छोटे आदमी की उडान - छोटी सोच -- तुच्छ अहंकार

इस जन्माष्टमी को मैंने सबको इस शीर्षक से मेल भेजी :


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here are some beautiful pictures sent by one of my friend in usa, i wanted to share them with you.
Happy Krishna Janmastami

मेरे एक शुभाकांची ने ये उत्तर भेजा :
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On Mon, Aug 22, 2011 at 10:47 AM, **** Agarwal 
Thank you...we heartily reciprocate.

by way, one question: why the stress on  
pictures sent by one of my friend in usa?.........it could be your friend from any where...even kanchipuram...what difference it would have made???


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इसने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया कि ऐसा अनजाने में ही सही , ऐसा क्यों हो गया !  


फिर सोच कर मैंने बिना छुपाये , उनको निम्न उत्तर भेज दिया : 



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धन्यावाद अग्रवाल जी, 

बिलकुल सही प्रश्न 

ऐसा प्रश्न जो पैनी नज़र रखता है , और अपना-पण समझता है वोही करेगा . 

मेरा विचार यही रहा की :

जिसने मुझे भेजा है , उससे पूछे बिना , में उसका नाम तो नहीं लिख सकता , पर धन्यवाद की शक्ल में  उसका जिक्र तो कर ही सकता हूँ . 

दूसरे , आपकी बात नहीं है , कई बार हम हिंदू, .....छोडो .....में , गोरों से बड़ा प्रभावित था ,  जन्माष्टमी का महातम मुझे १९९० में न्यू यार्क में गोरों के मंदिर से ही मिला, सो  यदि कुछ लोग मेरे जैसे होंगे तो उन्हें अच्छा उत्साह मिलेगा , यहाँ सोच कर भी ,,,,,,,,

तीसरे , मुझे यहाँ दर्शाते हुए गर्व भी हुआ कि हमारे भगवान का नाम पुरे विश्व में मशहूर हैं,  जबकि ये मेरी छोटी सोच ही है .  भागवान को इस बात का गर्व नहीं है . उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता .

मेरे जैसा छोटा व्यक्ति , जरा सा मिलते ही उड़ने लगता है . इसलिए जरा सा भगवान का छींटा मिला तो अपने को भगत समझ बैठा , और सबको बधाइयाँ भेजने लगा . 

आपने अपना समझ के पूछा इसके लिए , आपकी कृपा व् धन्यवाद , 

दासानुदास 
अशोक गुप्ता 
दिल्ली 

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अब आप ही बताएं , कि क्या ये उत्तर ढीक है !

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2 comments:

SANDEEP PANWAR said...

दिल खोल कर भेजो, कंजूसी नहीं चलेगी?

https://worldisahome.blogspot.com said...

धन्यवाद संदीप जी ,