धैर्य की इससे सुंदर परिभाषा मैंने नहीं देखि .
(श्री विशाल गुप्ता जी से कॉपी किया )
पहले ओरिजिनल इंग्लिश में :
Patience with family is love
,
Patience with others is respect,
Patience with self is confidence
and
Patience with GOD is Faith.
यानि
धैर्य से ही परिवार में प्यार मिलता है
धैर्य से ही दूसरों से आदर मिलता है
धैर्य से ही अपने में आत्मविश्वाश मिलता है
धैर्य से ही भगवान में श्रद्धा होती है
इसीलिए शायाद धर्म के दस लक्षणों में सबसे पहला लक्षण धैर्य ही है
यथा :
मनुस्मृति 6/92
धर्म शब्द संस्कृत की ‘धृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है धारण करना । परमात्मा की सृष्टि को धारण करने या बनाये रखने के लिए जो कर्म और कर्तव्य आवश्यक हैं वही मूलत: धर्म के अंग या लक्षण हैं । उदाहरण के लिए निम्न श्लोक में धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं :-
धृति: क्षमा दमो स्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह: ।धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् ।
विपत्ति में धीरज रखना, अपराधी को क्षमा करना, भीतरी और बाहरी सफाई, बुद्धि को उत्तम विचारों में लगाना, सम्यक ज्ञान का अर्जन, सत्य का पालन ये छ: उत्तम कर्म हैं और मन को बुरे कामों में प्रवृत्त न करना,चोरी न करना, इन्द्रिय लोलुपता से बचना, क्रोध न करना ये दस उत्तम अकर्म हैं ।
तो फिर पाप पुण्य क्या है :
अष्टादश पुराणेशु व्यासस्य वचनम् द्वयम्
परोपकाराय पुण्याय, पापाय परपीड़नम्।।
अर्थात- अठारह पुराणों में व्यास जी ने दो ही बातें कही हैं कि परोपकार करना पुण्य और दूसरे को सताना पाप है।
1 comment:
धैर्य से आपकी बतायी चारो चीजे तो मिलती ही है, कभी कभी आपको कमजोर मानने की गलती भी दूसरा कर बैठता है।
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