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मैंने उन्हें जवाब लिखा , शायद आप भी उनके क्रांतिकारी विचारों का लाभ लेना चाहे
comments:
आदरणीय नागरिक जी,
मै आपके भगवान नहीं के विचारों से बरा सहमत हूं.
भगवान नहीं के विचार में बरा मज़ा है,जब भगवान ही नहीं तो पाप-पुण्य का झगरा नहीं. बस इतना ध्यान रखना है संसारी जीवों से पकरे न जाओ.
चोरी करो, डाका मारो, खून कर दो, घर में ही माँ बहनों से रंगरेलियाँ मनाओ. क्योंकि इसको रोकने के लिए ही तो इन धर्म के ठेकेदारों ने भगवान का झूठा दर लोगों के दिमाग में डाला है.आपके ही शब्दों में : सबसे बड़ी फिलासफी यह है कि कैसे अपने जीवन को स्वार्थ पूर्ण ढंग से सुविधा पूर्वक जिया जाये ? इसके आगे सारी फिलासफी फीकी है , और इसी को सब जी रहे हैं , पालन कर रहे हैं | फिर अन्य दर्शन शास्त्र की ज़रुरत क्या है ???
काश सारी दुनिया इन धर्म के ठेकेदारों के चुंगल से निकल कर मौज करे . न पाप , न स्वर्ग न नरक. बस एक ही दर है कि जैसे हम अपने घर में ही अपनी माँ बहनों से रंगरेलियां मानाने के लिए स्वतंत्र हैं , ऐसे ही और लोग भी होंगे , पर इससे क्या फर्क परता है , पाप-पुण्य तो है ही नहीं.
आपका
अशोक गुप्ता
2 comments:
सही कहा ---प्रचीन युग में भगवान नहीं था कोई मां बहन भी नहीं कोई नीति-नियम रोक-टोक नहीं....जब अनाचार दुराचार से भयानक रोग, द्वन्द्व, अत्याचार प्रारम्भ हुए तो विग्य लोगों ने सर्वशक्तिमान भगवान व उसके डर की ईज़ाद की...बस भग्वान की यही महत्त है...अगर वे नागरिक जन पाषाण-युग में जाना चाहते हैं तो ठीक है....
आदरणीय डा साहिब.
अच्छा हुआ अब भगवान नहीं ग्रुप में आपको देख कर.
अब इस ग्रुप में नागरिक जी , मुझे और आपको मिला कर तीन व्यक्ति हो गए.
इस ग्रुप का यही लाभ है कि इसके सदस्य अपनी माँ , बहिनों से भी रंग रेलिया मनाने के लिए स्वतंत्र हैं.
इन मस्तिओं में आपका स्वागत है .
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