the meaning of this sanskrit phrase is : For the men of great character, the whole world is their family! उदार हृदय वाले लोगों का तो पृथ्वी ही परिवार है। if you like to comment/give suggestion on any part of the blog you are welcome at ashok.gupta4@gmail.com
नेता जी का फलसफा
नेता जी का फलसफा
जनता है भोली बड़ी ,लूट सके तो लूट ,
सच्चाई को छोड़कर बोलो मिलकर झूठ;
गठबंधन पक्का रहे ,देखो जाये न टूट .
राजनीति की प्यास
नेता जी का दुःख
गोवा मुक्ति का युद्ध/भारत पुर्तगाल युद्ध
i wish every indian knows this part of indian history, with the exception of :
the learned beaurocrats and
wealthy leaders of politics, and
businessmen
of india.
25.2.11
गोवा मुक्ति का युद्ध/भारत पुर्तगाल युद्ध ,
From: http://ashutoshnathtiwari.blogspot.com/
मित्रों,
सामान्यतया भारत में जब हम जब आजादी के बाद के युद्धों की बात करतें है तो हमारे जहन में पाकिस्तान के साथ के चार युद्ध (1947,1965,1971,1999) एवं चीन के साथ युद्ध (1962 सन) याद आता है ...
मैंने अपनी संस्था व आस पास के कुछ लोगों पर एक सर्वेक्षण किया की वो भारत पुर्तगाल संबंधों के बारें में क्या जानते है .. ज्यादातर लोगों ने कुछ भ्रमण करने वाले स्थलों का नाम लिया.. कुछ ने पुर्तगाल के नाम पर मोनिका बेदी और अबू सलेम को भी याद कर लिया ..
यहीं से मुझे ये विचार आया की क्यों न मैं भारत पुर्तगाल के बीच हुए युद्ध के बारे में कुछ विचार आप सब से साझा करूँ जो सन 1961 में गोवा की आजादी के लिए हुआ, और हमारी भारतीय सेना ने विजय पताका फहराते हुए गोवा को पुर्तगालियों के 450 साल पुराने कब्जे से मुक्त कराया ..
ये वही गोवा है जिसे हम हिंदुस्तान और बाहर के लोग भी अपना प्रमुख पर्यटन स्थल मानतें है ... इस युद्ध की पृष्ठभूमि में जाने से पहले चलिए संक्षेप में गोवा के इतिहास पर एक नजर डाल लें ..
गोवा का प्रथम वरदान हिन्दू धर्म में रामायण काल में मिलता है .. पौराणिक लेखों के अनुसार सरस्वती नदी के सुख जाने के कारण उसके किनारे बसे हुए ब्राम्हणों के पुनर्वास के लिये परशुराम ऋषि ने समंदर में शर संधान किया ... ऋषि का सम्मान करते हुए समंदर ने उस स्थान को अपने क्षेत्र से मुक्त कर दिया .. ये पूरा स्थान कोंकण कहलाया और इसका दक्षिण भाग गोपपूरी कहलाया जो वर्तमान में गोवा है ..
हिंदुस्तान के अन्य हिस्सों की तरह गोवा पर भी कालांतर में मौर्य चालुक्य शाक्य और कदम्ब वंशो ने शासन किया ... कदम्ब वंश के बाद मुस्लिम शासन हुआ फिर हिन्दू राजाओं ने गोवा पर अधिकार किया .. 1469-1471 के बीच ये राज्य ब्राम्हण शासन के अंतर्गत आया… सन 1483-84 में गोवा मुस्लिम शासक युशुफ आदिल खान के अधिकार में आ गया फिर .. लगभग 27 वर्ष के मुस्लिम शासन के बाद सन 1510 में पुर्तगाली अलफांसो द अल्बुबर्क ने यहाँ आक्रमण कर अधिकार कर लिया .. सन 1510 में गोवा पर कब्जे के लिये युशुफ आदिल खान और अलफांसो द अल्बुबर्क की सेनाओ मे कई बार युद्ध हुआ .. अंततोगत्वा अलफांसो द अल्बुबर्क का कब्ज़ा गोवा पर हो गया .....
आप इसे पुर्तगालियों का एशिया में पहला राजनयिक व सामरिक दृष्टी से महत्वपूर्ण केंद्रीय स्थल भी कह सकते है इसके बाद पुर्तगाल ने गोवा पर अपना कब्ज़ा मजबूत करने के लिये यहाँ नौसेना के अड्डे बनायें ... गोवा के विकास के लिये पुर्तगाली शासकों ने प्रचुर धन खर्च किया .. गोवा का सामरिक महत्त्व देखते हुए इसे एशिया में पुर्तगाल शसित क्षेत्रों की राजधानी बना दिया गया ..
अंग्रेजों के भारत आगमन तक गोवा एक संवृद्ध राज्य बन चुका था, तथा पुर्तगालियों ने पूरी तरह गोवा को अपने साम्राज्य का एक हिस्सा बना लिया .. पुर्तगाल में एक कहावत आज भी है की "जिसने गोवा देख लिया उसे लिस्बन (पुर्तगाल की वर्तमान राजधानी) देखने की नहीं जरुरत है "
सन 1900 तक गोवा अपने विकास के चरम पर था .. उसके बाद के वर्षों में यहाँ हैजा ,प्लेग जैसी महामारियां शुरू हुए .. जिसने लगभग पुरे गोवा को बर्बाद कर दिया अनेको हमले हुए मगर जैसे तैसे गोवा पर पुर्तगाली कब्ज़ा . रहा बरकरार .. 1809 - 1815 के बीच नेपोलियन ने पुर्तगाल पर कब्ज़ा कर लिया और एंग्लो पुर्तगाली गठबंधन के बाद गोवा स्वतः ही अंग्रेजी अधिकार क्षेत्र में आ गया .. 1815 से 1947 (भारत की आजादी) तक गोवा में अंग्रेजो का शासन रहा और पुरे हिंदुस्तान की तरह अंग्रेजों ने वहां के भी संसाधनों का जमकर शोषण किया ..
इससे पूर्व गोवा के के 1928 में बंबई में गोवा कांग्रेस समिति का गठन किया राष्ट्रवादियों. यह डॉ. टी.बी. चुन्हा की अध्यक्षता में किया गया था डॉ. टी.बी. चुन्हा को गोवा के राष्ट्रवाद का जनक माना जाता है…बाद दो दशकों मे कुछ खास नहीं हुआ .. सन 1946 में एक प्रमुख भारतीय समाजवादी, डॉ. राम मनोहर लोहिया, गोवा में पहुंचे उन्होंने नागरिक अधिकारों के हनन के विरोध में गोवा में सभा करने की चेतावनी दे डाली .. मगर इस विरोध का दमन करते हुए उनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया ..
भारत पुर्तगाल युद्ध की नींव भी अंग्रेजो ने डाली .. आजादी के समय पंडित जवाहर लाल नेहरु ने ये मांग रक्खी की गोवा को भारत के अधिकार में दे दिया जाए ..वहीँ पुर्तगाल ने भी गोवा पर अपना दावा ठोक दिया .. अंग्रेजो की दोगली नीति व पुर्तगाल के दबाव के कारण गोवा पुर्तगाल को हस्तांतरित कर दिया गया .. गोवा पर पुर्तगाली कब्जे का तर्क यह था की गोवा पर पुर्तगाल के अधिकार के समय कोई भारत गणराज्य अस्तित्व में नहीं था ..
गोवा मुक्ति के लिए सन तक 1950 प्रदर्शन जोर पकड़ चुका था .. 1954 में भारत समर्थक गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा दादर और नगर हवेली को मुक्त करा लिया गया और भारत समर्थक प्रशासन बना कर क्रांति को और आगे बढाया.. ठीक उसी समय भारत ने गोवा जाने पर वीसा का नियम लगा दिया ..
15 अगस्त 1955 में गोवा को पुर्तगाल शासन से मुक्त करने के लिये 3000 सत्याग्रहियों ने आन्दोलन शुरू किया गोवा की आजादी की चिंगारी ने मलयानिल का रूप तब ले लिया जब पुर्तगाली सेनाओं ने निहत्थे सत्याग्रहियों पर गोली चला दी और लगभग 30 अहिंसक प्रदर्शनकारी मारे गए .. इस घटना ने गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराने के लिए एक नयी उर्जा व परिस्थिति प्रदान कर दी .. तनाव बढ़ता देख भारत ने 1955 में पुर्तगाल से सारे राजनयिक सम्बन्ध ख़त्म कर दिए .. भारत ने कुछ और प्रतिबन्ध भी लगाये मगर पाकिस्तान ने जन्मजात मक्कारी दिखाते हुए पुर्तगाल का सहयोग कर इन प्रतिबंधो का असर काफी हद तक कम कर दिया ...
सन 1956,1967 में गोवा में अपने भविष्य निर्धारण के लिए जनमत संग्रह की बात राखी गयी जो पुर्तगालियों ने नकार दिया .. इस तरह अगले पाँच वर्षों तक क्रांति चलती रही पुर्तगाल ने गोवा से अपना कब्ज़ा नहीं छोड़ा .. इस बीच पुर्तगाली प्रधानमंत्री अंटोनियो द ओलिवेरा को ये मालूम हो चुका था की भारत कभी भी गोवा मुक्ति के लिए सैनिक कार्यवाही कर सकता है .. .. उसने सजगता दिखाते हुए ब्राज़ील इंग्लैंड अमेरिका और मैक्सिको के सरकारों को मध्यस्थता के लिए कहा .. बात बनती न देख पुर्तगाल संयुक्त राष्ट्र में भी गया वह भी उसकी दाल नहीं गली ... अमेरिका ने अपनी दोगली नीति अपनाई रक्खी .. शुरू में वो भारत के साथ, फिर मध्यस्थ रहा मगर भारतीय सैनिक कार्यवाही की स्थिति में उसने संयुक्त राष्ट्र में भारत का साथ न देने की धमकी दे डाली ..
मगर अब जनांदोलन को दबाना इन शक्तियों के वश में नहीं था और 1961 में भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने पुर्तगाल और दुनिया को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा की "गोवा का पुर्तगाली शासन में रहना अब असंभव है" ..
पुर्तगाली शासन के ताबूत में की घटना थी 24 नवम्बर 1961 को पुर्तगाली सेनाओं का भारतीय नौसैनिक जहाज पर हमला और दो मौतें ... भारत के पास भी अब सैनिक कार्यवाही का अच्छा कारण था और जन समर्थन भी…
भारत ने गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त करने के लिए आपरेशन विजय शुरू किया .. इसकी कमान भारतीय सेना के दक्षिणी कमान को सौंप दिया गया जिसमें 1 मराठा लाइट इन्फंट्री 20 वीं राजपूत और 4 मद्रास बटालियन शामिल हुईं…युद्ध में थल सेना की कमान मेजर जनरल के.पी. कैंथ (17 वीं इन्फेंट्री डिविजन) को दी गयी ..
11 दिसम्बर 1961 को ही 50 पैरा ब्रिगेड ने ब्रिगेडियर सगत सिंह के नेतृत्व में ने पंजिम पर हमला कर दिया दूसरी ओर मर्मागोवा.. पर 63 ब्रिगेड ने पूर्व से हमला बोला भारत के पश्चिमी वायु कमान के एयर वाइस मार्शल एलरिक पिंटो को युद्ध में वायु सेना कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया .. भारतीय सेना ने चारो ओर से, जल थल एवं वायु सेना की उस समय की आधुनिकतम तैयारियों के दिसम्बर 17-18 साथ की रात में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्यवाही शुरू कर दी ..
"उधर पुर्तागली रक्षा मंत्री ने वहां के प्रधानमंत्री को ये ये बता दिया की अब गोवा पर कब्ज़ा रखना नामुमकिन है .. इसके बाद भी पुर्तगाली प्रधनमंत्री ने तत्कालीन गवर्नर को ये सन्देश भेजा की
"ये कहना थोडा कठिन है की युद्ध में आगे बढ़ने का मतलब हमारा सम्पूर्ण बलिदान .. लेकिन राष्ट्र उच्चतम परंपराओं को बनाए रखने के लिए और राष्ट्र के भविष्य व सेवा के लिए बलिदान ही एकमात्र रास्ता है पुर्तगाली. प्रधानमंत्री ने आगे कहा की मुझे नहीं लगता की पुर्तगाली सैनिकों और नाविकों पर कोई विजय प्राप्त कर सकता है . वो या तो विजयी होंगे या आखिरी कतरे तक लड़ेंगे .. इसके साथ ही उनके लिए एक आदेश आया की संघर्ष विराम या संधि का कोई प्रस्ताव नहीं माना जाएगा आखरी पुर्तगाली सैनिक के जीवित रहने तक युद्ध जारी रहेगा ... "
वही पुर्तगाली प्रधानमंत्री ने तत्कालीन गवर्नर मैं ये भी कहा की युद्ध मैं 7-8 दिनों तक खीच लो तब तक पुर्तगाल अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से दबाव डलवाकर भारत को रोक देगा ...
पुर्तगाली सेना की गोवा में 4000 प्रशिक्षित और 2000 अर्धप्रशिक्षित या सामान्य सैनिको की क्षमता थी लगभग ..पुर्तगाल से कुछ गोला बारूद 17 दिसम्बर को वायु सेना द्वारा भेजने की योजना बाकी देशों के असहयोग के कारण पुर्तगाल को स्थगित करनी पड़ी क्यूंकि पुर्तगाली सैन्य विमान को किसी भी देश ने उतरने और ईंधन भरने की अनुमति नहीं दी ..
हालाकिं खाने की आपूर्ति करने वाले विमान के साथ कुछ पुर्तगाल ने कुछ गोला बारूद व ग्रेनेड गोवा में भेज दिया.. गोवा की पुर्तगाल में 2-3 असैनिक विमान व 2-3 एंटी एयर क्राफ्ट गन थे .. युद्ध की स्थिति में पुर्तगाली प्रधानमंत्री ने गोवा में पुर्तगाल के सभी भी गैर सैनिक विरासतों को नष्ट करने का आदेश दे दिया गया जिसे बाद में पुर्तगाली गवर्नर मैनुएल वसेलो ई सिल्वा ने ये कहते हुए कर दिया की "मैं पूरब में अपनी महानता के सबूत नष्ट नहीं कर सकता .."
युद्ध के 10 दिन पहले ही गोवन पुर्तगाली परिवार लिस्बन जाने को बेताब थे .. ने किसी भी यात्री को लिस्बन जाने वाले पोत में जाने से मना किया लेकिन गवर्नर मैनुएल वसेलो ई सिल्वा ने लगभग 750 लोगों को संभावित खतरे को देखते हुए भेज दिया पुर्तगाल. .
18 दिसम्बर को दीव में विंग कमांडर मिकी ब्लेक ने हमला किया और दीव में पुर्तगाली सेना के मुख्या स्थलों को तबाह कर दिया .. वहां का रनवे भी नष्ट कर दिया .. कुछ नौकाएं पुर्तगाली गोला बारूद लेकर दीव से भागने का प्रयास कर रही थी वो भारतीय वायु सेना ने नष्ट कर दिया .. बाद में पुरे दिन भारतीय सेना के वायुयान आकाश में मंडराते रहे और थल सनिकों को आवश्यक सहयोग देते रहे ..
18 दिसम्बर को भारतीय वायु सेना ने गोवा में भी धावा बोला और विंग कमांडर एन बी मेमन एवं विंग कमांडर सुरिंदर सिंह ने अलग अलग गोवा के डाबोलिम हवाई अड्डे पर भीषण बम वर्षा कर के उसके रनवे को बर्बाद कर डाला .. खास बात ये थी की इस हमले में हवाई अड्डे के बाकी हिस्से को कोई नुकसान नहीं पंहुचा .. बाम्बोलिन हवाई अड्डे का वायरलेस केंद्र भी हवाई हमले में ध्वस्त हो गया ..
वहीँ गोवा के दो विमान पुर्तगाली सैनिक अधिकारीयों के परिवार व कुछ और सरकारी अधिकारीयों को लेकर टूटे हुए रनवे से ही काफी नीची उड़न भरते हुए रात को पाकिस्तान भाग गए .. अब तक भारतीय वायु सेना का गोवा के पूरे आकाश पर कब्ज़ा हो चुका था ..
भारतीय जल थल और वायु सेना के चौतरफा हमलों से पुर्तगाली देना की कमर टूट गयी ...
2 सिख लाइट इन्फैंट्री 19 दिसम्बर 1961 की सुबह पणजी के सचिवालय भवन पर तिरंगा फहरा दिय..
अंततोगत्वा पुर्तगालियों ने घुटने टेकते हुए वास्को के एक सेना के शिविर में आत्मसमर्पण कर दिया ...
पुर्तगाली गवर्नर मैनुएल वसेलो ई सिल्वा ने पुर्तगाल की तरफ से दस्तावेजों पर दस्तखत किये और भारत की तरफ से पुर्तगालियों आत्मसमर्पण को स्वीकार करने वाले दस्तावेजों परब्रिगेडियर एस एस ढिल्लों ने दस्तखत किये..
ऑपरेशन विजय में भारत के जवान शहीद हुए 35, और 55 घायल जिसमें अगुड़ा किले पर कब्ज़ा करते हुए मेजर एस. एस संधू भी शामिल थे .. हालाँकि अगले दिन किले पर कब्ज़ा हो गया ..मेजर एस एस संधू वो सबसे उच्च पद के अधिकारी थे जो इस युद्ध में शहीद हुए .. उधर पुर्तगाली सेना में भी लगभग इतने ही लोग हताहत व घायल हुए ...
ऑपरेशन विजय 40 घंटे का था .. भारतीय सेना के इस 40 घंटे के युद्ध ने गोवा पर 450 साल से चले आ रहे पुर्तगाली शासन का अंत किया और गोवा भारतीय गणतंत्र का एक अंग बना बाद. में सन 1962 में वहां चुनाव और २० दिसम्बर १९६२ को श्री दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने..
बाद में गोवा के महाराष्ट्र में विलय की बात वहाली चुकी गोवा महाराष्ट्र के पड़ोस में था..१९६७ में वहां की जनता से राय ली गयी और गोवा कलोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया...कालांतर में ३० मई १९८७ को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और गोवा भारतीय गणराज्य का २५वाँ राज्य बना... आज गोवा हमरे देश का सर्वदिक पसंद किये जाने वाला पर्यटन स्थल है...
इस लेख को लिखने का मेरा अभिप्राय इतना था की हम सभी लोग शायद अमेरिका से लेकर मिश्र में होने वाली क्रांतियों व बदलावों का विश्लेषण तो करते रहतें है मगर अपने देश की उस महान क्रांति को भूल जातें है जिसने ४० घंटें में ४५० साल पुरानी गुलामी को ख़तम कर दिया.
आशा है मेरा ये छोटा सा प्रयास आप को पसंद आया होगा.. आप को ये लेख कैसा लगा आप अपने विचार व सुझाव कमेन्ट बॉक्स में लिख कर अवगत करा सकतें है.
http://ashutoshnathtiwari.blogspot.com/
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International reaction to the capture of Goa (from wikipedia)
- "The casualties were minimum. I am in favour of all wars being like the war between India and Portugal -- peaceful and quickly over!" - J. K. Galbraith, former US ambassador to India[53]
[edit]United States of America
The United States' official reaction to the invasion of Goa was delivered by Adlai Stevenson in the UN Security Council, where he condemned the armed action of the Indian government and demanded that all Indian forces be unconditionally withdrawn from Goan soil.
To express its displeasure with the Indian action in Goa, the US Senate Foreign Relations Committee attempted, over the objections of President John F. Kennedy, to cut the 1962 foreign aid appropriation to India by 25 percent.[63]
Referring to the perception, especially in the West, that India had previously been lecturing the world about the virtues of nonviolence, US President Kennedy told the Indian ambassador to the US, “You spend the last fifteen years preaching morality to us, and then you go ahead and act the way any normal country would behave.... People are saying, the preacher has been caught coming out of the brothel.” [64]
In an article titled "India, The Aggressor", The New York Times on 19 December 1961, stated "With his invasion of Goa Prime Minister Nehru has done irreparable damage to India's good name and to the principles of international morality." [65]
Life International, in its issue dated 12 February 1962, carried an article titled "Symbolic pose by Goa's Governor" in which it expressed its vehement condemnation of the military action.
The world's initial outrage at pacifist India's resort to military violence for conquest has subsided into resigned disdain. And in Goa, a new Governor strikes a symbolic pose before portraits of men who had administered the prosperous Portuguese enclave for 451 years. He is K. P. Candeth, commanding India's 17th Infantry Division, and as the very model of a modern major general, he betrayed no sign that he is finding Goans less than happy about their "liberation". Goan girls refuse to dance with Indian officers. Goan shops have been stripped bare by luxury-hungry Indian soldiers, and Indian import restrictions prevent replacement. Even in India, doubts are heard. "India", said respected Chakravarti Rajagopalachari, leader of the Swatantra Party, "has totally lost the moral power to raise her voice against the use of military power"
– Symbolic pose by Goa's Governor, Life International, 12 February 1962
[edit]Soviet Union
The head of state of Soviet Union, Leonid Brezhnev, who was touring India at the time of the war, made several speeches applauding the Indian action. In a farewell message, he urged Indians to ignore western indignation as it came "from those who are accustomed to strangle the peoples striving for independence... and from those who enrich themselves from colonialist plunder". Nikita Khrushchev, the de facto Soviet leader, telegraphed Nehru stating that there was "unanimous acclaim" from every Soviet citizen for "Friendly India". The USSR had earlier vetoed a UN security council resolution condemning the Indian invasion of Goa.[citation needed]
[edit]China
In an official statement, released long after the action in Goa, Peking stressed the support of the Chinese government for the struggle of the people of Asia, Africa and Latin America against "imperialist colonialism". China neither condemned nor applauded the invasion, despite Portuguese rule of Macau, as at the time, it was enjoying cordial relations with India, although the Sino-Indian War would begin only months later.
[edit]Pakistan
In a letter to the US President on 2 January 1962, the Pakistani President General Ayub Khan stated: “My Dear President, The forcible taking of Goa by India has demonstrated what we in Pakistan have never had any illusions about--that India would not hesitate to attack if it were in her interest to do so and if she felt that the other side was too weak to resist.”[citation needed]
[edit]Africa
Before the invasion the press speculated about international reaction to military action and recalled the recent charge by African nations that India was "too soft" on Portugal and was thus "dampening the enthusiasm of freedom fighters in other countries".[66] Many African nations - themselves former European colonies - reacted with delight to the capture of Goa by the Indians. Radio Ghana termed it as the “Liberation of Goa” and went on to state that the people of Ghana would “long for the day when our downtrodden brethren in Angola and other Portuguese territories in Africa are liberated. ” Adelino Gwambe, the leader of the Mozambique National Democratic Union stated: “We fully support the use of force against Portuguese butchers.”[66]
[edit]The Catholic Church
In December 1961, just days before the annexation of Goa by Indian troops, the Vatican appointed Dom José Pedro da Silva, a Portuguese priest as the auxiliary bishop of Goa, and granted him the right to succeed as the Patriarch of the Church in Goa. Although the Vatican did not voice its reaction to the annexation of Goa, it delayed the appointment of a native head of the Goan Church until the inauguration of theSecond Vatican Council in Rome, when Msgr Francisco Xavier da Piedade Rebelo was consecrated Bishop and Vicar Apostolic of Goa in 1963.[67] Simultaneously, the Church in Goa was placed under the patronage of the Cardinal of India and its links with the Church in Portugal were severed.[68]
Without LORD SRI KRISHNA,
Without LORD SRI KRISHNA,
our week would be:
Sinday,
Mournday,
Tearsday,
Wasteday,
Thirstday,
Fightday &
Shatterday
When we take we may get little; but, when God - The Almighty gives, He gives us more beyond our expectations...more than what we can hold..!!
My father used to say, "God has got ten hands. If He wants to take away from you, with two hands how much you will protest? And when He wants to give you with ten hands, with two hands how much you will take it?"
to not pay taxes to currupt officials and leaders
When Ambition Exceeds Performance
The Gap Is Called
When
The Performance Exceeds Ambition
The Overlap Is Called
but sree gita says :
care for the performance only, and success will sure follow you
a lovely letter from a lovely friend from usa
A friend sent the following:
One day I hopped in a taxi and we took off for the airport We were driving in the right lane when suddenly a black car jumped out of a parking space right in front of us.
My taxi driver slammed on his brakes, skidded, and missed the other car by just inches! The driver of the other car whipped his head around and started yelling at us.
My taxi driver just smiled and waved at the guy. And I mean, he was really friendly.
So I asked, 'Why did you just do that?’ This guy almost ruined your car and sent us to the hospital!'
This is when my taxi driver taught me what I now call, 'The Law of the Garbage Truck.'
He explained that many people are like garbage trucks. They run around full of garbage, full of frustration, full of anger, and full of disappointment.
As their garbage piles up, they need a place to dump it and sometimes they'll dump it on you. Don't take it personally.
Just smile, wave, wish them well, and move on. Don't take their garbage and spread it to other people at work, at home, or on the streets.
The bottom line is that successful people do not let garbage trucks take over their day.
Life's too short to wake up in the morning with regrets,
so ... Love the people who treat you right; pray for the ones who don't .
Life is ten percent what you make it and ninety percent how you take it!
Have a garbage-free day!
"Faith is not believing God can; it is knowing that God will."
happy valentine day to all hindus and non hindus
sonia is vajpayee's insurance
The Rediff Interview/ Subramanian Swamy
Janata Party president Dr Subramaniam Swamy is happy that the Delhi high court took cognizance of the Union government's delay in responding to charges he leveled against Congress leader Sonia Gandhi.
In conversation with rediff.com's Tara Shankar Sahay after the verdict, Dr Swamy spoke about his determination to unravel the truth in the controversy since "the country's welfare is involved in it."
Are you happy with the judgment?
Your question is an understatement. The honourable court has seen the government's reticence to act and it has made its displeasure obvious by ruling as it did. The government (represented by Additional Solicitor General K K Sud) made haste to tell the court that it would do the needful. That, however, has to be seen. I have been vindicated because the government has four weeks to make its submission
The judgment had two distinctive parts: One is a direction to find the truth and file an affidavit. The second part is that in the event the government doesn't find (the truth), the averment (Swamy's petition) will be taken as the truth. That is extraordinary. The documentation which I have provided, the diligence with which I have pursued every lead, has obviously borne fruit. The court felt the government is prevaricating. The obvious consequence of my charges would be that Sonia Gandhi cannot remain a (Indian) citizen.
Why should the government come to the Congress leader's rescue when the prime minister and Mrs Gandhi have been consistently at each other's throats?
I believe that since 1995 Sonia Gandhi and (Prime Minister) Atal Bihari Vajpayee reached a deal which I should have known (about), but did not. That's how the 1999 toppling of the Bharatiya Janata Party government, which I organized, failed to bring about an alternative government. I think Sonia's deal with Vajpayee entails that as long as he is prime minister, she will not make any efforts to topple him unless she can come in his place. The deal is to protect each other. I can say very clearly that the prime minister and Congress chief share a lot of secrets. They are also engaged in many deals on which neither side is willing to speak up.
Are you alleging there is a quid pro quo?
Yes, there is. There is collusion.
You were said to be a friend of the late Congress leader Rajiv Gandhi.
I was a very good friend of Rajiv Gandhi and I had affection for Sonia as his wife. But then I found that in every action of hers, she was doing what Rajiv would never have liked. For instance, take Rajiv Gandhi's killer, (Liberation Tigers of Tamil Eelam leader Vellupillai) Prabhakaran. Sonia has never once got up in Parliament to ask what happened to her husband's killers or allowed any Congress MP to get up and ask what happened to Prabhakaran. Why has the government not caught Prabhakaran?
So where do you go from here?
I will wait till the four weeks are over. If the government doesn't file an affidavit, I will file a fresh application that my petition may be taken as true and the court may issue the necessary orders.
You said earlier that the government would never investigate charges against Sonia Gandhi. On what do you base your charge?
The prime minister knows fully well that if she is not there in Indian politics and she is not leader of the Congress party, his government will not last 10 days. She is his insurance.
Design: Dominic Xavier