लोकपाल बिल एक इस जनतंत्र के ड्रामे का एक बहुत मामूली सीन है .
इंडिया दैट इज भारत , कभी जनतंत्र रहा ही नहीं . और हम देश भक्ति के गीत गाते रहे .
बरे बरे , ईमानदार नेता इस देश में हुए , मगर अंग्रेजो की योजना के आगे सब फेल हो गए.
१५ अगस्त , १९४५ को शाशन करने का तरीका मात्र बदला , लोग बदले , सब काम franchise system को सोंप दिया गया, काले एजेंटों के जरिये .
जो भ्रष्टाचार का कैंसर , भारत की रगों में घुसा हुआ था , वाह दिन दूना रात चोगना बढ़ने लगा. और हम यहाँ तक पहुंचे .
क्या है ये लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग.
आप चोर से कह रहे हैं ऐसा बिल बनाओ कि चोर को पाकर सकें व बरी सजा दे सकें.
जनतंत्रों में ऐसा ही होता है .
यह तब होता है जब देश की आत्मा मर जाती है ,
देश की आत्मा मारने व जिलाने वाले भी मनुष्य ही होते हैं , जिन्हें भगवान द्वारा नियुक्त किया जाता है .
हिरान्याकशिपू , व प्रहलाद दोनों ईश्वर प्रेरित ही होते हैं. मगर नरसिंह आने के लिए प्रहलाद की प्रार्थना की अपेक्षा करते हैं.
अब केवल भगवान का ही सहारा है
कन्हइया कन्हैया तुझे आना परेगा, वचन जो दिया वो निभाना परेगा .
याद है आपना वादा कि याद दिलाएं. , लिखा हुआ दिखाएँ:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥४-७॥हे भारत, जब जब धर्म का लोप होता है, और अधर्म बढता है, तब तब मैं
सवयंम सवयं की रचना करता हूँ॥
अच्छा , तुम आते हो ! पक्का !!!
फिर क्या करते हो ये भी जरा बता दो ? ? ?
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥४-८॥
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥४-८॥
साधू पुरुषों के कल्याण के लिये, और दुष्कर्मियों के विनाश के लिये,
तथा धर्म कि स्थापना के लिये मैं युगों योगों मे जन्म लेता हूँ॥
तो आओ न क्या अभी कुछ और देखना , सहना बाकि है , रामलीला मैदान की रावण लीला के बाद .
मुझे तो लगता है इस बार दुर्योधन ने तुम्हे बहका लिया.
चुप चुप , नाराज हो जायेंगे !
ये कोई सरकार थोड़े हैं जो मर्डर करा देंगे . इतनी तो मानवता इनमे. है ,
जय श्री राम
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