शीला की जवानी
ओर अब शीला का बुढ़ापा :
ये आरोप लगे हैं शीला पर
नई दिल्ली। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान शहर के सौदर्यीकरण पर करोड़ों रूपया पानी की तरह बहाने का आरोप है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार शीला द्वारा बेतरतीब खर्च से सरकार को करीब 100 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है-
-97 करोड़ रूपए में बनने थे 800 बस शेल्टर। काम आज भी अधूरा
-28 करोड़ रूपए पौधारोपण में खर्च। फुटपाथ सौन्दर्यकरण के लिए सरकारी नर्सरी की जगह बाहर से खरीदे पौधे।
-15 करोड़ का नुकसान साइनबोर्ड के टेंडर में गड़बडियों से। एक टेंडर की जगह तीन अगल-अलग जगह के ठेके दिए गए। -मलबा उठाने के लिए कोई टेंडर नहीं। मलबा उठाने पर बड़ी राशी खर्च।
-दिल्ली को सजाने में 100 करोड़ रूपये का खेल हुआ।
-नियमों को ताक पर रखकर मेसर्स स्पेस एज स्विच गियर्स कंपनी को काफी ऊंची कीमत पर स्ट्रीट लाइट लगाने का टेंडर दिया गया।
-फ्लाईओवर और सड़कें की `ालिटी व लागत के तमाम सवाल
दूसरी खबर :
इलाज के बहाने दिल्ली से भागी : क्यों ?
जय हो !
कैसा होगा इस बार का स्वतंत्रता दिवस !
कब होंगे हम आजाद ?
अंग्रेज चले गए , एजंट छोड़ गए !
एजेंटों से कब मिलेगी आजादी !
क्या हजारे , रामदेव वगेरा हमें आजाद करा पाएंगे ?
उससे भी जरूरी मुद्दा यह है कि क्या वास्तव में जन मानस आज़ाद होना भी चाहता है ?
मेरी पूछो तो ----------नहीं नहीं नहीं
ओर अब शीला का बुढ़ापा :
ये आरोप लगे हैं शीला पर
नई दिल्ली। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान शहर के सौदर्यीकरण पर करोड़ों रूपया पानी की तरह बहाने का आरोप है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार शीला द्वारा बेतरतीब खर्च से सरकार को करीब 100 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है-
-97 करोड़ रूपए में बनने थे 800 बस शेल्टर। काम आज भी अधूरा
-28 करोड़ रूपए पौधारोपण में खर्च। फुटपाथ सौन्दर्यकरण के लिए सरकारी नर्सरी की जगह बाहर से खरीदे पौधे।
-15 करोड़ का नुकसान साइनबोर्ड के टेंडर में गड़बडियों से। एक टेंडर की जगह तीन अगल-अलग जगह के ठेके दिए गए। -मलबा उठाने के लिए कोई टेंडर नहीं। मलबा उठाने पर बड़ी राशी खर्च।
-दिल्ली को सजाने में 100 करोड़ रूपये का खेल हुआ।
-नियमों को ताक पर रखकर मेसर्स स्पेस एज स्विच गियर्स कंपनी को काफी ऊंची कीमत पर स्ट्रीट लाइट लगाने का टेंडर दिया गया।
-फ्लाईओवर और सड़कें की `ालिटी व लागत के तमाम सवाल
दूसरी खबर :
इलाज के बहाने दिल्ली से भागी : क्यों ?
गुलाब कोठारी : राजस्थान-पत्रिका समूह के मालिक हैं.
वे ऐसे मालिक संपादक हैं जो अपनी बात खरी-खरी कह जाते हैं, भले ही किसी को उनका कहा-लिखा बुरा लगे तो लगे.:
श्रीमती सोनिया गांधी इलाज के लिए अमरीका गई, यह एक दुखद बात है। आज भी इस देश में हम देशवासियों का इलाज करने की स्थिति में नहीं आ सके। इससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात यह कि उनके पीछे से उनका कार्य एक चार सदस्यीय समिति देखेगी। इसमें राहुल गांधी के अलावा अहमद पटेल, ए.के. एंटनी तथा जनार्दन द्विवेदी हैं। इस कमेटी के गठन से अनेक प्रश्न पैदा हो गए हैं।
सोनिया गांधी कब यात्रा पर गई, इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी गई। यह कहना कि इलाज के लिए किस देश में गई यह भी पार्टी या सरकार को नहीं मालूम, हास्यास्पद लगता है। कोई देशवासी इस तर्क को मान लेगा, संभव नहीं है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने यह भी कहा है कि श्रीमती गांधी को 2-3 सप्ताह लग सकते हैं। क्या यह इतनी बड़ी अवधि है कि जिसके लिए पीछे से समिति का गठन आवश्यक हो। अनेक उदाहरण विश्व में होंगे, जबकि इससे बड़ी अवधि के लिए शीर्ष लोग बाहर गए और कोई समिति नहीं बना गए। आज जिस प्रकार के सूचना तंत्र में हम बैठे हैं, विकीलीक्स जैसे संगठन जैसा कार्य कर रह रहे हैं, भ्रष्टाचार के चलते जब किसी को भी खरीदा जा सकता है, तब क्या कोई रहस्य टिक सकता है? सरकार की भूमिका कहीं दिखाई नहीं पड़ी। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का या सरकार के कार्यो का भार भी क्या इस समिति को दिया गया है?
क्या राहुल गांधी भी नहीं जानते कि उनकी मां इलाज के लिए अमरीका गई हंै? उनको यह भी पता है कि बीमारी क्या है और यह भी कि वे 2-3 सप्ताह में नहीं लौट पाएंगी। इस बात से ही बीमारी का अनुमान लगाया जा सकता है। राजधानी में तो बीमारी के बारे में बहुत कुछ बाते चर्चा में आ चुकी हैं। क्या यह सरकार का दायित्व नहीं है कि वह देशवासियों को विश्वास मेें लेने का प्रयास करें? अभी तो स्पष्ट ही है कि कांग्रेस पार्टी और सरकार दोनों ही वस्तुस्थिति को छुपाने का प्रयास कर रहे हैं। ढाका से सीधे इलाज के लिए चले जाना एक गंभीर अथवा आपातकालीन कदम ही माना जाएगा। देश के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के मामले में सरकार का यह रवैया उचित नहीं कहा जा सकता। जनता को रोग और चिकित्सा की जानकारी मिलती रहनी चाहिए। भले ही कैंसर ही क्यों न निकले। यह व्यक्ति के बस की बात नहीं है। इसके साथ ही यह भी सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि 2-3 सप्ताह के लिए इस समिति की क्या आवश्यकता है?
गुलाब कोठारी : सोनिया गांधी कब यात्रा पर गई, इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं दी गई। यह कहना कि इलाज के लिए किस देश में गई यह भी पार्टी या सरकार को नहीं मालूम, हास्यास्पद लगता है। कोई देशवासी इस तर्क को मान लेगा, संभव नहीं है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने यह भी कहा है कि श्रीमती गांधी को 2-3 सप्ताह लग सकते हैं। क्या यह इतनी बड़ी अवधि है कि जिसके लिए पीछे से समिति का गठन आवश्यक हो। अनेक उदाहरण विश्व में होंगे, जबकि इससे बड़ी अवधि के लिए शीर्ष लोग बाहर गए और कोई समिति नहीं बना गए। आज जिस प्रकार के सूचना तंत्र में हम बैठे हैं, विकीलीक्स जैसे संगठन जैसा कार्य कर रह रहे हैं, भ्रष्टाचार के चलते जब किसी को भी खरीदा जा सकता है, तब क्या कोई रहस्य टिक सकता है? सरकार की भूमिका कहीं दिखाई नहीं पड़ी। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का या सरकार के कार्यो का भार भी क्या इस समिति को दिया गया है?
क्या राहुल गांधी भी नहीं जानते कि उनकी मां इलाज के लिए अमरीका गई हंै? उनको यह भी पता है कि बीमारी क्या है और यह भी कि वे 2-3 सप्ताह में नहीं लौट पाएंगी। इस बात से ही बीमारी का अनुमान लगाया जा सकता है। राजधानी में तो बीमारी के बारे में बहुत कुछ बाते चर्चा में आ चुकी हैं। क्या यह सरकार का दायित्व नहीं है कि वह देशवासियों को विश्वास मेें लेने का प्रयास करें? अभी तो स्पष्ट ही है कि कांग्रेस पार्टी और सरकार दोनों ही वस्तुस्थिति को छुपाने का प्रयास कर रहे हैं। ढाका से सीधे इलाज के लिए चले जाना एक गंभीर अथवा आपातकालीन कदम ही माना जाएगा। देश के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के मामले में सरकार का यह रवैया उचित नहीं कहा जा सकता। जनता को रोग और चिकित्सा की जानकारी मिलती रहनी चाहिए। भले ही कैंसर ही क्यों न निकले। यह व्यक्ति के बस की बात नहीं है। इसके साथ ही यह भी सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि 2-3 सप्ताह के लिए इस समिति की क्या आवश्यकता है?
कैसा होगा इस बार का स्वतंत्रता दिवस !
कब होंगे हम आजाद ?
अंग्रेज चले गए , एजंट छोड़ गए !
एजेंटों से कब मिलेगी आजादी !
क्या हजारे , रामदेव वगेरा हमें आजाद करा पाएंगे ?
उससे भी जरूरी मुद्दा यह है कि क्या वास्तव में जन मानस आज़ाद होना भी चाहता है ?
मेरी पूछो तो ----------नहीं नहीं नहीं
1 comment:
क्या जरुरत है
गुलामों को आजादी की,
जब आदत पड गयी हो गुलामी की,
एक आध कोई चना भाड में फ़ुदकता रहे,
उससे क्या भाड फ़ूट जायेगा, नहीं कभी नहीं।
जब बेचारे कश्मीरी कश्मीर को आजाद नहीं करवा पायेंगे तो बाकि
भला किस खेत की मूली जो अपनी बात मनवा लेंगे।
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