सरकार और मीडिया की दया पर चलता एक आंदोलन .


मेरे प्रबुद्ध ब्लोगी बहिनों   एवं भाइयो,

जो में लिखने जा रहा हूँ , उसे आप पहले से ही जानते हैं .  में फिर भी अपना ज्ञान दर्शाने की दृष्टी से लिख रहा हूँ .

सरकार जब चाहे अन्ना व् समर्थकों के हुजूम को रामदेव की तरह खदेड़ सकती है,

इस कानून ने तब सरकार का क्या उखाड़ लिया जो अन्ना उखाड़ लेंगे .

अन्ना बड़े जोश से कह रहे हैं कि उनका आंदोलन अहिंसक है .

पुलिस के लिए बाएं हाथ का खेल है , अपने गुर्गों से इसे हिंसक में बदलना .  ये कोई समझाने वाली बात नहीं है , कि कैसे !

अब रही मिडिया कि हमदर्दी :

ये बात गले नहीं उतर रही कि अधिकतर मिडिया में विदेशी , व् ईसाई लॉबी का पैसा लगा है , सरकारी विज्ञापन व सहूलियतें उनको मिलती ही रहती हैं ,

उसके बावजूद न केवल वे फुल टाइम कवर कर रहे हैं , और विरोधी टिपण्णी भी नहीं दे रहे , जैसे :

और अब देखिये अन्ना का सर्कस : बदमाशों का जमावड़ा इत्यादि .

भगवान ही जाने ऐसा क्यों है !

क्या अंदर खाने सरकार ये बिल लाना चाहती है  , और अपने एम्  पी के विरोध से डर कर ये दिखाना चाहती है कि मजबूरी में हमें पास करना पड़ा है .

सेष फिर 

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