उमा दारु जोषित की नाईं। सबहिं नचावत रामु गोसाईं

    

हम सब कठपुतलियां हैं , भगवान् के हाथों मे, 

कठपुतली की कोई इच्छा नहीं, कर्तव्या  नहीं , 

कठपुतली ही तो होना हैं मुझ्कॊ .

फिर कोई दुःख नहीं तकलीफ नहीं 

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क्या रुकावट हैं कठपुतली होने में  !

क्योंकि भगवान् ने इन कठपुतलियों में थोड़ा थोड़ा मन व् बुद्धी भी दल दिया . 

यही किया होता तो भी कोई दिक्कत नहीं थी , 

पर उसने मया की पट्टी भी बांध दी , और खुद चुप गया , दिल में , जिस्स्से कोई ढूंढ़ न सके 

रोता रहे , कलपता रहे , 

फिर रास्ता भी दिखा दिया , गीता रामायण , सत्संग , साधू , गुरु के रूप में .

अच्छा खेल organiser है , 

और हामारी जान निकाल कर रख दी .

who is a hindu ! how to become a hindu, what a hindu is supposed to be !!

   
this was the mail i got from my freind in usa:
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GOOD NEWS FOR HINDUS:
362 Christians and Muslims return back to Hindu Dharma

175 practicing Christians returned back to Hinduism in Paravartan Ceremony by VHP at Palakonda

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this was my reply to this news: 

that is great, 
but when the all hindus will return to hinduism, as most of them are hindu for name sake only. 

they do not practice anything, 
they do not know anything about hinduism.
they critisize the hindu rituals,
they condemn the hindu saints,
they have not any scripture in their life time, 
their children do not know anything about hinduism
they never support , even verbally any hindu cause,
and so on..........
and these people are actually from upper class of hindus
how we consider them hindus.

actually what is hindu, just they have a hindu looking name. then ......

what we expect out of those changed hindus. 

i am interested to know, which varna they are given after this change, brahmin, chatriya, vaishya or shudra, or varna less hindus.......

any how , i am happy, for those who changed and those by help of which this happend.

thanks and regards
ashok gupta
delhi, india

मनमोहन सिंह जेल जा सकते हैं !


हिंदुस्तान की जनता के सामने सुप्रीम कोर्ट विश्‍वास की आखिरी उम्मीद है. सुप्रीम कोर्ट कोई राजनीतिक दल नहीं है, जो झूठे आरोप लगाए और जिसे राजनीतिक जवाब देकर टाला जा सकता है. अदातल तो सच का पता लगाती है. दूध का दूध और पानी का पानी करती है. अदातल फैसला करती है और जब तक फैसला नहीं देती, तब तक वो इशारा देती है. कोयला घोटाले में अब तक सुप्रीम कोर्ट से जो इशारे मिल रहे हैं, वह खतरनाक है. 

कोयला घोटाले से जुड़ी फाइलें गायब हो गईं. ये फाइलें कहां गईं? क्या इन फाइलों को जमीन खा गई या कोई भूत लेकर गायब हो गया? ये फाइलें कब गायब हुईं? कहां से गायब हुईं? इन फाइलों में क्या था? क्या भारत सरकार के दफ्तर चोरों का अड्डा बन चुके हैं? या फिर इन फाइलों को गायब कर के किसी को बचाया जा रहा है? नोट करने वाली बात यह है कि कोयला घोटाला उस वक्त हुआ, जब मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे. कोयला खदानों के हर विवादित आबंटन पर मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर हैं. एक तरफ सरकार है, जो सच को छुपाना चाह रही है, सीबीआई जांच में बाधा पैदा कर रही है और दूसरी तरफ अदालत है, जो कह रही है कि किसी भी कीमत पर दोषियों को दंडित किया जाएगा. दिसंबर महीने में कोयला घोटाले की जांच पूरी हो जाएगी. जैसे टूजी घोटाले में सीबीआई ने एफआईआर लिख कर ए राजा को गिरफ्तार किया था, उसी तरह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई को मनमोहन सिंह के खिलाफ एफआईआर लिखनी होगी. उन्हें गिरफ्तार करना होगा और बाद में उन पर मुकदमा चलेगा. इस घोटाले के केंद्र में प्रधानमंत्री हैं तो क्या दिसंबर में भारत को एक शर्मनाक इतिहास का मुंह देखना पड़ेगा? कोयला घोटाले में सरकार अदालत की निगरानी में चल रही जांच को रोकने का हर संभव प्रयास कर रही है. सीबीआई कोयला मंत्रालय से कुछ सवाल पूछती है या फिर जानकारी मांगती है तो कोयला मंत्रालय उसे उपलब्ध नहीं कराता है. इससे भी शर्मनाक तो यह है कि सीबीआई की रिपोर्ट को सरकार बदल देती है. अगर सीबीआई किसी अधिकारी पर मुकदमा दर्ज करना चाहती है तो सरकार कहती है कि सीबीआई को सरकार से अनुमति लेनी होगी. हद तो यह है कि कोयला घोटाले से जुड़ी 236 फाइलों में 186 फाइलें उपलब्ध नहीं हैं. सरकार के मुताबिक, इन दस्तावेजों में 7 फाइलें और 173 आवेदन हैं, जो अभी उपलब्ध नहीं हैं. ये दस्तावेज कहां हैं, इसकी जांच के लिए सरकार की तरफ से एक इंटर-मिनिस्ट्रियल कमेटी बनाई गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को सरकार की इस कमेटी पर भरोसा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, यह एक एक्सटरनल कमेटी है, जिससे कोर्ट को कोई मतलब नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इन फाइलों को ढूंढने के लिए समय दिया है और फिर भी गुम फाइलें नहीं मिलीं तो सीबीआई में शिकायत दर्ज की जाएगी. मुकदमा चलेगा. जिम्मेदारी तय की जाएगी. यह मामला गंभीर है. हिंदुस्तान की जनता के सामने सुप्रीम कोर्ट विश्‍वास की आखिरी उम्मीद है. सुप्रीम कोर्ट कोई राजनीतिक दल नहीं है, जो झूठे आरोप लगाए और जिसे राजनीतिक जवाब देकर टाला जा सकता है. अदातल तो सच का पता लगाती है. दूध का दूध और पानी का पानी करती है. अदातल फैसला करती है और जब तक फैसला नहीं देती, तब तक वो इशारा देती है. कोयला घोटाले में अब तक सुप्रीम कोर्ट से जो इशारे मिल रहे हैं, वह खतरनाक है.कोयला घोटाले से जुड़ी गायब फाइलों पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या यह सीबीआई की जांच को बाधित करने के लिए रिकॉर्ड नष्ट करने का एक प्रयास है? सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी प्रधानमंत्री जी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट के इस बयान का मतलब साफ है कि फाइलों को गायब करना सबूत मिटाने के बराबर है. भारत में सबूत मिटाना कानूनन जुर्म है. इसके लिए जिम्मेदार लोगों को सजा मिल सकती है. जेल जाना पड़ सकता है. यह मामला इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि यह कोर्ट की अवमानना भी है. सुप्रीम कोर्ट लगातार आदेश दे रही है. फाइलों को कोर्ट में जमा करने का निर्देश देती रही है. कोर्ट इस बात पर नाराज है कि कुछ महत्वपूर्ण फाइलें कोयला मंत्रालय से उपलब्ध नहीं कराई जा रहे हैं. जो फाइलें जांच के लिए जरूरी हैं, वह या तो गायब हो गई हैं या फिर उपलब्ध नहीं हैं. सरकार के इस रवैये से नाराज होकर जस्टिस लो़ढा ने यहां तक कह दिया कि क्या यह रिकॉर्ड नष्ट करने की कोशिश है? सच तो वैसे भी बाहर आ के रहेगा, लेकिन यह इस तरह से नहीं चल सकता. जांच कैसे आगे ब़ढेगी. जो फाइलें गायब हुई हैं, वह शायद सबसे महत्वपूर्ण हों. इतना कहने के बावजूद अगर सरकार, सरकार के मंत्री और प्रधानमंत्री यह दलील दें कि फाइल की सुरक्षा उनकी जिम्मेदारी नहीं है तो उन्हें बताना होगा कि यह किसकी जिम्मेदारी है. समझने वाली बात यह है कि कोयला घोटाले के केंद्र में मनमोहन सिंह हैं, क्योंकि यह घोटाला तब हुआ, जब मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे. उन्हीं के द्वारा ऐसी कंपनियों को कोयला खदानें आबंटित की गईं, जो इसके योग्य नहीं थीं. अयोग्य कंपनियों के आवेदन पर मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर हैं, क्योंकि बिना उनके हस्ताक्षर के किसी भी कंपनी को खदान आबंटित नहीं की जा सकती है. जिस वक्त कोयला खदानों का आबंटन किया जा रहा था, उस वक्त इससे जुड़े लोगों को यह मालूम था कि इस पूरे मामले में गड़बड़ी हो रही है. कोयला सचिव लगातार प्रधानमंत्री कार्यालय को लिख रहे थे कि कोयला खदानों की नीलामी हो. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोयला सचिव के सुझावों को क्यों दरकिनार कर दिया. अगर प्रधानमंत्री ये कहें कि उन्हें कोयला सचिव की चिट्ठी के बारे में मालूम नहीं था तो कौन विश्‍वास करेगा. 173 अवेदन पत्र गायब हैं. सवाल यह है कि इन आवेदन पत्रों की जांच कहां हुई. उस वक्त इन आवेदनों की जांच-परख और उन कंपनियों की योग्यता की जांच कौन कर रहा था. हकीकत यह है कि कोयला खदानों के आबंटन में प्रधानमंत्री कार्यालय की काफी सक्रिय भूमिका रही. हैरानी की बात यह भी है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े दस्तावेज को सरकार गायब घोषित करने पर तुली है. अगर सरकार गायब फाइलों को उपलब्ध नहीं करा सकती है तो इन फाइलों के गायब होने की जिम्मेदारी सीधे प्रधानमंत्री की बनती है. सिर्फ इसलिए नहीं कि मनमोहन सिंह उस वक्त कोयला मंत्री थे, बल्कि यह प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी भी है. और प्रधानमंत्री इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकते. अभी कोर्ट का रवैया सख्त नहीं है, लेकिन अगर सख्त हो गया तो इस केस से जु़डे लोगों पर सबूत मिटाने का मुकदमा चल सकता है. उन्हें जेल हो सकती है. यह इसलिए संभव है, क्योंकि कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि अगर फाइलें गायब हुईं हैं तो क्या सरकार की तरफ से कोई एफआईआर दर्ज की गई है  या नहीं. हकीकत यह है कि सरकार ने यह तो दुनिया को बता दिया कि फाइलें गायब हो गईं, लेकिन यह नहीं बताया कि पुलिस में कोई एफआईआर नहीं दर्ज कराई गई है. अब तो सरकार ही बता सकती है कि इतने महत्वपूर्ण केस की फाइलें गायब हो जाने के बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं कराने के पीछे क्या राज है. वैसे ये मामला जांच का विषय है, लेकिन कॉमन सेंस तो यही कहता है कि एफआईआर इसलिए नहीं  दर्ज कराई गई, क्योंकि फाइलें गायब नहीं हुईं, बल्कि गायब करा दी गई होंगी या फिर फाइलों को गायब बताया जा रहा है. शायद यही शक सुप्रीम कोर्ट को भी है. इसलिए तीनों जज जब सीबीआई द्वारा दी गई फाइलों की लिस्ट देख रहे थे, तब तीनों जजों ने एक राय से सरकार को चेतावनी दी है कि आप इस तरह दस्तावेजों पर नहीं बैठ सकते. सीबीआई की जांच के लिए जो दस्तावेज जरूरी है, उसे उपलब्ध कराना होगा. उन दस्तावेजों को न देने का कोई तर्क नहीं है. अगर ऐसा नहीं कर सकते तो सीबीआई के पास मुकदमा दर्ज कराना पड़ेगा. कोर्ट ने सरकार के वकील अटॉर्नी जनरल वाहनवती को यह भी चेतावनी दी है कि इसे ऐसे नहीं छोड़ा जा सकता है. इस बात की तहकीकात होनी चाहिए कि ये फाइलें गायब हुईं हैं या फिर गायब कर दी गईं हैं और आप सीबीआई में इसकी शिकायत कब दर्ज करा रहें, ये हमें बताइए. अब गेंद सरकार के पाले में है. अगर सरकार इन फाइलों को उपलब्ध कराती है तो प्रधानमंत्री कार्यालय के कारनामे सामने आएंगे और अगर उपलब्ध नहीं कराती है तो मुकदमा चलेगा. जिम्मेदारी तय होगी. चुनाव नजदीक हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में चलने वाली हरेक सुनवाई कांग्रेस पार्टी के लिए किरकिरी का सबब बन सकती है. सवाल यह है कि मनमोहन सिंह को बचाने के लिए क्या कांग्रेस पार्टी यह रिस्क लेगी या मनमोहन सिंह को बचाने के लिए तत्काल लोकसभा भंग कर देगी या कोई कारण बताकर प्रधानमंत्री बदल देगी? वैसे प्रधानमंत्री को बचाने की कोशिश पहले भी हुई है. 26 अप्रैल, 2013 को सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया. इसमें सीबीआई ने बताया कि कोयला घोटाले की जांच की स्टेटस रिपोर्ट सरकारी नुमाइंदों के सामने 8 मार्च को प्रस्तुत की गई थी. ये महानुभाव थे कानून मंत्री अश्‍विनी कुमार, प्रधानमंत्री कार्यालय के एक ज्वॉइंट सेक्रेटरी और कोयला मंत्रालय के ज्वॉइंट सेक्रेटरी. हैरानी की बात यह है कि इससे पहले सरकार व सीबीआई की तरफ से यह कहा गया था कि स्टेटस रिपोर्ट किसी को दिखाई नहीं गई है. देश के अटॉर्नी जनरल वाहनवती ने कोर्ट के सामने यह झूठ बोला था कि स्टेटस रिपोर्ट किसी ने नहीं देखी है. कोई नेता या अधिकारी कोर्ट में झूठ बोले, यह गुनाह है, लेकिन देश का प्रथम न्यायिक अधिकारी सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोले तो यह गुनाह के साथ-साथ महापाप है, लेकिन अफसोस, प्रधानमंत्री की अंतर्रात्मा सोती रही और वाहनवती के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. सरकार की झूठ का पर्दाफाश हो गया. जिसके खिलाफ जांच हो रही हो, उन्हीं को जांच रिपोर्ट दिखाया जाए तो इसका क्या मतलब है? सरकार किसे बचाने की कोशिश कर रही है? इस मीटिंग में प्रधानमंत्री कार्यालय का ज्वॉइंट सेक्रेटरी स्तर का अधिकारी क्या कर रहा था? वह किसकी अनुमति से इस मीटिंग में आया था? अगर कोई यह कहे कि प्रधानमंत्री को इसके बारे में जानकारी नहीं थी तो यह एक मजाक ही समझा जाएगा. अगर किसी प्लानिंग के तहत उस अधिकारी को इस मीटिंग में नहीं भेजा गया तो इस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? हैरानी की बात तो यह है कि सीबीआई ने स्टेटस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री के चहेते कानून मंत्री, कोयला मंत्रालय व पीएमओ के अधिकारियों को सिर्फ दिखाया ही नहीं, बल्कि रिपोर्ट को बदल भी दिया. यह तो चोरी और सीनाजोरी का ज्वलंत उदाहरण है. सीबीआई की जांच रिपोर्ट को बदल देना अगर अपराध नहीं है तो अपराध होता क्या है? रिपोर्ट को बदला गया, यह कोई आरोप नहीं है, बल्कि 29 अप्रैल, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के सामने सीबीआई ने इस बात को माना कि  सीबीआई की ओरिजिनल रिपोर्ट में 20 फीसद बदलाव किए गए हैं. क्यों बदला गया और अगर बदल भी दिया तो झूठ क्यों बोला? सरकार ने यह क्यों कहा कि रिपोर्ट को बदला नहीं गया, बल्कि रिपोर्ट का व्याकरण ठीक किया गया. मतलब साफ है कि सरकार कोयला घोटाले में कोर्ट में झूठ बोलती आई है. जिनकी आंखो में शर्म थी, वे इस केस से हट गए और जो बच गए, वे डटे रहे. अगले ही दिन इस मामले में सरकार की तरफ से दलील देने वाले एडिशनल सोलिसिटर जनरल हरीश रावल ने सुप्रीम कोर्ट को बरगलाने की बात से शर्मशार होकर इस्तीफा दे दिया. जब रिपोर्ट बदलने वाली बात उजागर हुई तो हंगामा मच गया. सरकार की तरफ से मनग़ढंत दलीलें दी गईं, लेकिन मीडिया और विपक्ष के दबाव के कारण मनमोहन सिंह को अश्‍विनी कुमार को बर्खास्त करने को मजबूर होना पड़ा, लेकिन हैरानी इस बात की है कि अश्‍विनी कुमार को पिछले दरवाजे से एक बार फिर से सरकार में शामिल किया गया है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जापान की यात्रा के लिए अश्‍विनी कुमार को अपना विशेष दूत नियुक्त किया है, जो कैबिनेट मंत्री का दर्जा है. मनमोहन सिंह की अश्‍विनी कुमार से नजदीकियां और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी का इस मीटिंग में होना, इस बात के संकेत हैं कि सीबीआई जांच को बाधित करके किसे बचाने की कोशिश हो रही है. कोयला घोटाले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों वाली बेंच में चल रही है. इस बेंच के तीनों जज जस्टिस आर एम लो़ढा, जस्टिस बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ की नजर इन गतिविधियों पर जरूर होगी. यह मामला सिर्फ गैरकानूनी कोयला खदानों के आबंटन का नहीं है. सरकारी नियमों के अनुसार, कोयले के ब्लॉक आबंटित करने के लिए भी कुछ नियम हैं, जिनकी साफ़ अनदेखी कर दी गई. ब्लॉक आबंटन के लिए कुछ सरकारी शर्तें होती हैं, जिन्हें किसी भी सूरत में अनदेखा नहीं किया जा सकता. ऐसी ही एक शर्त यह है कि जिन खदानों में कोयले का खनन सतह के नीचे होना है, उनमें आवंटन के 36 माह बाद (और यदि वन क्षेत्र में ऐसी खदान है तो यह अवधि छह महीने बढ़ा दी जाती है) खनन प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए. यदि खदान ओपन कास्ट किस्म की है तो यह अवधि 48 माह की होती है (जिसमें अगर वन क्षेत्र हो तो पहले की तरह ही छह महीने की छूट मिलती है). अगर इस अवधि में काम शुरू नहीं होता है तो खदान मालिक का लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है. हैरानी की बात यह है कि ज्यादातर खदानों से कभी कोयला निकाला ही नहीं गया. तो सवाल यह है कि नियमों के उल्लंघन पर इन कंपनियों के खिलाफ मनमोहन सिंह ने क्यों एक्शन नहीं लिया. दोषी कंपनियों के लाइसेंस क्यों रद्द नहीं किए गए. मनमोहन सिंह को इन सवालों के जवाब देने होंगे. नोट करने वाली बात यह है कि चौथी दुनिया ने सबसे पहले कोयला घोटाले का पर्दाफाश किया था और हमने दावा किया था कि यह घोटाला 26 लाख करोड़ का है. हमारे पास अपने दावों को साबित करने के लिए पयार्र्प्त सबूत आज भी मौजूद हैं. हम एक बार फिर कहना चाहते हैं कि यह घोटाला 26 लाख करो़ड रुपये का है, जिसमें मनमोहन सिंह सरकार ने 52 लाख करो़ड रुपये का कोयला निजी कंपनियों के साथ मिलकर बंदरबांट किया है. कोर्ट ने सरकार को सभी गायब फाइलों को उपलब्ध कराने के लिए दो हफ्ते का समय दिया है. सीबीआई कोयला मंत्रालय को जरूरी फाइलों की लिस्ट देगी और सरकार दो सप्ताह के अंदर यह बताएगी कि वो फाइल कहां हैं. अगर कोयला मंत्रालय फिर भी कहता है कि कुछ फाइलें गायब हैं तो सीबीआई में एफआईआर दर्ज कराया जाएगा. अब तक केवल 37 कंपनियों की ही जांच हुई है और बाकी 132 कंपनियों के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया है, जबकि कोयला घोटाले की जांच दिसंबर तक पूरी होनी है. जिस तरह से फाइलें गायब हो रही हैं. मंत्रालय से जवाब नहीं मिल रहा है और जिस गति से जांच आगे बढ़ रही है, उससे तो यही लगता है कि दिसंबर तक जांच पूरी नहीं हो पाएगी. इस बीच कोर्ट से जांच के लिए छह महीने का वक्त भी मांगा गया, लेकिन कोर्ट ने साफ-साफ मना कर दिया है और यह निर्देश दिया है कि जांच को दिसंबर तक खत्म करना ही है. मतलब यह कि कोर्ट कोयला घोटाले की जांच व सुनवाई दिसंबर तक खत्म करने का मन बना चुकी है. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि कोर्ट ने कुछ दिन पहले यह भी कहा था कि किसी भी कीमत पर इस मामले में सच्चाई को सामने लाया जाएगा और दोषियों को सजा दी जाएगी. हिंदुस्तान की जनता के सामने सुप्रीम कोर्ट विश्‍वास की आखिरी उम्मीद है. सुप्रीम कोर्ट कोई राजनीतिक दल नहीं है, जो झूठे आरोप लगाए और जिसे राजनीतिक जवाब देकर टाला जा सकता है. अदातल तो सच का पता लगाती है. दूध का दूध और पानी का पानी करती है. अदातल फैसला करती है और जब तक फैसला नहीं देती, तब तक वह इशारा देती है. कोयला घोटाले में अब तक सुप्रीम कोर्ट से जो इशारे मिल रहे हैं, वह खतरनाक हैं. कहीं देश की जनता का यह दु:स्वप्न सच न हो जाए कि देश के प्रधानमंत्री को किसी घोटाले में जेल जाना पड़ जाए. अगर ऐसा होता है तो यह भारत के इतिहास का सबसे शर्मनाक पन्ना होगा. - See more at: http://www.chauthiduniya.com/2013/09/%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a4%ae%e0%a5%8b%e0%a4%b9%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%b9-%e0%a4%9c%e0%a5%87%e0%a4%b2-%e0%a4%9c%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%95%e0%a4%a4%e0%a5%87-%e0%a4%b9%e0%a5%88.html#sthash.qVtGtKnZ.dpuf

जाने क्या तूने कही जाने क्या मैने सुनी बात कुछ बन ही गयी

      
जाने क्या तूने कही
जाने क्या मैने सुनी
बात कुछ बन ही गयी
ये बोल मुझे श्री गीता के सन्दर्भ में जान पड़ते हैं . 
पाठक (में ) श्री कृष्ण से कह रहा हूँ , 
जाने क्या तूने कही ----श्री गीता जी में ,  क्योंकि आपकी भाषा बहुत गूढ़ है , 
जाने क्या मैंने सुनी ------- मेरे समझने की तो बहुत सीमा है , पता नहीं में क्या समझ पाया !

पर 

बात तो बन ही गयी -------क्योंकि मुझे तो शांति मिल ही गई . 

अशोक गुप्ता 
विवेक विहार 
दिल्ली 

इंतज़ार है मोदी के खिलाफ एक अदालती फैसले का ...........(सही समय पर )

  

इंतज़ार है मोदी के खिलाफ एक अदालती फैसले का ...........(सही समय पर )

प्रिय अनिल महाजन जी ,

आपका लेख बहुत सारगर्भित है , पर हमें इंतज़ार हैं , एक सनसनीखेज खबर का , घोटाले का , रेप चार्ज का, मोदी के खिलाफ , एन चुनावों के समय , या कोई अदालत का आदेश , जो लिखा जा चुका है , और केवल सही समय का इंतज़ार कराया जा रहा है, इस देश की असली प्रधान मंत्री के इशारे का.

ये गुजराती बहुत अच्छे   स्टेट्समैन तो हैं, पर चालाक राजनीतिज्ञ नहिन. जैसे  लोह पुरुष , सरदार वल्लभ भाई पटेल , बड़े नेता होते हुए भी नेहरु के केस में , एक दुसरे गुजराती गांधी से पटखनी खा गए, झूटी नम्रता में .

इस नम्रता की कीमत देश अभी तक चूका रहा है .

में सालों से विदेशों का व्यापार करता हूँ ,  आपको शायद पता नहीं है की इटालियन माफिया का ,  दिमाग का विश्व में कोई सानी नहीं है.

  

दुसरे ये बी जे पि की बैसाखी भी बहुत कमजोर है , पर बेचारे मोदी के पास विकल्प भी क्या है ,

क्या कारण है की बी जे पी के जय चंद  अडवानी को कान पकड़ कर बाहर नहीं किया जा सका है , जो बहुमत का विरोध कर रहा है .