रामचरितमानस सुंदरकांड विभीषण शरणागति

कितना सुंदर प्रकरण है कि भगवान ने पहले विभीषण को जो देना था दे दिया और अब दोनों से पूछ रहे हैं सुग्रीव से और विभीषण से कि इस आधार समुद्र को कैसे पार किया जाए

तो मानस पीयूष में बड़ा ही सुंदर भी वर्णन है कि दोनों से पूछा

सुनु कपीस लंकापति बीरा

मगर पहले लंकापति विभीषण ने उत्तर दिया कि आपका बाण करोड़ों समुद्रों को सोख सकता है

उससे पहले जो चौपाई है वह बहुत ही गजब की है

 पुनि सर्वज्ञ सर्व उरवासी सर्व रूप शब्द रहित उदासी

 भगवान सर्वज्ञ हैं बाहर का भी सब कुछ जानते हैं  और सब
 उरवासी हैं अंदर का भी जानते हैं

सारे रूप भगवान के हैं मगर रूपों में वह बंधे हुए नहीं है और ना ही उनका कोई शत्रु है ना कोई उनका मित्र है फिर भी नीति के पालक भगवान वचन इसलिए बोले कि वह मनुष्य रूप में है

और उनका कार्य दनुज कुल को ठीक करना है देखा जाए तो श्रीराम ने यहां अपनी प्रतिज्ञा को छोड़ दिया उन्होंने प्रतिज्ञा की थी

निसिचर हीन करहु महि भुज उठाई प्राण  की न

 और विभीषण शरणागति के बाद ना तो विभीषण को मारा और पूरी लंका विध्वंस नहीं किया सारे राक्षसों को नहीं मारा क्योंकि जो शरण में आ गए उनको मारने का तो मतलब ही नहीं होता

 भगवान राम का चरित्र पढ़कर मन को विश्राम मिलता है

 राधे राधे

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