ये बिछा लेना. रात के एक बज रहे थे, जो खाना मुझे दिया गया वो खराब हो चुका था, लेकिन मैंने इस पर कोई सवाल नहीं उठाया मैं बिना खाए वैसे ही सो गया. उसके बाद मैं सुबह उठा मुझे फ्रेश होना था, मैं नीचे गया और हाथ धोने के लिए साबुन मांगा. मुझे जवाब मिला कि पानी से ही हाथ धो लेना. सैनिटाइजेशन के नाम पर जीरो था वो आइसोलेशन सेंटर. चारों तरफ कूड़ा फैला पड़ा था. मुझे एक -दो घंटे कह कर पूरे दिन साबुन का इंतजार करवाया गया लेकिन मुझे साबुन नहीं मिला. इस चक्कर में ना मैंने खाना खाया औ ना मैं फ्रेश हो पाया. मैंने सोचा कि केवल 48 घंटे की बात है, काट लेंगे. अगले दिन जब मैं फिर गया साबुन मांगने तो फिर मुझे आधे घंटे में साबुन आ रहा है कह कर टाल दिया गया. करीब 12 बजे मेरी उनसे बहस हो गई तो उन्होंने अपने लिक्विड सोप में से थोड़ा सा मुझे एक कप में दिया तब जाकर मैं फ्रेश हो पाया और मैंने खाना खाया. वहां बिना कपड़ों और सफाई के हालत खराब हो रही थी, 48 घंटे के बाद मैं पूछने गया तो मुझे बताया कि इतनी जल्दी नहीं आती है रिपोर्ट 3-4 दिन इंतजार करना होगा. वहां उन्होंने बाउंसर टाइप कुछ लोग भी बिठा रखे हैं ताकि कोई ज्यादा सवाल जवाब ना करे. वहां मैंने देखा कि वहां चाहें आप नेगेटिव हो या पॉजिटिव हो किसी की भी 7-8 दिन से पहले रिपोर्ट नहीं आती है. हर हाल में मरना है, सरकार आपके लिए वहां कुछ नहीं कर रही है. केवल आपको आइसोलेशन वार्ड में डाल दिया जाता है कि केवल सरकार की नाकामी छिप जाए. देट्स इट. वहां पर 80% लोग जमात और मरकज वाले और उनके संपर्क वाले लोग थे. उनका भी यही हाल था. उनकी भी रिपोर्ट नहीं बताई जा रही थी. करीब 72 घंटे बाद जब मैंने दोबार पूछा कि मेरी रिपोर्ट नहीं आ रही है तो वहां पर मौजूद एक व्यक्ति ने कहा कि हमें नहीं पता होता है कि आपकी रिपोर्ट कब आएगी. हमें केवल इतना पता है कि आपको यहां से जाने नहीं देना है जब तक आपकी रिपोर्ट नहीं आ जाती है. मुझे लग रहा था कि उनके पास कोई इंफॉर्मेशन नहीं थी, कोई ट्रैकिंग की व्यवस्था नहीं थी. जो पहले आ रहा था वो बाद में जा रहा था, जो बाद आ रहा था वो पहले जा रहा था. मैंने दोबारा डीएम के नंबर पर कॉल करना शुरू किया, फिर वो स्विच ऑफ हो गया और फिर वो आज तक वो नंबर बंद है, शायद नंबर बदल लिया है. फिर मैंने नोएडा के सीएमओ को कॉल करना शुरू किया, उन्होंने कॉल नहीं उठाया. मैंने मैसेज किया कि मेरी 15 महीने की बेटी है जो मदर फीड पर है और फिलहाल मेरे भाई के साथ अकेली है, मुझे आपसे मदद चाहिए. लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं आया. मुझे समझ नहीं आताा कि कोरोनावायरस के इतने क्रूशियल समय में आप कैसे 5-6 दिन में रिपोर्ट दे सकते हैं! सीएमओ ने मेरा मैसेज पढ़ा और फिर मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया. फिर मैंने डिप्टी सीएमओ को भी कॉल किया लेकिन फोन नहीं उठा. मैंने काफी हाथ-पैर मारे, मेरा फ्रस्ट्रेशन बहुत बढ गया था. एक डॉक्टर आते हैं वहां नाइट ड्यूटी पर, उन्होंने कहा कि मेरे पास कोई इंफॉर्मेशन नहीं हैं यहां पर मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता, आप मुझसे कल सुबह बात करना. मेरे साथ ही एक और लड़का आइसोलेट हुआ था, गंदगी और गर्मी के कारण वो कल मेरे सामने बेहोश हो गया. कोई उसे उठाने, उसे छूने के लिए, उसके पास जाने को राजी नहीं था. वहां किसी भी पेशेंट की तबियत खराब हो रही थी तो कोई उसके पास नहीं जा रहा था. अगर किसी को फीवर है तो पैरासिटामोट देकर वार्ड के अंदर चुपचाप सोने को कहा जा रहा था. सीढियों के पास इतना कूड़ा इकठ्ठा हो रहा था कि बदबू के मारे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. सब केवल अपनी औपचारिकता कर रहे थे वहां. बड़े अधिकारी जो वहां विजिट कर रहे थे वो बाहर से ही बाहर निकल जा रहे थे, अंदर आकर हालात जानने की कोशिश किसी ने नहीं की. आखिरकार कल शाम तक जब मेरी रिपोर्ट नहीं आई और मेरे साथ वालों की आ गई तो मैंने उनसे फिर पूछा कि मेरी रिपोर्ट क्यों नहीं आई अभी तक. क्यों कोई ट्रेकिंग सिस्टम नहीं है, क्यों किसी को कुछ पता नहीं है. तो उनका वही रटा रटाया जवाब मिला कि हम केवल आइसोलेट करके रखते हैं, हमें इसके अलावा और कोई जानकारी नहीं है. जब रिपोर्ट आएगी आप तभी यहां से जाओगे. कोरोना आईसोलेशन वार्ड की यूज किया हुआ बिस्तर इसके बाद मेरी वाइफ का फोन आया कि उन्होंने सुना है कि लेडीज को कहीं और शिफ्ट कर रहे हैं, किसी और जगह ले जाएंगे. मैं अपनी वाइफ के साथ नीचे गया और पता चला कि लेडीज को गलगोटिया यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट कर रहे हैं. मैंने उनसे कहा कि मैं अपनी वाइफ को अकेले नहीं जाने दूंगा. वरना अगर इन्हें कुछ भी होता है तो आप रेस्पोंसिबल होगे. फिर उन्होंने मेरी बात मानी और कहा कि आपको भी इनके साथ भेज देंगे और फिर उन्होंने मुझे बाहर बुला लिया. बाहर बुलाने के बाद में उन्होंने मेरे हाथ में पर्ची पकड़ाई कि ये इस वार्ड से उस वार्ड में आपका ट्रांसफर स्लिप है. मैंने पर्ची को देखा तो उसमें पहली लाइन में मुझे लिखा दिखा कि "मृत्युंजय कोविड -19 नेगेटिव". इस पर मैंने उनसे कहा कि अरे जब मेरी रिपोर्ट आई हुई है तो आप मुझे दूसरे वॉर्ड में क्यों भेज रहे हो. इस पर उन्होंने मेरे हाथ से पर्ची ले ली और कहा कि शायद कोई गलती हो गई है. इतने गैरजिम्मेदार लोग हैं वहां पर. फिर उन्होंने क्रॉसवेरिफाई किया और बाहर आकर कहा कि हां आपकी रिपोर्ट आ गई है. आपकी रिपोर्ट नेगेटिव है. आपकी वाइफ की रिपोर्ट नहीं आई है. इन्हें जाना पड़ेगा. आप इस एंबुलेंस में बैठो, आपकी वाइफ दूसरी एंबुलेंस में बैठेंगी. मैंने उनसे सवाल किया कि मेरी वाइफ की सैंपलिंग मेरे से पहले हुई थी तो ऐसा कैसे पॉसिबल है कि मेरी रिपोर्ट आ गई लेकिन मेरी वाइफ की नहीं आई? मैंने सोचा ज़रूर कुछ गलती है. मैंने एंबुलेंस रुकवा दी कि मैं बिना जानकारी के नहीं जाने दूंगा. फिर वो दो स्टाफ के साथ अंदर गए और फिर कुछ देर बाद बाहर आकर बताया कि हां आपकी वाइफ का भी नेगेटिव आया है. वहां कोई प्रोसेस, कोई सिस्टम नहीं है, जिसके जो मन आ रहा है वो किए जा रहा है. किसी को नहीं पता कि चल क्या रहा है. फिर उन्होंने कहा कि आप दोनों अब घर जा सकते हो. वापस आते हुए भी एंबुलेंस में पांच और लोग साथ में थे. वहां हाइजीन की खराब स्थिति के कारण पूरे चांस हैं कि अगर आपको कोरोना नहीं भी है आइसोलेशन वार्ड या एंबुलेंस में आपको कोरोना हो जाए. अगर आपको कोरोना नहीं भी है तो आप वहां से नहीं बच सकते हो. पहले एंबुलेंस ड्राइवर ने हमें कहा कि वो नोएडा सेक्टर 122 हमें छोड़ देगा. लेकिन हमें निठारी छोड़ दिया गया. हमसे कहा गया कि आप यहां पर वेट करो , मैं दूसरी सवारी को छोड़ने जा रहा हूं. 102 नंबर की गाड़ी आएगी वो आपको लेकर जाएगी. वहां आधा घंटा इंतजार करने के बाद जब मैंने वापस कॉल की और पूछा कि कब आएगी गाड़ी किया तो उन्होंने कहा कि हमारी जिम्मेदारी यहीं तक की थी. आगे आप देखो. फिर हम वहां और खड़े रहे. लगभग आधा घंटा और बीता और बीता और जो एंबुलेंस का ड्राइवर हमें छोड़ कर गया था वो वापस लौटा. हमें वहीं खड़ा देख कर रुक गया. कहने लगा कि अरे बाबूजी मैं क्या करुं मैं तो खुद परेशान हूं चार दिन से खाना नहीं खाया है, हालत खराब है. मेरे सामने ही उसने वीड मारी और कहने लगा कि 12 से ऊपर हो रहे हैं आप काफी परेशान हो, मैं आपको छोड़ देता हूं. एंबुलेंस ड्राइवर अपने दो-तीन साथियों के साथ एंबुलेंस में बैठा और फिर वो रात के 1 बजे मेरी सोसाएटी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर ही वो मुझे छोड़ कर चला गया. यह कहानी बहुत कम करके मैंने बताई है, कि क्या सिस्टम जमीन पर है और क्या मीडिया में दिखता है. जब आप ग्राउंड लेवल पर आते हो तो कोई रेस्पोंसिबल नहीं है आपकी हैल्थ के लिए, आपकी सिक्योरिटी के लिए, आपके कंसर्न के लिए और आपकी जान के लिए. Naveen Kumar Pandey ji की वाल से

Coronavirus Treatment in India is impossible

⚜️Corona Times🔓

 पता नहीं कोरोना द्वारा लोक डाउन कब तक रहे हमें ज्यादा दिनों के लिए तैयार रहना चाहिए

 सरकार चाहे तो इसे चरणों में खोल सकती है जिससे कि यह देश धीरे-धीरे कोरोना के साथ जीना सीख ले

 क्योंकि यह जो कैंसर देश की नसों में फैला हुआ है यह बहुत आसानी से काबू में आने वाला नहीं है


 सिर्फ एक व्यक्ति भी अगर चाहे तो पूरे देश को ठिकाने लगा सकता है इसलिए अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर इसको फैला रहा है तो उस पर N S A से भी अगर कोई बड़ा अभियोग है तो वह लगाना चाहिए और तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए

जैसे कि युद्ध क्षेत्र में सामने शत्रु खड़ा हो तो आप उस पर f.i.r. नहीं लगाते

 डॉक्टरों के पत्थर फेंकने वाले और थूकने वाले कोई व्यक्ति नहीं है एक विचारधारा है

 जब हमारा युद्ध बॉर्डर पर होता था तो यह लोग कुछ करके देश का नुकसान नहीं कर सकते थे मगर अब तो हर व्यक्ति को नुकसान करने के लिए मौका है

आपका जो विचार है आप बताएं

 ❓ ❓❓

 अपना विचार नीचे लिख कर आगे प्रसारित करें ...

.................. ..................... ÷

÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷🆘

32 साल बाद डीडी पर महाभारत की वापसी हुई है, इस प्रतिष्ठित शो के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य क्या हैं?

*32 साल बाद डीडी पर महाभारत की वापसी हुई है, इस प्रतिष्ठित शो के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य क्या हैं?* त

त्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री वी एन गाडगिल और दूरदर्शन के चेयर मैन भास्कर घोष(सागारिका घोष के पिता) नहीं चाहते थे कि रामायण अथवा महाभारत जैसे धार्मिक सीरियल का प्रसारण नैशनल टेलीविजन पर हो। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आगे बढ़ कर दूरदर्शन के अधिकारियों से बात कर उन्हें कहा कि भारतीय पौराणिक ग्रंथों पर सीरियल बनाए जाएं। एक मीटिंग का आयोजन दूरदर्शन के मंडी हाउस में किया गया जिसमें तमाम दूरदर्शन के निर्माता और प्रायोजकों को बुलाया गया और उन्हें बतलाया गया कि रामायण महाभारत पर सीरियल बनाने की योजना है । लोगों ने दावे पेश किए किन्तु कॉन्ट्रेक्ट सागर साहब और बी आर चोपड़ा साहब को मिला क्योंकि यह दोनों निर्माता विक्रम वेताल दादा दादी की कहानियां और बहादुर शाह जफर तथा बुनियाद जैसे सुपरहिट सीरियल बना चुके थे और प्रसिद्ध फिल्म निर्माता भी थे। महाभारत के डॉयलॉग डॉक्टर राही मासूम रजा ने लिखे थे । महाभारत की पटकथा पण्डित नरेंद्र शर्मा जी ने लिखी थी वहीं रामायण से जुड़ी रिसर्च और पटकथा स्वयं रामानन्द सागर जी ने लिखी थी , निर्देशन के साथ वह निर्माता और पटकथा लेखक की भूमिका भी निभा रहे थे । सागर साहब संस्कृत और फारसी के विद्वान थे लाहौर युनिवर्सिटी से उन्होंने इसमें डिग्री प्राप्त की थी । सागर साहब एक सफल पत्रकार भी रहे। महाभारत के सिने मेटोग्राफर बी आर चोपड़ा के भाई साहब धर्म चोपड़ा साहब थे । शकुनि बने गुफी पेंटल साहब कास्टिंग डायरेक्टर थे। गुफी पैंटल साहब ने हाल ही में महाभारत से जुड़ी हुई याद एक इंटरव्यू में शेयर किया । हुआ यह कि एक बार गुफी पेंटाल साहब और भीष्म की भूमिका निभाने वाले मुकेश खन्ना जी एक बार ट्रेन से रात को कहीं जा रहे थे । ट्रेन पहले से भरी हुई आ रही थी , उस भीड़ में भी किसी सद गृहस्थ ने मुकेश खन्ना जी को बैठने के लिए जगह दी किन्तु गुफी पेटल साहब को किसी ने बैठने कि जगह नहीं दी वह पूरी यात्रा उनको खड़े खड़े करनी पड़ी। और एक याद गुफी साहब साझा करते हुए कहते हैं कि जिन् दिनों महाभारत प्रसारित होती थी उसने लोकप्रियता के तमाम रिकार्ड तोड़ दिए थे , एक बार उनको एक महाभारत के दर्शक का पत्र आया और उसमे शकुनि के लिए चुन चुन कर गालियां और धमकियां लिखी हुईं थीं। युधिष्ठिर की भूमिका में गजेन्द्र चौहान साहब थे जो आगे चल कर फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के निदेशक बने। वह श्री कृष्ण कि भूमिका निभाना चाहते थे किन्तु उन्हें युधिष्ठिर कि भूमिका मिली नीतीश भारद्वाज जी का चुनाव पहले विदुर की भूमिका में किया गया था। रामायण और महाभारत दोनों के दो सीजन बने , रामायण का अगला सीजन जहां उत्तर रामायण था वहीं महाभारत का अगला सीजन महाभारत कथा के नाम से बना। दारा सिंह अकेले ऐसे कलाकार थे जिन्होंने दोनों सीरियलों में भूमिका निभाई। समीर राज़दा जो रामायण में शत्रुघ्न बने, महाभारत में विराट नरेश के पुत्र उत्तर बने और उनके पिता मूलराज राज़दा जो रामायण में महाराज जनक बने, महाभारत में गन्धर्व बने जिन्होंने दुर्योधन (पुनीत इस्सर) को बंदी बना लिया था। बीबीसी के अनुसार रामायण को ५६ देशों में ६५ करोड़ लोगों ने देखा , वहीं महाभारत का प्रसारण स्वयं बीबीसी ने ब्रिटन में चैनल फोर पर किया था। मुकेश खन्ना साहब जिन्होंने भीष्म पितामह की भूमिका निभाई वह कहते हैं कि पहले भीष्म पितामह की भूमिका में विजयेन्द्र घादगे साहब नजर आने वाले थे किन्तु उन्होंने यह भूमिका नहीं की और मुकेश खन्ना साहब ने यह भूमिका दी गई। मुकेश खन्ना साहब को दुर्योधन की भूमिका ऑफर हुई थी वह दुर्योधन जैसा नकारत्मक किरदार नहीं निभाना चाहते थे उन्होंने गुफी पेंतल से इस बाबत कहा किंतु चोपड़ा साहब को मना करने का साहस उनमें नहीं था । तब पुनीत इस्सर ने खुद से हो कर चोपड़ा साहब से दुर्योधन की भूमिका निभाने के लिए कहा , उनका ऑडिशन हुआ और इस भूमिका के लिए उनका चयन हो गया। मुकेश खन्ना साहब का एक यूटयूब चॅनेल हैं जिसमें एक वीडियों के डोआरन वह महाभारत सीरियल में फ़िल्माई गयी शर शय्या को शो केस में रखा दिखलाते हैं , मुकेश खन्ना साहब को मेक अप करने में और शर शय्या पर लेटने के लिए रोजाना मेहनत करनी पड़ती थी जब सीरियल क़ी शूटिंग समाप्त हो गयी तो उन्होने चोपड़ा साहब से ब्टौर याद गार बाणों की शर शैया की माँग की जिसे चोपड़ा साहब ने सहर्ष दे दिया | महाराज भरत का रोल तत्कालीन सुपरस्टार राज बब्बर साहब ने निभाया था। राज बब्बर बी आर फिल्म्स में (१) इन्साफ की पुकार, (२) निक़ाह, (३) मज़दूर, (४) आज की आवाज़ और (५) दहलीज़ में एक्टिंग की थी। ऋषभ शुक्ला जी जो एक मशहूर थियेटर कलाकार और वॉइस ओवर आर्टिस्ट हैं उन्होंने महाभारत में राजा शांतनु और महाभारत कथा में श्री कृष्ण की भूमिका निभायी थी। महाभारत के अगले सीजन महाभारत कथा क्योंकि १९९६ के चुनावों के दौरान आया था तो नीतीश भरद्वाज जी के उपलब्ध न होने के कारण ऋषभ शुक्ला जी ने है महाभारत कथा में श्री कृष्ण का रोल अदा किया। चोपड़ा साहब और सागर साहब से दूरदर्शन के अधिकारियों के सम्बन्ध खिंचे हुए रहे दूरदर्शन के सरकारी अधिकारियों को लगता था कि इन सीरियलों से हिन्दू संगठित हो रहे हैं। सागर साहब की आत्मकथा में यह वर्णन है कि उन्हें कई बार यह अहसास हुआ कि रामायण के निर्माण में कोई दैवीय योजना है। उदाहरण के लिए फिल्म ललकार की शूटिंग के लिए लोकेशन तलाशने सागर साहब अपने बेटे प्रेम सागर साहब संग गुवाहाटी असम आए थे । जब वह कामाख्या स्थित सुप्रसिद्ध मन्दिर में देवी के दर्शन करने के बाद परिक्रमा कर रहे तो एक छोटी बच्ची उनके पास आई और उनसे कहा कि पेड़ के तले साधु महाराज आपको बुला रहे हैं । जब सागर साहब अपने बेटे संग उधर निकले तो प्रेम सागर ने पीछे मुड़ कर उस बच्ची को देखा कि वह किधर जाती है तो वह गायब हो चुकी थी जब सागर साहब उस पेड़ के तले आए तो वहां कई साधु एक अन्य साधु महाराज जो चबूतरे पर बैठे हुए थे उनके इर्द गिर्द बैठे हुए थे । सागर साहब ने प्रयोजन पूछा परन्तु वे शांत रहे , सागर साहब ने कोई सेवा अथवा मदद के लिए पूछा किंतु साधुओं में से किसी ने कुछ नहीं कहा तो वे विनम्रता से आज्ञा लेे कर वापस चले आए। वे और प्रेम सागर जी इस घटना को भूल चुके थे किन्तु सन अस्सी इक्कयासी के लगभग जब वह हिमालय में शूटिंग कर रहे थे तो अचानक मौसम खराब हो गया । पास ही एक साधु की कुटिया थी सो उन्होंने यूनिट के महिलाओं और पुरुषों के लिए शरण मांगने हेतु एक व्यक्ति को साधु महाराज के पास भेजा। लोग उनकी कुटिया में आना चाहते हैं यह सुनते ही साधु महाराज आग बबूला हो गए और उन्होंने उस व्यक्ति को चिल्ला कर बाहर निकाल दिया , किन्तु जब साधु ने उससे पूछा कि कौन डायरेक्टर है तो उन्हें उत्तर मिला रामानन्द सागर यह सुनते ही साधु के व्यवहार में परिवर्तन हुआ । वह साधु सबको स सम्मान कुटिया में लेे आया और जड़ी बूटी का काढ़ा दिया । फिर सागर साहब से गुवाहाटी की घटना के बारे में पूछा , सागर साहब आश्चर्य चकित हो गए कि इस साधु को उस घटना से क्या प्रयोजन । किन्तु साधु ने कहा कि जिस बच्ची ने उन्हें पेड़ के तले साधु महाराज के पास भेजा वह स्वयं देवी थी और वह साधु महाराज महावतार बाबाजी हैं जो किसी को दर्शन नहीं देते , सागर साहब को दर्शन इसलिए दिए क्योंकि वह आगे चलकर रामायण का निर्माण करने वाले हैं । यह घटना अस्सी इक्यासी की होगी और इसके बाद ही सागर साहब ने फिल्मों से निकल कर टीवी पर जाने की सोची। उदाहरण के लिए जब नवम्बर १९८६ में वी एन गाडगिल और भास्कर घोष ने रामानन्द सागर जी के बनाए पायलट एपिसोड को देख इस धारावाहिक को मंजूरी न देने का फैसला किया तो अप्रत्याशित रूप से प्रधानमंत्री ने मंत्री मंडल में फेर बदल कर दिया। वी एन गाडगिल सूचना प्रसारण मंत्रालय से हटाए गए और नए मंत्री बने अजित कुमार पांजा जो रामायण के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं रखते थे फिर भी दूरदर्शन के सरकारी बाबू और क्लर्कों ने तीन महीना फायले लटकाई। तब सागर साहब बेहद निराश हो गए उनका नियम था कि मुंबई स्थित घर सागर विला में छत पर कबूतरों और पक्षियों को सुबह दाना डालते थे , एक दिन सुबह परेशान सागर साहब भविष्य कि अनिश्चितता में घिरे हुए छत पर खड़े हो कर पक्षियों को दाना खिला रहे थे कि एक साधु का उनके विला में आगमन हुआ , प्रेम सागर साहब इस घटना को लिखते हुए कहते हैं कि वह साधु अत्यन्त तेजस्वी दिखाई पड़ रहा था और साधुओं का दान मांगने आना सागर परिवार के लिए कोई नई बात नहीं थी मगर सागर साहब के अनुनय करने पर भी इस साधु ने कुछ दान नहीं लिया और उन्हें संबोधित कर कहा कि " मैं हिमालय स्थित अपने गुरु की आज्ञा से तुम्हे यह सूचित करने आया हूं कि व्यर्थ चिंता करना छोड़ दो , तुम रामायण नहीं बना रहे हो , स्वर्ग में बैठी दिव्य शक्तियां तुमसे यह कार्य करवा रहीं है " इतना कह कर वह साधु वहां से बिना कुछ लिए चला गया इस घटना ने सागर साहब के मन में उत्साह का संचार किया। इस घटना के दस बारह दिन बाद ही सागर साहब को फोन पर पूछा गया कि क्या वह २५ जनवरी १९८७ को रामायण का पहला एपिसोड दिखाने हेतु दूरदर्शन को कैसेट भेज पाएंगे । सागर साहब ने थोड़ा वक्त मांगा और अपने पांचों बेटों से मशविरा किया सबने कहा कि नहीं दस दिन का समय बहुत कम है । तब प्रेम सागर साहब ने अपने मित्र पटेल साहब जो पौराणिक फिल्मों के आर्ट डायरेक्टर थे उनको फोन पर इस दुविधा के बारे में बतलाया तो उन्होंने सुखद आश्चर्य देते हुए उत्साह के साथ कहा कि गुजरात के उमारगम में एक पुरानी पौराणिक फिल्म हेतु उन्होंने स्टूडियो में सेट लगाया था किन्तु फिल्म डिब्बा बन्द हो गई , तो वहीं सेट रामायण के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। कास्टिंग के लिए पहले से प्रसारित विक्रम वेताल के कलाकारों को प्रमुख भूमिकाएं निभाने हेतु अनुबंधित कर लिया गया । दूरदर्शन के भास्कर घोष ( जो प्रसिद्ध न्यूज एंकर सागरिका घोष के पिता और राजदीप सरदेसाई के ससुर हैं) वह हर एपिसोड में हिंदुत्व कंटेंट की काट छांट को करने के लिए दबाव बनाते थे , इसका तोड़ सागर साहब ने यह निकाला कि प्रसारण के एक घंटा पौने घंटे पहले ही दूरदर्शन तक रामायण का टेप मिले । जिससे दूरदर्शन के अधिकारी अपने सेकुलर आकाओ को प्रसन्न करने के उल्टे सीधे मौके न ढूंढ पाएं। रामायण को दिखाने हेतु २६ एपिसोड का एक्सटेंशन रामानन्द सागर जी को दूरदर्शन ने दिया था जिसे बाद ने भास्कर घोष साहब की शह पर रद्द किया गया। फलत: युद्ध के दृश्यों में कथा को अधिक विस्तार से दिखलाया न जा सका । रामानन्द सागर जी अपने मूल सीरियल कि कथा रावण के अंत और श्री राम के पुनारागमन के साथ ही समाप्त करना चाहते थे किन्तु दर्शकों और वाल्मीकि समाज की विशेष मांग पर स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय से सागर साहब को उत्तर रामायण की कथा दिखलाने हेतु अनुरोध किया गया। रामायण सीरियल में विजय कविश नाम के कलाकार ने तीन भूमिकाएं सीरियल में निभाई हैं यह भूमिकाएं है शिव जी की , वाल्मीकि जी की और मय दानव की । इसी प्रकार अरविंद त्रिवेदी जी ने रावण के साथ साथ विश्रवा मुनि की भी भूमिका निभाई है । दशरथ की भूमिका निभाने वाले बाळ धुरी और कौशल्या की भूमिका निभाने वाली जयश्री गड़कर वास्तविक जीवन में पति पत्नी हैं इसलिए अभिनय इतना सहज लगता है। कैकैयी की भूमिका निभाने वाली पद्मा खन्ना जी एक फिल्म (राजश्री फिल्म्स की सौदागर) में अमिताभ बच्चन साहब की हीरोइन रह चुकी हैं । बीते जमाने की चरित्र भूमिकाएं करने वाली और खलनायिका की भूमिका करने वाली ललिता पवार जी मंथरा बनी थीं| लक्ष्मण के किरदार में पहले पंजाबी फिल्मों के अभिनेता शशि पूरी जी दिखने वाले थे किन्तु किसी कारणवश उन्होंने रोल छोड़ दिया फलत: यह रोल सुनील लहरी साहब को मिला। सुनील लहरी जी ने लक्ष्मण की भूमिका निभाई थी वह फिल्मों में आने से पहले विल्सन कॉलेज मुंबई में पड़ते थे। लहरी साहब के बड़े भाई हमारे भोपाल में पड़ोसी रहे हैं । उनसे जुड़ी नब्बे के दशक की एक घटना मुझे याद आती है कि एक बार सुनील लहरी जी दिवाली के एक दो रोज अपने बड़े भाई के यहां आए और उनके घर के बाहर ' लक्ष्मण ' जी के दर्शन करने हेतु भीड़ लग गई । शायद सुनील लहरी जी के लिए यह उन दिनों आम बात हो मगर मेरे लिए यह नई बात थी कि हमारे पड़ोसी के भाई सेलिब्रिटी हैं , यूं भी तब मै बच्चा था और यह घटना याद रह गई। उत्तर रामायण में शिशु लव कुश की भूमिकाएं निभाने वाले बच्चे असल में रामानन्द सागर साहब के टैक्सी ड्राइवर के शिशु थे । सीरियल के किशोर लव कुश की भूमिकाएं स्वप्निल जोशी और मयूरेश क्षेत्र माडे ने निभाई । इनमे से स्वप्निल जोशी ने आगे चल कर सागर साहब के है श्री कृष्ण सीरियल में किशोर श्रीबकृष्ण का रोल अदा किया। स्वप्निल जोशी आज मराठी और हिंदी इंडस्ट्री में जाना माना नाम है । दूरदर्शन के छप्पर फाड़ कर कमाई करने वाले सीरियल रामायण के रचियता रामानन्द सागर जी से दूरदर्शन के बाबुओं और सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों ने बहुत अपमान जनक व्यवहार किया। प्रेम सागर इस बारे में लिखते हैं कि श्री कृष्ण सीरियल को दूरदर्शन पर दिखाने के लिए उन्हें काफी मशक्कत एवं पापड़ बेलने पड़े। यही नहीं जब सन १९९६ में श्री कृष्ण को नैशनल नेटवर्क पर दिखाने की बात हुई तो सागर साहब चाहते थे कि सुबह नौ बजे ही सीरियल दिखाया जाए लेकिन उस स्लॉट में चन्द्रकान्ता दिखलाया का रहा था । बात तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्रालय तक जा पंहुचाई गई और वहां से सागर साहब को मीटिंग के लिए बुलवाया गया मीटिंग में तत्कालीन मंत्री प्रमोद महाजन साहब ने सागर साहब से अत्यन्त अपमानजनक तरीके से बात की और पच हत्तर वर्ष की आयु में उन्हें बैठने हेतु कुर्सी तक ऑफर नहीं की गई। आहत सागर साहब ने अपना सीरियल जी टीवी पर शिफ्ट कर दिया । तत्कालीन गृह मंत्री श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी को जब यह बात पता चली तो उन्होंने महाजन को समझाइश दी। और इसके बाद ही सागर साहब के नए सीरियल जय गंगा मैया को नैशनल नेटवर्क पर प्रसारित किया गया। अपमानित होने का सागर साहब का पहला प्रसंग नहीं था एक बार उनके अभिन्न मित्र में ही उनका एक फिल्म के रोल को लेकर अपमान लिया था वाकया सन १९६८-६९ का हैं जब सागर साहब फिल्म आंखे लिख रहे थे हुआ यह था कि फिल्म के नायक के रूप में कास्टिंग की बात आई तो उन्होंने अपने मित्र राजकुमार को अप्रोच किया , राजकुमार ने स्क्रिप्ट पढ़ कर यह कह कर फिल्म को मना कियाा कि ऐसे रोल तो उनका पालतू कुत्ता भी नहीं बनेगा । इस घटना के बाद सागर साहब और राजकुमार साहब के बीच सम्बन्धों में कुछ खिंचे से रहे फिर भी जब रामायण के डायलॉग लिखे जा रहे थे तो रावण के संवाद लिखते समय उन्होंने अपने मित्र को ध्यान में रख कर ही लिखे रहे । एक बार फिर सागर साहब राजकुमार के यहां आए किन्तु राजकुमार जी ने यह कह कर प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने से मना किया कि रावण कि भूमिका करने वाला श्रीराम कि भूमिका पर हावी नहीं पड़ना चाहिए । दूसरे वह इतनी शुद्ध हिंदी नहीं बोल पाएंगे , तीसरे वह नकारत्मक रोल करते ही नहीं अंत में उन्होंने रावण कि भूमिका हेतु उपेन्द्र त्रिवेदी का नाम सुझाया जो गुजराती फिल्म और रंग मंच के बड़े कलाकार है , उन उपेन्द्र त्रिवेदी जी ने भी यह रोल अपने छोटे भाई अरविंद त्रिवेदी के लिए छोड़ा । अरविंद त्रिवेदी ने है यह भूमिका आगे निभाई। श्री कृष्ण के समाप्त होने के बाद रामायण के दोबारा प्रसारण हेतु दर्शकों में मांग उठाई गई किन्तु राज्य सभा में सरकार ने कहा कि दूरदर्शन की नीति अनुसार पौराणिक जॉनर में एक ही धार्मिक सीरियल दिखा सकते हैं , उस समय ॐ नम शिवाय दिखाया जा रहा था। रामायण के पुन प्रसारण की मांग यूं तैंतीस साल बाद जा कर पूरी हुई। मुकेश खन्ना साहब ने आगे चलकर अपना स्वतंत्र प्रोडक्षन हाउस बनाया जिसका उन्होने नाम रखा भीष्म इंटेरनेशनल जिसका पहला सीरियल था ' शक्तिमान ' इसमें उनके महाभारत के सह कलाकार सुरेंद्र पाल साहब ( जिन्होने आचार्य द्रोण की भूमिका निभाई थी ) खलनायक बने थे | रामायण से जुड़ी और एक दिलचस्प बात आपसे साझा करने का अवसर मिल रहा है , हाल ही में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक रामायण के पायलट एपीसोड तीन दफे बने थे और दो बार विभिन्न कारणों से इन्हें दूरदर्शन के अधिकारियों ने रिजेक्ट किए थे | एपीसोड रिशूट करने में उन दिनों ख़ासी मेहनत लगती थी क्योंकि एडिटिंग का काम मॅन्यूयल होता था आज की तरफ एडिटिंग टूल्स और सॉफ़्टवरेस नहीं होते थे , इसमें कलाकारों को लाना ले जाना वेश भूषा , केश भूषा कॅमरा सेटिंग और तमाम झंझट होते थे | एक बार यह कहा गया कि इसमें धार्मिक प्रवचन बहुत अधिक हैं दर्शक बोर हो जाएँगे तो एक बार सीता जी की भूमिका करने वाली दीपिका चिखलिया के काट स्लिवस दिखाने पर अधिकारी भड़क गये | दोनो दफे सागर साहब ने बड़े यत्न और परिश्रम से अगला पायलट एपीसोड बनाया और वह अधिकारियों ने अप्प्रूव किया प्रेम सागर साहब की किताब प्रकाशित होने के बाद जब लोगों ने दूरदर्शन से इस बाबत सवाल जवाब किया तो दूरदर्शन के अधिकारियों ने अपने पूर्व चेयारमन भास्कर घोष साहब का बचाव करते हुए कहा कि चूँकि यह भारतीय टीवी इतिहास का पहला धार्मिक धारावाहिक था तो किसी को समझ नहीं थी कि इसका प्रारूप कैसा हो , वैसे भी भगवान का किरदार निभाने वालों का ग़लत चित्रण करने पर एक बड़े समूह की धार्मिक भावनाएँ आहत हो सकती थी इसलिए कारण बतला कर दो दफे पायलट एपीसोड रिजेक्ट किए गये हर एपीसोड के प्रसारण पर दूरदर्शन ने १९८७ में पच्चीस हज़ार रॉयल्टी तय किए थे जो निर्माता को मिलने थे , एक खबर के मुताबिक सागर साहब के बेटे बहू को भी यह रकम दूरदर्शन ने ऑफर की मगर उन्होने कहा कि कोरोना की महामारी के समय उनका भी देश के प्रति कर्तव्य बनता है तो उन्होने एपीसोड नि:शुल्क प्रसारण हेतु दूरदर्शन को दे दिए | वास्तव में रामायण और महाभारत भारतीय टेलीविजञ और दूरदर्शन के इतिहास में सफलतम धारावाहिक थे और अभूतपूर्ब् लोकप्रियता पाई वैसे ही इतिहास शक्तिमान ने रचा , लेकिन खेद जनक बात यह है कि जैसे दूरदर्शन के बाबुओं ने सागर साहब और चोपड़ा साहब को परेशन कर उन्हें अपमानित किया वैसे ही उन्होने मुकेश खन्ना साहब जैसे अत्यंत सफल और वरिष्ठ कलाकार को भी अपमानित किया | मुकेश खन्ना साहब ने खुद अपने यू ट्यूब चॅनेल में दूरदर्शन के अधिकारियों , सूचना प्रसारण मंत्रियों की कार गुज़ारियों के बारे में बतलाया है | पुरानी बातें बताते हुए वे भावुक हो जाते हैं | रामायण के कलाकार जहाँ कुछ एक टीवी सीरियलों तक ही सीमित रह गये वहीं महाभारत के कलाकारों को खूब काम मिला और उन्होने सफलता अर्जित की कई कलाकारों ने तो फिल्में की | द्रौपदी बनीं रूपाली गांगुली जी बंगाली फिल्मों की मशहूर अदाकारा है उन्होने एक हिन्दी फिल्म बाहर आने तक भी की थी | श्री कृष्ण बने नीतीश भारद्वाज ने कुछ एक हिन्दी फिल्में की और हाल ही में में समांतर नाम की MX प्लेयर की वेबसिरीज़ में स्वप्निल जोशी के साथ दिखाई दिए स्वप्निल जोशी व्ह हैं जिंगोने रामायण के लव कुश वाले एपीसोड में कुश की भूमिका निभाई और सागर साहब के ही सीरियल श्री कृष्णा में किशोर कृष्ण बने थे | रामायण के अरविंद त्रिवेदी , अरुण गोविल जी और मूल राज राज्दा जी ने महाभारत के मुकेश खन्ना के संग एक पौराणिक सीरियल किया था जिसका नाम था विश्वामित्र यह यू ट्यूब पर उपलब्ध है महाभारत के धृतराष्ट्र बने गिरिजा शंकर साहब पंजाबी फिल्मों के कलाकार हैं उन्होने आगे चल कर सागर साहब के साथ अलिफ लैला में भी काम किया | सुरेंद्र पाल जो गुरु द्रोना चार्य बने थे उन्होने अनेक हिट टीवी सीर्याल और फिल्मों में चरित्र भूमिकाएँ निभाई | गजेंद्र चौहान जो युधिष्ठिर बने थे , फ़िरोज़ ख़ान जो अर्जुन बने थे , पुनीत इस्सर जो दुर्योधन बने थे और पंकज धीर बने थे उन्होने शाहरुख ख़ान , सलमान ख़ान अजय देवगन के साथ कई बड़ी फिल्में की जैसे करण अर्जुन , जिगर , ज़मीन , बादशाह , बाग़बान , सनम बेवफा , गर्व प्राइड एंड ओनर इत्यादि |