हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को शिव व पार्वती नंदन यानी पुत्र के रूप में पूजनीय है। वहीं पौराणिक मान्यताओं में भगवान गणेश पंच देवों के रूप में बताए गए परब्रह्म के अलग-अलग रूपों में एक हैं। वे पंचदेवों में प्रथम पूजनीय भी हैं। ये पंचदेव हैं - शक्ति, शिव, सूर्य, विष्णु और गणेश। इस तरह परब्रह्म स्वरूप भगवान गणेश भी आदिदेव माने गए हैं।
भगवान गणेश का यही आदि स्वरूप विघ्रहर्ता, मंगलकारी, देव-दानवों द्वारा भी पूजित और हर युग में अलग-अलग रूपों में जगत के संकटों का नाश करने वाला माना गया है। आदिदेव भगवान गणेश को इन अद्भुत गुणों और शक्तियों के कारण ही अनेक नाम से स्मरण किया जाता है।
श्री गणेश के इन मंगलकारी नामों में विशेष तौर पर यहां बताए जा रहे 12 नाम धार्मिक रस्मों, उपासना, पूजा-पाठ के साथ जीवन से जुड़े हर शुभ कार्य की शुरुआत में लेने पर सुनिश्चित सफलता देने वाले माने गए हैं। लेकिन अनेक धर्मावलंबी श्री गणेश के इन नामों के पीछे छुपे अर्थ से परिचित नहीं है। इसलिए यहां संक्षिप्त रूप में बताया जा रहा है इन नामों का शाब्दिक अर्थ। जिनको जानकर गणेश का स्मरण भाव भरा और आनंदमयी होकर शुभ फलदायी हो जाएगा।
भगवान गणेश के ये नाम और उनका अर्थ इस प्रकार है। पहले जानें इनका शास्त्रोक्त रूप -
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्रनाशो विनायक:।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:।
यहां श्री गणेश के बताए 12 नामों में उनके स्वरूप, शक्ति और गुणों की महिमा हैं। जाने इनका सरल अर्थ -
सुमुख - मनोहर या सुंदर मुखमण्डल वाले
एकदन्त - एक दांत वाले
कपिल - कपिल रंग के, जो कपिला यानी गो से बना होकर छुपे अर्थों में गाय की तरह कल्याणकारी होने का संकेत है।
गजकर्ण - हाथी की तरह कान वाले
लम्बोदर - लंबे या बड़े पेट वाले
विकट - इसका शाब्दिक अर्थ होता है भयानक किंतु यहां पर विघ्रनाश के अर्थ में श्री गणेश को विकट या भयंकर माना गया है।
विघ्रनाशक - विघ्रनाश करने वाले।
विनायक - विनायक शब्द में वि यानि विघ्र और नायक यानी स्वामी। शास्त्रों के मुताबिक जगत की मर्यादाहीनता पर नियंत्रण के लिए श्री गणेश को विघ्रकर्ता की शक्तियों का स्वामी यानी विनायक भी माना गया है। जिनकी पूजा से ही विघ्रनाश होता है और वह विघ्रहर्ता भी कहलाते हैं।
धूम्रकेतु - धुएं के रंग की ध्वजाधारी देवता।
गणाध्यक्ष - गणों के स्वामी। इसके अनेक अर्थ हैं, मसलन गण जैसे देवता, नर, असुर, नाग या धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के स्वामी। दूसरा, गण यानी समूह रूपी जगत के पालनकर्ता। तीसरा संसार में गण यानी गिन सकने वाले हर पदार्थ के स्वामी। चौथा शिवगणों के स्वामी आदि।
भालचन्द्र - मस्तक पर चन्द्रमा धारण करने वाले
गजानन - हाथी जैसे मुख वाले।
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कामनासिद्ध में श्री गणेश की उपासना
श्री गणेश विघ्रहर्ता और मंगल करने वाले देवता माने गए हैं। यही कारण है कि कामनासिद्ध में श्री गणेश की उपासना श्रेष्ठ मानी गई है।
अगर आप कारोबार में विपरीत नतीजों, पारिवारिक तनाव, आर्थिक तंगी, रोगों से पीड़ा या मेहनत करने पर भी नाकामयाबी से मिली निराशा और दु:ख से जूझ रहे हैं तो शास्त्रों में बुधवार या चतुर्थी के दिन श्री गणेश की ऐसी विशेष पूजा के विधान बताया है, जिसे बिगड़ी तकदीर भी संवर जाती है। जानते हैं यह पूजा विधि –
- बुधवार या चतुर्थी के दिन सुबह स्नान कर घर के देवालय या श्री गणेश मंदिर में एक चौकी पर सफेद वस्त्र बिछा एक थाली में कुंकूम से स्वस्तिक बना उस पर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा विराजित करें। – श्री गणेश की मूर्ति न होने पर सुपारी में लाल मौली बांधकर गणेश रूप में पूजा की जा सकती है। – सबसे पहले हाथ में अक्षत लेकर भगवान गणेश का आवाहन इस मंत्र से करें
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नामामि विघ्रेश्वर पाद पंकजम्।।
- इसके बाद लाल फूल या गुलाब, अक्षत और दूर्वा लेकर गणेश का ध्यान इस स्त्रोत से करें –
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्रनाशो विनायक:।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:।
द्वाद्वशैतानि नामानि य: पठेच्छेणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्रस्तस्य न जायते।।
- अंत में जल से स्नान, पंचामृत स्नान, जनेऊ, वस्त्र, गंध, अक्षत, इत्र, धूप, दीप नैवेद्य, फल, सुपारी, दक्षिणा अर्पित कर पूजा करें। – अंत में कर्पूर से आरती कर सौभाग्य की कामना करें।
अगर आप कारोबार में विपरीत नतीजों, पारिवारिक तनाव, आर्थिक तंगी, रोगों से पीड़ा या मेहनत करने पर भी नाकामयाबी से मिली निराशा और दु:ख से जूझ रहे हैं तो शास्त्रों में बुधवार या चतुर्थी के दिन श्री गणेश की ऐसी विशेष पूजा के विधान बताया है, जिसे बिगड़ी तकदीर भी संवर जाती है। जानते हैं यह पूजा विधि –
- बुधवार या चतुर्थी के दिन सुबह स्नान कर घर के देवालय या श्री गणेश मंदिर में एक चौकी पर सफेद वस्त्र बिछा एक थाली में कुंकूम से स्वस्तिक बना उस पर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा विराजित करें। – श्री गणेश की मूर्ति न होने पर सुपारी में लाल मौली बांधकर गणेश रूप में पूजा की जा सकती है। – सबसे पहले हाथ में अक्षत लेकर भगवान गणेश का आवाहन इस मंत्र से करें
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नामामि विघ्रेश्वर पाद पंकजम्।।
- इसके बाद लाल फूल या गुलाब, अक्षत और दूर्वा लेकर गणेश का ध्यान इस स्त्रोत से करें –
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्रनाशो विनायक:।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:।
द्वाद्वशैतानि नामानि य: पठेच्छेणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्रस्तस्य न जायते।।
- अंत में जल से स्नान, पंचामृत स्नान, जनेऊ, वस्त्र, गंध, अक्षत, इत्र, धूप, दीप नैवेद्य, फल, सुपारी, दक्षिणा अर्पित कर पूजा करें। – अंत में कर्पूर से आरती कर सौभाग्य की कामना करें।
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